- “होड़ मची संख्याओं के बीच, है कौन सबसे महान ।
- किसकी पूजा हो पहले, किसकी हो पहले पहचान ।।
- सब अपनी करते थे बड़ाई, फिर उनमें हो गई लड़ाई ।
- सन् 1706 में विलियम जोंस ने संकेत π की पहचान कराई ।।
- किसी की बुद्धि काम न आई, फिर सबने मिलकर सभा बुलाई ।
- अंत में जाकर महान भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने π की याद दिलाई।।
नसीम अख्तर। राष्ट्रनायक न्यूज।
नगगरा (सारण)। गणित विषय में रूचि रखने वालों के लिए आज 22 जुलाई एक महत्वपूर्ण दिवस है जिसे हम π-Approximation Day के नाम से जानते है। ज्ञातव्य हो कि π (पाई) ग्रीक वर्णमाला का 16 वॉ अक्षर ( अंग्रेजी वर्णमाला का 16 वाॅ अक्षर P-Pi ) है जिसका मान 3.14 गणना को दर्शाते हुए, 14 मार्च को Pi-Day के तौर पर मनाया जाता है ,जबकि इसके अन्य अनुमोदित मान (22/7 – 22 जुलाई) को π-Approximation Day के रूप में मनाया जाता है।
पाई का इतिहास हजारों साल पुराना है, जब मानव ने पहिए का अविष्कार किया परंतु वह पहिया गोल नहीं था। इस वजह से जब लोग इधर उधर समान को ले जाया करते तो उनके सामान को गिरने एवम् फैलने का डर रहता और काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इसी तरह समय गुजरता रहा ।
अंग्रेजी में एक कहावत है — Necessity is the mother of invention. अथार्त आवश्यकता आविष्कार की जननी है। मतलब स्पष्ट हैं कि जब हमें कोई समस्या महसूस होती हैतब उस समस्या से निजात पाने हेतु हमारे दिमाग में एक नया विचार जन्म लेता है और हो जाता है एक नया आविष्कार।
इसी तरह से जब पहिए का इतिहास आगे बढ़ता रहा और पहिया गोल होता गया तब लोगों ने जाना कि कोई भी पहिया पूरी तरह गोल तब होता है जब उसके परिधि एवम् व्यास का अनुपात एक निश्चित अंक (constant number) हो, तात्पर्य गोला छोटा या बड़ा हो उससे नहीं है। इस निश्चित अंक का नाम π (Pi) दिया गया लेकिन लोग निश्चित अंक π (Pi) का मान नहीं जानते थे। समय गुजरता गया। अंततोगत्व लोगों को ज्ञान प्राप्त हुआ कि किसी भी गोल आकृति की परिधि 22 इकाई हो तो उसको Perfect circle बनाने हेतु उसका व्यास 7 इकाई होना चाहिए। इस परिधि और व्यास के अनुपात को ही निश्चित संख्या (constant number) π(पाई) कहा गया। अथार्त π एक गणितीय नियतांक है जिसका संख्यात्मक मान किसी वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात के बराबर होता है। गणित में π (पाई) के इतिहास में अनेक महान गणितज्ञों का योगदान रहा है परंतु विश्व को शून्य से अवगत कराने वाले महान भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने π (पाई)के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए इसके मान दशमलव के चार स्थानों तक सटीक ज्ञात किया। आर्यभट्ट ने इसके सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए संस्कृत में लिखा है– चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणाम्। अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्य आसन्नौ वृत्तपरिणाहः॥
अथार्त- (100+4)×8+62000=62832
इस नियम से 20000 परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है अथार्त एक वृत्त का व्यास 20,000 हो तो उसकी परिधि 62832 होगी।
π(पाई) =62832/20000=3.1416=22/7( approx)
आर्यभट्ट साहब ने π(पाई) के संन्निटकरण(Approximation) पर कार्य करते हुए बताया कि π एक अपरिमेय (irrational) संख्या है।
π=22/7=3.141592653589……
यह प्रक्रिया अनवरत रहती है तथा इसके अंक किसी भी नियमित पैटर्न को Follow नहीं करते है। π(पाई) का उपयोग ज्यामिति के अलावे गणित की लगभग हर शखाओं एवं विज्ञान और अभियांत्रिकी में भी होता है। π(पाई) की मदद से आज हम जान पाए कि ब्रहमांड का आकार अंडाकार है। मिस्र में π(पाई) का उपयोग पिरामिड बनाने और उसका आकार ज्ञात करने हेतु किया जाता है। खगोल शास्त्री दो तारों के बीच की दूरी को मापने के लिए π (पाई) का ही उपयोग करते है।
प्रस्तुति: नसीम अख्तर, बी बी राम+2 विद्यालय नगरा (सारण)


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