राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

श्रीसीता जी साक्षात शाँति हैं और शाँति की खोज भला किसको नहीं होती

राष्ट्रनायक न्यूज।
भगवान श्रीराम जी के पावन सान्निध्य में निश्चित ही हम सभी आध्यात्मिक रहस्यों से अवगत हो रहे हैं। प्रभु श्रीराम जी सुग्रीव के भक्ति पथ का रक्षण कैसे करते हैं, यह तो हमने विस्तार से सुना। कैसे सभी वानर श्रीराम जी की शरण में एकत्रित होते हैं। कैसे श्रीराम जी सभी को प्यार से दुलारते हैं, यह सब भी हमने खूब मन लगा कर सुना। लेकिन अब इससे आगे क्या? श्रीराम जी अब क्या करना चाह रहे हैं। तो सज्जनों, यह तथ्य आप बड़े अच्छे से समझ लें, कि प्रभु को किसी से भी कोई व्यक्तिगत कार्य अथवा स्वार्थ नहीं है। उन्हें ऐसी कोई विवशता नहीं कि वे हम वनवासी व गंवार प्राणियों के पीछे अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए दौड़ें। हमारे मन में अगर कहीं भी यह भ्रम कुँडली मार कर बैठा है, तो उसे शीघ्र अति शीघ्र निर्वत करने में ही कल्याण है। कारण कि श्रीराम जी प्रत्येक छोटे बड़े वानर अथवा अन्य प्राणियों को भी श्रीसीता जी की खोज में इसलिए नहीं लगाते कि श्रीसीता जी उनकी धर्म पत्नी हैं, और मोहवश प्रभु श्रीराम जी उन्हें पाना चाहते हैं। अपितु प्रभु तो वास्तव में यह समझाना चाहते हैं कि पगलो श्रीसीता जी से मात्र मेरा ही सनातन संबंध नहीं है, अपितु तुम्हारा भी उनसे जन्म-जन्म का रिश्ता है।

हे प्रिय वानरो! आप बाहरी दृष्टि से देखेंगे तो श्रीसीता जी का हमसे रिश्ता तब हुआ प्रतीत होता है, जब उनसे हमारा विवाह हुआ। लेकिन तात्विक दृष्टि से देखेंगे तो हमसे पहले तो उनसे आपका नाता बन गया था। कारण कि श्रीसीता जी का अवतार मात्र हमारे साथ पत्नि धर्म निभाने के लिए नहीं हुआ है। अपितु इस जगत के समस्त जीवों की उत्पित्त के लिए ही हुआ था। श्रीसीता जी से आप सभी जीवों का नाता तो तभी से था, जबसे आप सब का भी इस धरा पर जन्म हुआ। क्योंकि आप समस्त जीवों की माता श्रीसीता जी ही हैं। और श्रीसीता जी हम सबसे नहीं बिछुडी, अपितु आप जीव ही उनसे बिछुड़े हुए हैं। जीव की पल प्रतिक्षण की अस्थिरता व अशाँति का कारण भी तो यही है, कि जब जीव को जनने वाली माँ ही शिशु से विलग हो जाये, तो शिशु भला शाँत कैसे रह सकता है। नि:संदेह हम आपके पिता हैं और हमसे तो आपका मिलन हो ही गया था। अभाव अगर था, तो वह तो माँ का था न। और आप इतने नादान कि बिन माता के ही जीवन व्यतीत किए जा रहे थे। अपनी माँ के दुलार के बिना जीआ जाने वाला जीवन भी कोई जीवन है क्या? इसलिए मुझे तब तक चैन नहीं आया जब तक तुम सब लोग श्रीसीता जी अर्थात अपनी माता को पाने हेतु तत्पर नहीं हो उठे। मैं देख रहा हूं, कि सभी वानर, भालू व अन्य वनवासी श्रीसीता जी को पाने हेतु व्याकुल व प्रसन्न हैं। और हे वानरो! शायद आपको यह ज्ञान न हो कि श्रीसीता जी को समस्त शास्त्रों में शाँति भी कहा गया है। श्री सीता जी साक्षात शाँति हैं। और शाँति की खोज भला किसको नहीं होती।

