राष्ट्रनायक न्यूज।
भारत में न्यायिक सुधारों की जरूरत लम्बे समय से महसूस की जा रही है। अदालतों में लम्बी-लम्बी बहसों, सालों तक चलने वाली सुनवाई के कारण आम आदमी का भरोसा न्याय व्यवस्था से एक हद तक डिगने लगा है। अनेक ऐसे मामले हैं जो अदालतों में दशकों तक न्याय की बाट जोहते पड़े रहते हैं। खासतौर पर यौन हिंसा से संबंधित मामलों पर त्वरित कार्यवाही की लगातार मांग किए जाने के बावजूद व्यावहारिक स्तर पर इनका जल्दी निपटान सम्भव नहीं हो पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट बार-बार मुकद्दमों की सुनवाई के लिए समय सीमा की वकालत करता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ऐसी टिप्पणियां पहले ही कर चुका है कि ‘‘हम दशकों पुराने मामलों को लम्बित रखकर ताजा मामले पर वरिष्ठ वकीलों की घंटों-घंटों दलील को जायज कैसे ठहरा सकते हैं? ब्रिटेन और अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा कोई सिस्टम नहीं जो वकीलों को घंटों बहस की अनुमति देता हो।’’
अब सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कोलकाता हाईकोर्ट के एक आदेश के चुनौती देने वाली केन्द्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि ‘‘मुकद्दमों की सुनवाई तय समय में हो, इसे लेकर कदम उठाने का समय आ गया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याद दिलाया कि जब न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया भारत के मुख्य न्यायाधीश थे तब उन्होंने सुझाव दिया था कि मामलों पर सुनवाई के लिए समय सीमा तय की जाए। इस सुझाव को आए तीन दशक बीत चुके हैं। पीठ ने कहा कि अब इस बारे में सोचने का वक्त आ गया और इस दिशा में कदम उठाने का वक्त आ गया है। इसी बीच बिहार में अररिया जले की अदालत ने एक दिन में फैसला सुनाकर पूरे देश के लिए नजीर कायम कर दी है। ?जिला अदालत ने पाक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले में सुनवाई करते हुए एक ही दिन में गवाही सुनने और बहस के बाद आरोपी को दोषी?ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी है। यह फैसला पाक्सो एक्ट के लिए बनी स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश शशिकांत राय ने सुनाया है। इससे पहले भी न्यायाधीश शशिकांत राय ने दस वर्ष की मासूम बच्ची से गैगरेप के बाद हत्या के मामले में एतिहासिक फैसला सुनाया था। इस फैसले में कोर्ट ने आरोपी को फांसी की सजा दी है। इससे पहले 4 अक्तूबर को भी अदालत ने एक और मामले में 8 साल की बच्ची से रेप के आरोपी को अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई थी।
बहुत दबावों के बाद सरकार ने अप्रैल 2019 में बलात्कार के मामलों में जल्दी निपटारे के लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित करते हुए अध्यादेश निकाला था। इसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों की जांच और ट्रायल, प्रत्येक के लिए दो-दो माह की समय सीमा होगी। धरातल के स्तर पर ऐसा नहीं हो रहा। इस तरह चैक बाउंस होने के मामले के ‘द निगोशिएबल इस्ट्रमेंट अधिनियम 1881 के अन्तर्गत 6 माह में निपटाने का कानून बनाया गया था परन्तु वास्तविकता में यह मामले औसत 4 वर्ष तक चलते रहते हैं। यौन अपराध अधिनियम 2012 के अन्तर्गत बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध मामलों को अधिकतम एक वर्ष की अवधि के अन्दर ही निपटाने का कानून बनाया गया लेकिन ऐसे मुकद्दमें भी बहुतायत में पड़े हुए हैं। अलग-अलग कानून के मामलों में निपटान की समय सीमा के बावजूद इसका पालन न किए जाने के पीछे कई कारण हैं। दरअसल समय सीमा का अनुपालन न किए जाने पर कोई गम्भीर कदम नहीं उठाए जाते।
यह भी सच है कि न्यायाधीशों को केवल न्याय की गति का नहीं बल्कि उसकी गुणवत्ता का भी ध्यान रखना पड़ता है और अत: न्यायाधीशों पर दबाव नहीं डाला जा सकता। न्याय की गुणवत्ता का ख्याल रखना बहुत जरूरी है। छोटी अदालतों से लेकर बड़ी अदालतों तक वकील मुकद्दमों की सुनवाई में विलम्ब डालने के हथकंडे अपनाते रहते हैं। बड़ी अदालतों में एक ही बिन्दू पर घंटों बहस होती है। कई बार बे सिर-पैर की जनहित याचिकाएं डाली जाती हैं जिससे अदालतों का समय बर्बाद होता है। बेहतर यही होगा कि अलग-अलग तरह के मामलों की समय सीमा को लेकर वैज्ञानिक दृष्टि से काम किया जाए और फिर उन्हें तय करके न्यायाधीशों को उसके लिए जवाबदेह बनाया जाए। इससे एक तो न्यायिक तंत्र में मजबूती आएगी और इससे वादी को मामले के एक निश्चित सीमा से निपटने की उम्मीद बंध सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कानून मंत्रालय एवं अन्य राज्य भी मुकद्दमों की सुनवाई के लिए समय सीमा को लेकर कुछ ठोस कार्य करते हुए आम लोगों को सस्ता एवं त्वरित न्याय तभी मिलेगा जब मुकद्दमों की सुनवाई समय सीमा में हो। वकीलों को भी अदालतों में भारी-भरकम दस्तावेज जमा कराने की बजाय तार्किक बिन्दुओं पर बहस करनी चाहिए। मुकद्दमों के अम्बार लगे हुए हैं, जाहिर है ऐसी स्थिति को और आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इन मुकद्दमों के निपटारे के लिए तेजी से कदम उठाने का समय है। तारीख पर तारीख-तारीख पर तारीख का सिलसिला बंद होना ही चाहिए।
More Stories
हर घर दस्तक देंगी आशा कार्यकर्ता, कालाजार के रोगियों की होगी खोज
लैटरल ऐंट्री” आरक्षण समाप्त करने की एक और साजिश है, वर्ष 2018 में 9 लैटरल भर्तियों के जरिए अबतक हो चूका 60-62 बहाली
गड़खा में भारत बंद के समर्थन में एआईएसएफ, बहुजन दलित एकता, भीम आर्मी सहित विभिन्न संगठनों ने सड़क पर उतरकर किया उग्र प्रदर्शन