राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

गाय भारत की संस्कृति है और इसका संरक्षण करना हर किसी का दायित्व है

राष्ट्रनायक न्यूज।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाने की मांग करते हुए कहा है कि गाय का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। गाय को भारत देश में मां के रूप में जाना जाता है और देवताओं की तरह उसकी पूजा होती है। गाय भारत के लिये केवल एक जन्तु नहीं है, बल्कि वह जन-जन की आस्था का केन्द्र है। मां के दूध के बाद केवल गाय के दूध को ही अमृत तुल्य माना गया है। गौवंश संवर्धन देश की जरूरत है। गाय के संरक्षण, संवर्धन का कार्य मात्र किसी एक मत, धर्म, संप्रदाय या सरकार का नहीं है बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर एक नागरिक, चाहे वह किसी भी धर्म की उपासना करने वाला हो, की जिम्मेदारी है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जरूरत है गाय के महत्व को समझने की, इसी महत्व को समझते हुए कोर्ट ने कहा कि गाय के संरक्षण को हिंदुओं के मौलिक अधिकार में शामिल किया जाए। कोर्ट की यह दृष्टि एवं जागरूकता भारत संस्कृति का सम्मान है, उसके गौरव की अभिवृद्धि का उपक्रम है। इस सराहनीय पहल के लिये कोर्ट धन्यवाद का पात्र है।

राजनीतिक एवं साम्प्रदायिक आग्रहों एवं स्वार्थों के चलते गौ-हिंसा एवं अत्याचार को जायज नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह की धर्म एवं आस्था से जुड़ी भावनाओं में अहिंसा एवं मानवीयता जरूरी है। गाय का संरक्षण पूरी तरह मानवतावादी कृत्य है, उसके साथ हिंसा किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। इन्हीं सन्दर्भों के साथ भारतीय शास्त्रों, पुराणों व धर्मग्रंथ में गाय के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कोर्ट ने कहा कि भारत में विभिन्न धर्मों के नेताओं और शासकों ने भी हमेशा गौ-संरक्षण की बात की है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में भी कहा गया है कि गाय नस्ल को संरक्षित करेगा और दुधारू व भूखे जानवरों सहित गौ हत्या पर रोक लगाएगा। भारत के 29 राज्यों में से 24 में गौ हत्या पर प्रतिबंध है।

गौ हत्या के आरोपी जावेद की जमानत अर्जी नामंजूर करते हुए न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने कहा कि सरकार को संसद में बिल लाकर गाय को मौलिक अधिकार में शामिल करते हुए राष्ट्रीय पशु घोषित करना होगा और उन लोगों के विरुद्ध् कड़े कानून बनाने होंगे, जो गायों को नुकसान पहुंचाते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब गाय का कल्याण तभी इस देश का कल्याण होगा। गौ-हत्या अराष्ट्रीय एवं अमानवीय कृत्य हैं। गौ हत्या जारी रही तो यह देश के लिए घातक होगा। क्योंकि इस भारत भूमि पर गौ माता को किसी भी तरह का कष्ट देना, देश को अशांत करना है। इसकी अशांति स्वप्न में भी दूर नहीं हो सकती क्योंकि इस राष्ट्र के लोगों को पता ही नहीं कि एक अकेली गाय का आर्तनाद सौ-सौ योजन तक भूमि को श्मशान बना देने में सक्षम है। इसीलिये महात्मा गांधी ने कहा था- गौवध को रोकने का प्रश्न मेरी नजर में भारत की स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है।

आज जब दुनिया के बहुत से देश अपनी संस्कृति को भुलाते जा रहे हैं और भारतीय संस्कृति हजारों वर्षों के संघर्ष के बाद भी कायम है तो इसके मूल में कहीं न कहीं गाय है। गाय हमारी संस्कृति की प्राण है, चेतना है। प्राचीन काल से ही गाय भारतीय संस्कृति व परंपरा का मूलाधार रही है। गंगा, गोमती, गीता, गोविंद की भांति शास्त्रों में गाय भी अत्यंत पवित्र मानी गई है। गोपालन व गौ-सेवा तथा गोदान की हमारी संस्कृति में महान परंपरा रही है। गौ-सेवा भी सुख व समृद्धि का एक मार्ग है। वेद-पुराण, स्मृतियां सभी गो-सेवा की उत्कृष्टता से ओत-प्रोत हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थों का साधन भी गौमाता ही रही हैं। दरअसल भारत की संस्कृति मूल रूप से गौ-संस्कृति कही जाती है। गाय श्रद्धा के साथ-साथ हमारी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य एवं संस्कृति का प्रमुख आधार है।