नन्हां से नन्हां कीट भी तो सदैव इसी प्रयास में रहता है कि उससे संबंधित भले ही सब कुछ भंग हो जाये, लेकिन मन की शाँति कभी भंग न हो। शाँति की प्राप्ति हर कीमत पर होनी ही चाहिए। लेकिन क्या शाँति उसे मिल पाती है? नहीं! क्योंकि जन्म की पहली किलकारी के साथ ही वह रोना आरम्भ कर देता है। और जीवन की अंतिम श्वाँस तक वह दुख से पीडित ही रहता है। आपके मन में प्रश्न उठता होगा कि शाँति के समस्त प्रयासों के पश्चात भी जीव को शाँति की प्रप्ति क्यों नहीं होती। इसके गर्भ में कारण यह छुपा है कि श्रीसीता जी तो बैठी हैं सागर पार अशोक वृक्ष के नीचे। जिसका रास्ता अति दुर्गम व कठिन है। और जीव बैठा है सागर के इस पार। श्रीसीता जी को पाना है, तो सागर तो पार करना ही होगा। बिन सागर पार किये, श्रीसीता जी रूपी शाँति की प्राप्ति भला कैसे हो सकती है। इसमें एक रहस्य को समझना अति आवश्यक है, वह यह कि श्रीसीता जी भले ही दैहिक रूप में सागर के उस पार हों। लेकिन आध्यात्मिक स्तर पर असके दिव्य अर्थ अलग हैं। तात्विक स्तर पर सागर से तात्पर्य कोई बाहरी सागर नहीं हैं। अपितु आपकी देह रूपी सागर से पार पाना ही सागर पार करना है। जो जीव देह के विषय व भोगों में संलिप्त रहते हैं, मानना चाहिए कि वे जीव सागर के इस पार हैं। अगर यूँ ही इस पार बैठे रहे, तो उस पार बिराजमान, श्रीसीता जी रूपी सुख व आनंद को पाना, एक कल्पना से अधिक और कुछ नहीं होगा। और हे वानरो मेरी दृढ़ इच्छा है कि इस भवसागर को कोई विरले नहीं, अपितु आप समस्त जीव इसको पार करें।

इसलिए भले ही तो यह मेरा आदेश मान कर चलना, अथवा भले ही आप इसे मेरी दृढ़ इच्छा मानना, कि आप में से कोई भी वानर श्रीसीता जी की खोज के बिना अपना कोई अन्य लक्ष्य निर्धारित, कभी ना करे। इस महान लक्ष्य हेतु आपको हर क्षण कठिन परिश्रम की परम आवश्यक्ता है। आपके हौसले व इरादे, पर्वत की भाँति अडिग व मजबूत होने चाहिए। आपके समक्ष अगर भयंकर तूफान भी आन खड़ा हो, तो यह निश्चित कर लेना कि तूफान आपको देख कर भय से कंपित हो जाना चाहिए, लेकिन आप के महान संकल्प पर कोई आँच नहीं आनी चाहिए। हे प्रिय वानरो! विचार करो कि मैं भगवान होकर भी श्रीसीता जी की खोज में निरंतर संलग्न हूं और आप सामान्य जीव होकर भी आराम से बैठे हैं। इससे तुम लोग यह अनुमान लगा सकते हो कि श्रीसीता जी कितनी महान शक्ति हैं। श्रीसीता जी के संबंध में मैं आपको एक और तथ्य से अवगत कराना चाहता हूं। वह यह कि श्रीसीता जी केवल शक्ति व शाँति ही नहीं, अपितु साक्षात भक्ति स्वरूप भी हैं। क्योंकि जीव का प्रथम व अंतिम लक्ष्य ही यह है कि वह भक्ति को प्राप्त करे। तो आप सबका भी प्रथम व अंतिम लक्ष्य अब श्रीसीता जी की खोज ही है। और भक्ति ही समस्त सुखों की खान है- ‘भत्तिफ सुतंत्र सकल सुख खानी।’ जिसके जीवन में भक्ति का आगमन हो गया, वह परमानंद की प्राप्ति कर लेता है। तीनों लोकों में उससे बड़कर अन्य कोई भी भाग्यशाली नहीं होता। समस्त देवी देवता उसको नत्मस्तक होते हैं। कारण कि वह अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को पा लेता है। इसलिए हे प्रिय वानरो उठो, और तब तक आराम से न बैठो जब तक कि स्वयं तुम्हारा लक्ष्य, तुम्हारे समक्ष बाहें फैलाकर तुम्हारा अभिवादन नहीं करता। क्या वानर श्रीसीता जी की खोज हेतु तत्पर हो उठते हैं अथवा नहीं।

सुखी भारती

You may have missed