बारहखड़ी और स्वर, व्यंजन,
अनुप्रास और यमक।
उंगली पर याद पहाड़े,
एक्स की वैल्यू समझने की कशमकश।
हेमलेट से विषुवत रेखा और,
रानी झांसी से आखिरी नवाब तक का सफर
उंगली पर याद रहते थे,
एक अरब में कितने सिफर।
नक्शे में ढूंढते फिरते हम,
नील नदी का लंबा सफर।
होती कितनी हड्डियां शरीर में,
कैसे बुखार पढ़ लेता थमार्मीटर।
कितने किस्से, कितनी यादें,
बंद हैं मन के बस्ते में।
राष्ट्रनायक न्यूज।
स्कूल की पसंदीदा टीचर के लिए एक गुलाब का फूल ले जाना जब दुनिया की सबसे बड़ी खुशी हुआ करता था और अगर वो गुलाब उन्हें जूड़े में लगाने लायक लग जाए तो इस धरती पर सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हम हुआ करते। क्लास में अगर किसी काम से सर हमारा पेन मांग लिया करते तो किसी सेलिब्रिटी से कम रुतबा नहीं होता था हमारा। पूरी क्लास में शान बढ़ जाती, क्योंकि हाजिरी का रजिस्टर या टेस्ट की कॉपीज, सर या मैडम हमसे उठाने को कह देते। ऐसी अनगिनत यादें स्कूल के दिनों का हिस्सा हैं। जब सामने टीचर्स को देखकर हाथ अपने आप जुड़ जाया करते थे और आंखें सम्मान से झुक जाया करती थीं। कुछ समय पहले हम कुछ मित्र सपरिवार साथ बैठे गप्पें मार रहे थे। हमारे साथ सभी परिवारों के बच्चे भी बैठे थे। और जैसा कि आमतौर पर होता है, बच्चों से बात करने के लिए बड़ों के पास कुछ वही घिसे पिटे सवाल होते हैं। बेटा कौन सी क्लास में हो और बड़े होकर क्या बनोगे? बच्चे भी कई बार सोचते होंगे, इनको बड़ा किसने बना दिया! इनको तो तीन से ज्यादा सवाल भी पूछने नहीं आते। इसलिए ही शायद ‘बड़े लोग’ हमारे सवालों से घबराते हैं।
तो खैर, सभी बच्चों ने अपने या अपने पैरेंट्स की पसन्द के जवाब दिए, लेकिन एक बच्ची जिसका जवाब मुझे आज भी याद है। वह था-‘आंटी, मैं न टीचर बनूंगी। मुझे पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।’ बड़े पैकेजेस, मल्टीनेशनल जॉब्स और तमाम महत्वाकांक्षाओं के बीच यह जवाब हैरत में डाल देने वाला था। उस बच्ची की मां जो एक डॉक्टर हैं, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, वो वाकई बहुत बहुत अच्छे से किसी भी बात को समझाती हैं, एकदम अच्छे टीचर की तरह। उस बच्ची को तो मैंने ढेर सारे आशीष दिए ही उसके पैरेंट्स को भी धन्यवाद दिया कि उन्होंने उसके सपने में अपने अरमानों की बाधा नहीं डाली। अभी वह बच्ची कॉलेज के पहले वर्ष में है और आर्ट्स विषय पढ़ रही है। उसके इरादे अब और भी दृढ़ हैं कि वह हिस्ट्री की टीचर बनेगी और बहुत इंटरेस्टिंग तरीके से पढ़ाएगी, क्योंकि अक्सर बच्चों को हिस्ट्री बोर लगती है। उसका पूरा परिवार उसके सपोर्ट में है।
मुझे याद है उस समय शायद मैं नौवीं क्लास में थी और हमें संस्कृत विषय मे रामायण का एक छोटा सा दृश्य भी अध्याय के रूप में था। टीचर थे द्विवेदी जी। वो सबसे पहली चीज जो उन्होंने उस चैप्टर को पढ़ाने से पहले की, हम सभी बच्चों के लिए आश्चर्य में भर देने वाली थी। उन्होंने कहा- ‘आप सभी अपने अपने जूते उतार देंगे और पाठ शुरू करते समय श्रद्धा से हाथ जोड़ेंगे। इसलिए नहीं कि यह धर्मग्रंथ का हिस्सा है, बल्कि इसलिए कि इसे लिखने के पीछे का प्रयोजन, मेहनत और सबसे बढ़कर लेखन के प्रति श्रद्धा इसे सम्मान का पात्र बनाती है।’ जितने दिन वह चैप्टर चला, हमने वही तरीका दोहराया।
इस तरह चौऋषि सर, जिन्होंने हवा में हाथ घुमाकर पायथागोरस प्रमेय को हल करना सिखाया था। वे हमेशा कहा करते- गणित जादू है। इसके लिए पेपर और पैन की बिल्कुल जरूरत नहीं। बस आंखें बंद कीजिए और हवा में उंगलियां घुमाते हुए नंबरों से खेलिए। टीचर्स की वह बिरादरी अब उंगलियों पर गिनने लायक बची है। ऐसा नहीं है कि अब टीचर्स सिंसियर नहीं होते, लेकिन मुश्किल यह है कि अब ढेर सारे संसाधन होते हुए भी टीचर्स के पास पढाने के अलावा भी कई तरह के प्रेशर हैं। ऐसे में अच्छा टीचर बने रहना एक मुश्किल टास्क है। तो क्या है एक अच्छे टीचर का मतलब? मेरे ख्याल से एक अच्छा टीचर वह है जो बच्चों को एक सामान्य इंसान समझकर, उनमे बिना किसी प्रकार का भेदभाव करे बिना उनको प्रश्न करने की स्वतंत्रता दे और उन्हें सिखाने के साथ खुद के सीखने का भी स्कोप रखे। ऐसे टीचर जिंदगियां बनाते हैं और हमेशा याद रखे जाते हैं। क्या आपकी जिंदगी मे भी ऐसा कोई टीचर रहा है?


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