हिन्दू धर्म में गाय का महत्व इसलिए नहीं रहा कि प्राचीन काल में भारत एक कृषि प्रधान देश था और आज भी है और गाय को अर्थव्यस्था की रीढ़ माना जाता था। भारत जैसे और भी देश हैं, जो कृषि प्रधान रहे हैं लेकिन वहां गाय को इतना महत्व नहीं मिला जितना भारत में। दरअसल हिन्दू धर्म में गाय के महत्व के कुछ आध्यात्मिक, धार्मिक और चिकित्सीय कारण भी रहे हैं। गाय एकमात्र ऐसा पशु है जिसका सब कुछ सभी की सेवा में काम आता है। गाय का दूध, मूत्र, गोबर के अलावा दूध से निकला घी, दही, छाछ, मक्खन आदि सभी बहुत ही उपयोगी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो आॅक्सीजन ग्रहण करता है और आॅक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी आॅक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं। आजकल भूमि भी जहरीली होती जा रही है जिससे उसमें उगने वाली वनस्पतियों में विषाक्तता बढ़ती जा रही है। इसके लिए हमें गोबर की खाद का प्रयोग करना होगा, तभी हमारी भूमि बच सकती है। इसके लिए हमें गाय को बचाना होगा।

देश में समय-समय पर गौहत्या के विरोध में आन्दोलन हुए हैं। 1967 में गौ-हत्या को लेकर उग्र आन्दोलन हुआ, संसद भवन को साधु-सन्तों ने घेरा था तो पुलिस ने उन पर बल प्रयोग किया था और लाठी-गोलियां भी चलाई थीं। तत्कालीन गृहमन्त्री स्व. गुलजारी लाल नन्दा को इस्तीफा देना पड़ा था। तत्कालीन इन्दिरा सरकार ने भारत की सांस्कृतिक एवं धार्मिक आस्था से जुड़े इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। अनेक धर्मगुरु एवं शंकराचार्यजी गौवंश के संवर्धन के लिए जीवनपर्यन्त समर्पित रहे और उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों पर गौशालाएं व गोचर भूमि सृजन के लिए प्रयास किये। लेकिन वर्तमान में गाय भी राजनीति की शिकार हो गयी है। यही कारण है कि गौ के संरक्षण एवं गौ-उत्पाद को प्रोत्साहन देने की बजाय ऐसी मानसिकताएं तैयार हो रही है, जो गौ-हत्याओं को अंजाम देते हुए राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकते हैं।

यह अपेक्षित है कि गौमांस का किसी भी रूप में वैध बूचड़खानों तक में नामोनिशान न हो। गौवंश का कारोबार केवल दूध व डेयरी उत्पादन के लिए ही हो। हमें नहीं भूलना चाहिए कि दुग्ध उत्पादन से लेकर डेयरी उद्योग के विभिन्न कार्यों में मुसलमान नागरिक बहुतायत में लगे हुए हैं और उनकी रोजी-रोटी इसी से चलती है। कानून का पालन करना इनका भी पहला धर्म है और गौवंश की रक्षा करने में इन्हें भी अपना योगदान देना होगा और भारत के सुदूर गांवों में कुछ अपवादों को छोड़ कर मुस्लिम नागरिक अपना यह कत्र्तव्य निभाते भी हैं। आज राजनीतिक सोच बदल रही है, मतदाता भी बदल रहा है, सब कोई विकास चाहते हैं। हमें भारत को जोड़ना है, हिन्दू-मुसलमान का भेद समाप्त करना है, और इसके लिये जरूरी है कि गाय को लेकर राष्ट्रीय मुख्यधारा को बनाने व सतत प्रवाहित करने की। ऐसा करने में और करोड़ों को उसमें जोड़ने में अनेक महापुरुषों-संतों ने खून-पसीना बहाकर इतिहास लिखा है। क्योंकि इस तरह की मुख्यधारा न तो आयात होती है, न निर्यात। और न ही इसकी परिभाषा किसी शास्त्र में लिखी हुई है। जो देश, काल, स्थिति एवं राष्ट्रहित को देखकर बनती हैं, जिसमें हमारी संस्कृति, विरासत सांस ले सके। इसे हमें कलंकित नहीं होने देना है। कोर्ट ने सही कहा कि हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जब-जब हम अपनी संस्कृति को भूले हैं तब-तब विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर गुलाम बनाया है। आज भी हम न चेते तो अफगानिस्तान पर निरंकुश तालिबानियों का आक्रमण और कब्जे को हमें भूलना नहीं चाहिए। विडम्बना है कि हिंदुस्तान की बात नहीं होती, राष्ट्रीयता की बात नहीं होती, ईमान, इंसानियत और इंसान की बात नहीं होती। चाहे गाय हो या राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान हो या राष्ट्र-चरित्र-ये देश को जोड़ने के माध्यम हैं, इन्हें हिन्दुस्तान को बाँटने का जरिया न बनाये।
ललित गर्ग