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जीत कार्यक्रम : पूर्णिया एवं मोतिहारी ज़िले को मर्म बॉक्स का पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किया जा रहा है प्रयोग

  • टीबी विभाग मरीजों पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल कर रहा है आधुनिक तकनीक, क्योंकि ‘मर्म’ बॉक्स रखता है मरीजों की खुराक पर नजर:
  • यक्ष्मा संक्रमण  का इलाज संभव: सीडीओ
  • जीत कार्यक्रम के तहत अब एक नई तकनीक का लिया जा रहा है सहयोग: रंजीत कुमार
  • टीबी के मरीज़ों को हरा, पीला लाल रंग वाली बत्ती से मिलेगी सुविधाएं: डीसी

पूर्णिया, 13 अक्टूबर।

स्वास्थ्य विभाग (यक्ष्मा) के द्वारा जीत कार्यक्रम के तहत बिहार के पूर्णिया एवं मोतिहारी ज़िले को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। अगर यह तकनीक पायलट परियोजना के तहत इन दो जिलों में सफलतापूर्वक लागू होता है तो उसके बाद राज्य के सभी जिलों में इसको शुरू किया जा सकता है। ज़िले के क्षय रोगी टीबी आरोग्य साथी एप द्वारा अपनी प्रगति रिपोर्ट देखा करते थे लेकिन अब “मेडिकेशन इवेंट एंड मॉनिटर रिमाइंडर” (मर्म) बॉक्स के माध्यम से दवा खाने के लिए याद दिलाने का काम करेगा। यक्ष्मा कार्यालय में संचारी रोग पदाधिकारी मो० साबिर के द्वारा टीबी के मरीजों को जीत कार्यक्रम के अंतर्गत ‘मर्म बॉक्स (MERM BOX’ )का वितरण किया गया। इस अवसर पर सीडीओ डॉ महमद साबिर, डीपीएस राजेश कुमार शर्मा, वरीय क्षेत्रीय पदाधिकारी रंजीत कुमार, जीत कार्यक्रम के जिला समन्वयक अभय श्रीवास्तव सहित कई अन्य स्वास्थ्य कर्मी मौजूद थे।

यक्ष्मा संक्रमण पुरानी एवं जटिल रोग है लेकिन इसका इलाज संभव: सीडीओ

सीडीओ डॉ साबिर ने टीबी के मरीजों से अपील करते हुए कहा कि यक्ष्मा एक प्रकार की बहुत पुरानी एवं जटिल रोग है लेकिन इसका इलाज भी संभव है। डायरेक्ट ऑब्जर्वेशन ट्रीटमेंट शॉर्ट फॉर्म (डॉट्स) इसका मतलब यह होता हैं कि दवा खिलाने वाले स्वास्थ्य कर्मी प्रत्यक्ष रूप से मरीज़ों को दवा खिलाने का काम करते हैं। सामान्य टीबी रोगी समय पर दवा खायें, इसके लिए ज़िलें के सभी पीएचसी पर इसकी सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध हैं। हालांकि अगर देशवासियों का सहयोग मिलता रहेगा तो एक दिन टीबी के मरीजों से देश को मुक्त किया जा सकता है। हालांकि अब वह दिन दूर नहीं है। जब टीबी मुक्त अभियान की शत प्रतिशत सफ़लता के बाद समाप्ति हो। भारत सरकार द्वारा टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य 2025 रखा गया है।

जीत कार्यक्रम के तहत अब एक नई तकनीक का लिया जा रहा है सहयोग: रंजीत कुमार

जीत कार्यक्रम के वरीय क्षेत्रीय पदाधिकारी रंजीत कुमार ने बताया टीबी के मरीज नियमित रूप से दवा लें, इसके लिए यक्ष्मा केंद्र द्वारा जीत कार्यक्रम के सहयोग से अब एक नई तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। टीबी मरीजों को मेडिकेशन इवेंट एंड मॉनिटर रिमाइंडर (मर्म) बॉक्स दिया जा रहा है। इसमें दवाओं की खुराक रहती है और जिसमें एक चिप भी लगी रहती है। मरीज इसमें से जैसे ही दवा लेता है विभाग को इसकी जानकारी मिल जाती है। जीत कार्यक्रम के अंतर्गत 210 मरीज़ो को यह मर्म बॉक्स दिया जाना है। पहले दिन सीडीओ द्वारा 06 मरीज़ों को देकर इसकी शुरुआत की गई है। अगर प्रयोग सफल होता है, तो इसे राज्य के दूसरे जिलों में भी शुरू किया जाएगा। यक्ष्मा के मरीज कई बार डॉट्स सेंटर से दवाइयां लेकर तो घर चले जाते हैं, लेकिन नियमित रूप से इसका सेवन नही कर पाते हैं। जिस कारण बीमारी तो ठीक होती नहीं हैं। हालांकि संक्रमण बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।

टीबी के मरीज़ों को हरा, पीला लाल रंग वाली बत्ती से मिलेगा सहयोग:

जीत कार्यक्रम के जिला समन्वयक अभय श्रीवास्तव ने बताया मर्म बॉक्स एक तरह का इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसका मुख्य उद्देश्य यक्ष्मा के मरीज़ों का सफलतापूर्वक इलाज कराया जाना है। इस बॉक्स में यक्ष्मा की दवाई रखी जाती है। इसमें तीन अलग-अलग प्रकार की लाइट जलती है। हरी लाइट मरीज को यह याद दिलाता है कि प्रत्येक दिन आपको दवा खाने का समय आ गया है। आप बॉक्स खोलें और दवा ले उसके बाद बॉक्स को बंद कर दें। बॉक्स बंद करने के बाद डिजिटल रिकॉर्ड में सेव हो जाता है कि टीबी के मरीज द्वारा आज की दवा खा ली गई है। वहीं पीली लाइट यह दर्शाता है कि आपकी दवा खत्म होने वाली है, जल्द ही आप अपने नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र पर जाकर दवा लेकर बॉक्स में पुनः रख दें। जबकिं लाल बत्ती यह दर्शाता है कि मर्म बॉक्स की बैट्री खत्म होने वाली है। बॉक्स के साथ दी गई चार्जर से अपने मर्म बॉक्स को चार्ज कर लें ताकि आपका इलेक्ट्रॉनिक उपकरण सुरक्षित रहे।

क्षयरोग के मुख्य लक्षण:

  • लगातार 2 सप्ताह तक या उससे अधिक दिनों तक खांसी का रहना।
  • खांसी के साथ खून का आना एवं छाती में दर्द।
  • लगातार वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना।
  • शाम को बुखार का आना, ठंड लगना व रात्रि में पसीना आना।