दफ्तर बनाम दुकान।
शनि को हाफ, रवि को साफ
सोम,मंगल, बुध
बाप रे बाप, गुरु, शुक्र बस
बात ही बात।
यही दफ्तर की शान है,
ये दफ्तर नही दुकान है।
थोडा़ पैसा सेवा का है,
बस थोडा़ कागज का है,
बिना दिये ना होता काम है
ये दफ्तर नही, दुकान है।
खुरचन लेना लाचारी है
ना लेना भी गद्दारी है,
पैसे की मारामारी है
बढ़ ग़ई कितनी बेकारी है,
इंसाँ है हम, पाषाण नहीं
ये दफ्तर है, दुकान नहीं
लेना रिश्वत कोई पाप नहीं
देते रिश्वत संताप यही
यहा सब मेरे एक आप नहीं
मुझे डरने की कोई बात नहीं
दिल बेच दिये, सामान नहीं
ये दफ्तर है, दुकान नही
कह निर्मल करे, बंद ये नाटक
खोल दे ये अब दिल का फाटक
जन मन का अब ऐलान है
ये दफ्तर नही दुकान है।
सूर्येश प्रसाद निर्मल शीतलपुर तरैया
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