लेखक, अहमद अली।
राष्ट्रनायक न्यूज। महात्मा ज्योतिराव फूले का संघर्ष और उनके संघर्षों की कार्यसूचि (ऐजेंडा) आज भी प्रासंगिक हैं। महत्वपूर्ण यह है, कि वो युवा शक्ति में पूरी तरह विश्वास करते थे। इसीलिये उन्होंने नौजवानों का आह्वान करते हुए कहा था, आप आगे आऐं और जातिवाद के बंधनों से समाज को मुक्त करें। आप संघर्ष करें, देश, समाज और संस्कृति को सामाजिक बुराइयों तथा अशिक्षा से मुक्ति के लिये। महात्मा ज्योतिराव फुले हमेशा कहा करते थे, बिना शिक्षा के सामाजिक शोषण- उत्पीड़न के विरुद्ध जंग नहीं जीती जा सकती।जिस परम्परा को आगे बढ़ते हुए बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने भी अपने तीन नारों में इसे प्रमुखता दी। महात्मा जी इस सत्य में पूरी तरह यकीन करते थे कि आधी आबादी को घरों में कैद कर या अशिक्षित रख कर कोई भी समाज उन्नति नहीं कर सकता।यही कारण है कि नारी शिक्षा पर उनका विशेष अभियान था।लडा़कियों के लिये उन्होंने 1848 में एक स्कूल की स्थापना की थी, जो पहला बालिका विद्यालय था।शिक्षक नहीं मिला तो अपनी पत्नी को ही शिक्षक के योग्य बना डाला जो सभी कष्ट और सामंती विरोध सहन करते हुए, लेकिन अध्यापन कार्य को कभी छोडा़ नहीं।सावित्रीबाई फुले न केवल उनकी जीवन संगीनी थीं बल्कि संघर्ष का एक सच्चा साथी भी थी। ” मनुष्य के लिये समाज सेवा से बढ़ कर कोई धर्म नहीं है” उनके मुख से निकली हुई यह वाणी मानों धर्म की असल परिभाषा हो।साथ ही धार्मिक आडम्बरों के विरुद्ध एक शंखनाद भी।मनुवादी शोषण और अत्याचार आज से कई गुणा ज्यादा उनके काल में था।उन तमाम सामाजिक जुल्मों के विरुद्ध आजीवन उन्होंने संघर्ष करते हुए मुक्ति का एक ऐसा सशक्त मार्ग प्रदर्शित किया जो आज भी प्रासंगिक और समाजिक योद्धाओं के लिये हमेशा प्रेरणादायी एवं पथ प्रदर्शक बना रहेगा। बालिका विवाह तथा विधवा उत्पीड़न के कट्टर विरोधी तो थे ही, अछूत उत्पीड़न के खिलाफ जूझने मे अपनी जिन्दगी की सारी खुशियाँ कुर्बान कर दी, महामानव ज्योतिराव फुले ने। आईये, आज उनके स्मृति दिवस (28 नवम्बर) पर श्रद्धा पूर्वक उनको न केवल खेराजे अकीदत पेश करें बल्कि उनके सपनों का समाज बनाने का संकल्प भी लें।
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