जब ननदें, तीन खटकती है
पर बेटियाँ पाँच ना अटती है,
तुम भी तो, इक बेटी हो
वो भी तो इक बेटी है।
अपनीबेटी, जब हँसती है
तो वो फूल सी लगती है
जब ननदें, रोक ना पाये खुशी
तो तेरी आँखें, क्यों फूटती है।
तुम भी तो, इक बेटी हो
वो तो इक बेटी है।
ननदो के, लिखने पढने पर
क्या धन खरचा करना है
बेटी को पढ़वा लिखवा कर
क्या पत्थर पर, मूरत गढ़ना है,
तुम बेटा- बेटी में अंतर का
एक दोष पुरुष लगता है,
बेटी बेटी अंतर इक, नारी मन हिस्सा है।
सूर्येश प्रसाद निर्मल शीतलपुर तरैयाँ


More Stories
नवजात शिशुओं के जन्म के 42 दिनों के अंदर 7 बार गृह भ्रमण करती है आशा कार्यकर्ता
बच्चे अपनी सफलता को अच्छे से सहेजें, अभिभावक बच्चों को अपना कैरियर चुनने में पूरी आजादी दें एवं जरूरी सहयोग करें : आयुक्त
नवजात शिशुओं के जन्म के 42 दिनों के अंदर 7 बार गृह भ्रमण करती है आशा कार्यकर्ता