राष्ट्रनायक न्यूज

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एनडीए में महिलाएं

राष्ट्रनायक न्यूज।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी कि अब देश के सभी सैनिक स्कूलों में लड़कियां एडमिशन ले सकेंगी। एनडीए में हर साल पहुंचने वाले लड़कों में ज्यादातर सैनिक स्कूलों के ही होते हैं। 2020 में सैन्य बलों की महिला अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद स्थाई कमिशन दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब महिला उम्मीदवारों के लिए एनडीए के दरवाजे फिलहाल खोल तो दिए हैं लेकिन देखना होगा कि अदालत का अंतिम फैसला क्या आता है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश के तहत लड़कियों को 5 सितम्बर को होने वाली एनडीए की परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया है कि सेना में महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाली मानसिकता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने सवाल उठाया कि सेना में महिलाओं के सवाल पर खुलापन क्यों नहीं दिख रहा। हर बार कोर्ट को ही फैसला क्यों सुनाना पड़ता है। सामाजिक धारणाओं के आधार पर महिलाओं को समान मौके न मिलना परेशान करने वाला और अस्वीकार्य है। महिलाओं को लेकर बहुत सी धारणाएं हमारे समाज में भी हैं। महिलाओं को काम्बैट रोल देने में भी कठिनाइयां हैं। यद्यपि सशस्त्र बलों में अधिकांश नौकरियां पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से खुली हैं लेकिन कुछ ऐसी सेवाएं भी हैं जिनके लिए महिलाओं को?शारीरिक रूप से अनुकूल नहीं माना जाता। शारीरिक फिटनेस के मानकों को पुरुषों के अनुरूप बनाया गया है और इन मानकों को पूरा करने में महिलाओं को काफी परिश्रम करना पड़ेगा। यह भी कहा जाता रहा ?है कि भारतीय सेना के जवान अधिकतर गांवों से आते हैं और वे महिला अधिकारियों को नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे। यह भी कहा गया था कि अगर किसी युद्ध क्षेत्र में महिला को कमांड?दी गई और उस दौरान अगर वे मातृत्व अवकाश मांगती हैं तो क्या होगा? अगर महिला कमांडर के नेतृत्व में कोई टुकड़ी दूरदराज के क्षेत्रों में जाती है तो महिला अफसर के लिए अलग से व्यवस्था करनी होगी। अमेरिकी सेना में महिलाओं की संख्या करीब दो लाख है। कुछ वर्ष पहले ही उन्हें युद्ध में शामिल होने की अनुमति दी गई थी। इस्राइल की महिला सैनिकों को सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। रूस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, ग्रीस, यूक्रेन, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड और रोमानिया आदि देशों में महिलाएं सेना में लड़ाकू और प्रशासन दो तरह की भूमिकाएं ?निभा रही हैं।

तमाम तर्कों के बावजूद भारत की संस्कृति अलग है। सेना में लिंग निरपेक्ष नीतियों का मामला उतना सरल नहीं है, इसके? लिए बहुत लम्बा रास्ता तय करना है। लेकिन महिलाओं को हर फील्ड में समान अवसर देने के संवैधानिक तकाजे को पूरा करने की राह में किसी बाधा को स्वीकार नहीं किया जा सकता। सैन्य बलों में ?पिछले कुछ समय में काफी संख्या में महिलाओं की भर्ती हुई है और उन्होंने अपनी वीरता और देशभक्ति के जज्बे को साबित किया है। महिलाएं जोखिम भरे क्षेत्रों को भी सेवा और करियर के रूप में अपनाने लगी हैं। विषम परिस्थितियों में फौजी दायित्वों को निभाने में इसी गौरवशाली भावना के साथ छात्राएं बड़ी संख्या में एनसीसी कैडेट के रूप में प्रशिक्षण लेती हैं।

आज महिलाएं लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं। नौसेना में महिलाएं महत्वपूर्ण पद सम्भाल रही हैं। सीमाओं पर गश्त भी महिला जवान लगा रही हैं। यह भी विडम्बना ही रही कि शारीरिक विन्यास के कारण महिलाओं को पुरुषों से कमजोर समझा जाता रहा, जिस कारण प्रतिरक्षा सेवाओं में उनका योगदान नगण्य था। हम शक्ति के रूप में दुर्गा की उपासना तो करते हैं लेकिन रक्षा सेनाओं के लिए उन्हें अयोग्य मानते रहे।

सोचने की बात है कि अमेरिकी फौज की महिलाएं इराक और अफगानिस्तान में लड़ सकती हैं। अफगानिस्तान की अनेक महिलाओं ने तालिबान को टक्कर दी है तो फिर भारतीय महिलाएं क्यों नहीं? अगर पैरामिलिट्री फोर्सेज पुलिस में महिलाओं की भागीदारी हो सकती है तो फिर सेना में क्यों नहीं? नौसेना की चार शाखाओं कार्यकारी, इलैक्ट्रिकल, इंजीनियरिंग शिक्षा और आज की तारीख में सभी शाखाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी गई। केन्द्र सरकार ने अभी सुप्रीम कोर्ट में एनडीए में लड़कियों के प्रवेश के मामले पर अपना जवाब दाखिल करना है। अब महिलाओं की हर क्षेत्र में बढ़ती भूमिका का देखते हुए उन्हें सेना में रोकना अनुचित ही होगा। सेना में महिलाओं के लिए एक व्यवस्था कायम करनी होगी। उम्मीद है कि सरकार और सेना को एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। सेना में महिलाओं के लिए रोडमैप तैयार करना होगा।