राष्ट्रनायक न्यूज

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पुरानी दिल्ली में है देखने और घूमने के लिए बहुत कुछ

राष्ट्रनायक न्यूज।
भारत की राजधानी दिल्ली की ऐतिहासिकता का एकमात्र स्थापित प्रमाण पुरानी दिल्ली है जो 1648 में शाहजहां ने बसाई थी। इस शहर की स्थापत्य कला को भव्य रूप में देखा जा सकता है। आज इसकी प्रसिद्धि व्यापारिक व वाणिज्यकीय केंद्र के रूप में है। अपने नाम की सत्यता प्रमाणित करने के लिए पुरानी दिल्ली में शाहजहां की कोई मूर्ति नहीं है। पुरानी दिल्ली ही दिल्ली का एकमात्र ऐसा भाग है जहां से महान उर्दू शायरों मिर्जा गालिब, मीर व जौक की शायरी का प्रसार हुआ। लगभग 400 सालों में पुरानी दिल्ली में काफी परिवर्तन आए हैं। पुरानी दिल्ली पहुंचकर पर्यटकों को अनेक पर्यटन स्थल आकर्षित करते हैं जैसे- लाल किला, जामा मस्जिद, जैन मंदिर, बाप्टिस्ट चर्च, शीशगंज गुरुद्वारा, सुनहरी मस्जिद, टाउन हॉल, फतेहपुरी मस्जिद, सेंट स्टीफन चर्च, गाजीउद्दीन मदरसा, सलीमगढ़ कोर्ट, राजघाट तथा अन्य स्थल।

वर्तमान लाल किला मूलभूत किले का चौथाई हिस्सा ही दशार्ता है, शेष भाग सुरक्षा बलों के अधीन है। 1858 में किले के कई महल नष्ट कर दिए गए। कई तहखाने बंद कर दिए गए तथा सिपाहियों के लिए बैरकों का निर्माण हुआ। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले लाल किला एक लघु शहर था जिसमें अनेक महल, कार्यालय, दुकानें तथा सभागृह थे। कुल 3000 लोग इसमें रहते थे। इसके साथ ही पुरानी दिल्ली में शाह बुर्ज व मोती मस्जिद भी वास्तु एवं कला का अद्भुत नमूना प्रस्तुत करते हैं। पुरानी दिल्ली मंदिरों, गुरुद्वारों एवं चर्चों से घिरी हुई है। बाप्टिस्ट चर्च 1814 में ईसाई पादरियों ने बनवाई थी। लाल किले के सामने स्थित जैन मंदिर भी बहुत भव्य और सुंदर है। अब तो यहां सड़कों का नवीनीकरण और सौंदर्यीकरण भी हो गया है जोकि पर्यटकों को खूब भायेगा।
यहीं पर चांदनी चौक भी स्थित है जिसे शाहजहां की पुत्री जहांआरा ने बनवाया था। चांदनी चौक पुरानी दिल्ली ही नहीं शेष दिल्ली के लिए भी एक प्रमुख व्यापारिक स्थल है। साथ ही यह स्थल खाने-पीने की वस्तुओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। यहां बनने वाले व्यंजनों का आनंद लेने लोग दूर-दूर से आते हैं। पुरानी दिल्ली की तंग गलियों और वहां वर्षों पुरानी बनी इमारतों में संयुक्त रूप से रह रहे लोगों का जीवन देखकर भी आप रोमांचित होंगे। पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में रिक्शे की सवारी, मजेदार व्यंजनों का सेवन और व्यापारिक गतिविधियां देखते ही बनती हैं। शेष दिल्ली की चकाचौंध और दौड़भाग की अपेक्षा यहां एक अलग ही संस्कृति देखने को मिलती है जोकि वर्षों से बरकरार है।

प्रीटी

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