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पूर्णिया पूर्व पीएचसी को मिली 13 एएनएम, नियमित टीकाकरण को लेकर नवनियुक्त एएनएम को मिला प्रशिक्षण:

  • नियमित टीकाकरण को लेकर विस्तृत रूप से दी गई जानकारी: डॉ शरद
  • नियमित टीकाकरण के लिए अभिभावकों को प्रेरित करने की जरूरत: डब्ल्यूएचओ
  • नवजात शिशुओं एवं बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने  के लिए जरूरी है नियमित टीकाकरण: यूनीसेफ
  • शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में काफी सहायक होता नियमित टीकाकरण: बीएचएम

पूर्णिया, 01 सितंबर।

पूर्णिया पूर्व पीएचसी में 13 नवनियुक्त एएनएम को नियमित टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। पूर्णिया पूर्व पीएचसी के सभागार में एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण शिविर में पूर्णिया पूर्व पीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ शरद कुमार द्वारा सभी 13 नवनियुक्त एएनएम प्रशिक्षुओं को नियमित टीकाकरण के फायदे, इसके रख-रखाव के तरीके, किस रोग में कौन सी टीके लगानी चाहिए, सुरक्षित इंजेक्शन एवं टीकाकरण के कचरे को निष्पादन करने के बारे में जानकारी दी गई। जिसमें प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार झा, केयर इंडिया के अरूप, बीएचएम विभव कुमार, यूनिसेफ व एआईएच के जिला समन्वयक धर्मेंद्र कुमार द्वारा नियमित टीकाकरण के संबंध में विस्तार से बताया गया।

नियमित टीकाकरण को लेकर विस्तृत रूप से दी गई जानकारी: डॉ शरद

पूर्णिया पूर्व पीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ शरद कुमार ने बताया नवजात शिशुओं को कई तरह के रोगों से बचाने के लिए संपूर्ण टीकाकरण बहुत जरूरी होता है। टीकाकरण  न्यूमोकोकल टीका (पीसीवी) निमोनिया, सेप्टिसीमिया, मैनिंजाइटिस या दिमागी बुखार आदि से बचाव करता है। वहीं जन्म होते ही ओरल पोलियो, हेपेटाइटिस बी, बीसीजी के टीके दिए जाते हैं जबकि डेढ़ महीने बाद ओरल पोलियो-1, पेंटावेलेंट-1, एफआईपीवी-1, पीसीवी-1, रोटा-1 की ख़ुराक़ दी जाती है। इसी तरह ढाई महीने बाद ओरल पोलियो-2, पेंटावेलेंट-2, रोटा-2 और साढ़े तीन महीने बाद ओरल पोलियो-3, पेंटावेलेंट-3, एफआईपीवी-2, रोटा-3, पीसीवी-2 इसके अलावा नौ से 12 माह के अंदर मीजल्स 1, मीजल्स रुबेला 1, जेई 1, पीसीवी-बूस्टर, विटामिन ए की टीके लगाए जाते हैं। वहीं 16 से 24 माह के अंदर मीजल्स 2, मीजल्स रुबेला 2, जेई 2, बूस्टर डीपीटी, पोलियो बूस्टर, जेई 2 के टीके दिए जाते हैं। हालांकि 05 से 6 साल के अंदर डीपीटी बूस्टर 2, 10 वर्ष से लेकर 15 वर्षो के अंदर टेटनेस की सुई दी जाती है। जबकिं गर्भवती महिला को टेटनेस 1 या टेटनेस बूस्टर दिया जाता है। अगर कोई बच्चा छह महीने से कम का है, तो 6 महीने तक नियमित रूप से केवल स्तनपान कराने की आवश्यकता होती है। क्योंकि स्तनपान प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होती है।

नियमित रूप से टीकाकरण के लिए अभिभावकों को प्रेरित करने की जरूरत: डब्ल्यूएचओ

डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार झा ने सभी प्रशिक्षुओं को बताया राज्य में नियमित टीकाकरण 83 प्रतिशत है। नियमित टीकाकरण को अभी और बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए सभी एएनएम को कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। क्षेत्र में आप सभी को आंगनबाड़ी सेविका एवं सहायिकाओं सहित आशा कार्यकर्ताओं द्वारा सहयोग मिलता है। डॉ झा ने कहा कि सभी एएनएम को टीकाकरण के महत्व के बारे में टीकाकरण कराने आने वाली महिलाओं एवं अभिभावकों को विस्तृत रूप से सलाह देने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। जब तक अभिभावक यह नहीं  समझ पाएंगे कि नियमित टीकाकरण होता क्या है और इससे क्या फ़ायदे हैं तब तक कोई भी अभिभावक अपने नौनिहालों को किसी भी तरह की कोई वैक्सीन नही लगवाएंगे।

नवजात शिशुओं एवं बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने  के लिए जरूरी होता नियमित टीकाकरण: यूनीसेफ

यूनीसेफ सह एआईएच के जिला समन्वयक धर्मेंद्र कुमार ने नवनियुक्त एएनएम को प्रशिक्षण के दौरान कहा यह एक स्वस्थ्य राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कायर्क्रम है जो गर्भवती महिलाओं से आरंभ होकर शिशु को पांच साल तक नियमित रूप से दिये जाते हैं। नियमित रूप से दिए जाने वाला टीकाकरण शिशुओं को कई प्रकार की जानलेवा बीमारियों से बचाता है। शिशुओं को दिए जाने वाला टीका शिशुओं के शरीर में कई गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित और मजबूती प्रदान करता है। इस प्रकार कई तरह की जानलेवा बीमारियों से शिशुओं को बचने के खास टीके विकसित किये गये हैं, जिनका टीकाकरण करवाना आवश्यक है।

शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में काफी सहायक भी होता है नियमित टीकाकरण: बीएचएम

बीएचएम विभव कुमार ने बताया नियमित टीकाकारण कार्य के लिए दक्ष होना अतिआवश्यक है। क्योंकि इन टीकों को देने की प्रक्रिया अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि सही ढ़ंग से टीका नहीं दिया गया तो इसका लाभ नहीं मिल पायेगा, इसलिए आवश्यक है कि टीकाकरण कार्य के लिए टीकाकर्मियों को प्रशिक्षित किया जाए। ससे धन, ऊर्जा एवं जीवन की बचत होती है तथा शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में काफी सहायक भी होता है। टीकाकरण के दौरान पड़ने वाली वैक्सीन शरीर को रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती  है। टीका हमेशा सही रूट एवं सही जगह पर देना चाहिए तथा टीके वाले जगह पर रूई से हल्का दबाना चाहिए न कि उस स्थान को रगड़ दें। शिशु को कभी भी कूल्हे पर टीका न दें, इससे टीका का असर कम होता है और उस क्षेत्र के नसों को नुकसान हो सकता है।

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