जब ननदें, तीन खटकती है
पर बेटियाँ पाँच ना अटती है,
तुम भी तो, इक बेटी हो
वो भी तो इक बेटी है।
अपनीबेटी, जब हँसती है
तो वो फूल सी लगती है
जब ननदें, रोक ना पाये खुशी
तो तेरी आँखें, क्यों फूटती है।
तुम भी तो, इक बेटी हो
वो तो इक बेटी है।
ननदो के, लिखने पढने पर
क्या धन खरचा करना है
बेटी को पढ़वा लिखवा कर
क्या पत्थर पर, मूरत गढ़ना है,
तुम बेटा- बेटी में अंतर का
एक दोष पुरुष लगता है,
बेटी बेटी अंतर इक, नारी मन हिस्सा है।
सूर्येश प्रसाद निर्मल शीतलपुर तरैयाँ


More Stories
सारण के सांसद रूडी की अध्यक्षता में जिला स्तरीय विकास समन्वय एवं निगरानी समिति (दिशा) की हुई बैठक, विकास योजनाओं पर हुई चर्चा
कार्यपालक सहायकों ने स्थायीकरण की मांग को ले दी चरणबद्ध आंदोलन व अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी
चुनाव आयोग की मनमानी और अलोकतांत्रिक कार्रवाई के विरुद्ध सी पी आई(एम) ने निकाला प्रतिरोध मार्च, डीएम को ज्ञापन सौंपा