राष्ट्रनायक न्यूज

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सिलेबस का चीरहरण उन्हें भी नजर नहीं आया

लेखक:- अहमद अली

राजनीति विज्ञान के सिलेबस में जेपी और लोहिया को शामिल करने की मुहिम तो आंशिक ही सही, सफल हो गयी। इनके साथ ही बाकी इतिहास पुरुषों को, जिन्हें सिलेबस से हटाया गया है, उनको भी पुनः स्थापित करने की माँग जारी रहनी चाहिये। बेशक, धन्यवाद के पात्र हैं एस एफ आई के छात्र और कार्यकर्ता जिन्होनें तथ्य को प्रकाश में लाया। फिर दैनिक समाचार पत्र ने भी जागरुकता बढा़ने में कोई कसर न छोडी़। हाँ इस दौरान कुछ संकृण और तुच्छ विचार वालों का उपहास तथा ओछी प्रतिक्रिया भी देखने को मीली, जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं था। सबसे चिन्ताजनक है, कुछ ऐसे बुद्धिजीवीयों की चुप्पी जो जे पी विश्वविद्यालय में सम्मानित शिक्षक भी रहे हैं। उनकी शर्मनाक “चुप्पी” अभियान का माखौल उडा़ने वालों को समर्थन ही दे रही थी। ऐसे ही, जैसे पांचाली के चीर हरण को महाभारत के योद्धा गुनाह आंखों से देख रहे थे। उनमें जे पी और लोहिया पर लम्बा भाषण देने वाले तथा प्रगतिशीलता पर दार्शनिक मुद्रा अपनाने वाले कुछ सेवानिवृत्त शिक्षक भी शामिल हैं। वहाँ तो एक लाचारी थी, क्योंकि पांडव जुआ हार गये थे। यहाँ इनको क्या लाचारी थी वो स्वंय जानते हैं। आश्चर्य है, इस जानकारी के साथ कि लगभग 1 साल पहले ही यह सिलेबस घोटाला बरपा हो गया था। भविष्य उनसे तो सवाल पूछेगा ही, “क्या आपका नजरिया बदल गया था” ? थोड़ी देर के लिए लोहिया,गोखले और तिलक को छोड़ भी दें, जे पी तो आपके ही की धरती के लोकनायक थे। कई तो जे पी आंदोलन के भागीदार भी रहे हैं। जयप्रकाश जिन्दाबाद , आपातकाल मुर्दाबाद के नारे भी लगाये होगें। फिर भी एक वर्ष का बनवास उन्हें क्यों नजर नहीं आया, चौंका देने वाली बात है। समय के सवालों का जवाब देना पडे़गा उन तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को।
कौन नहीं जानता कि वर्तमान केंद्र सरकार की सरकारी मुहिम, उसके वजूद में आने के साथ ही चल रही है कि इतिहास से उन तत्वों को बाहर कर दो, जिनका विचार मनुवाद और भगवाकरण के विपरीत है।आये दिन प्रतिक्रियावादी विचारकों को सिलेबस में शामिल करने के लिये कई सेमिनार आयोजित किये गये और किये भी जा रहे हैं। ( कुछ और बाद में)

(लेखक के अपने विचार है।)