कभी कभी हवाओं का रूख भी बदल जाता है,
माँ बेटे से नहीं पूछती कि तु किधर जाता है।
शाम हो जाये और बेटी घर ना आये तो सबका दिल निकल जाता है।
फिर भी माँ बेटों से नहीं पूछती तु किधर जाता है।
एक ही जिगर के दोनों टुकडे़ है लेकिन
एक कोहिनूर तो दूसरा बेनूर नजर आता है
माँ बेटे से नहीं पूछती तु किधर जाता है।
आवाज दिल की आये तो सुनो यारों
दिल की निकली आह से लोहा भी पिघल जाता है
माँ,बेटे से नहीं पूछती तो किधर जाता है।
लेखक: सूर्येश प्रसाद निर्मल। शीतलपुर।
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