राष्ट्रनायक न्यूज

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बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी एवं सामाजिक परिवर्तन के क्रांति अग्रदूत थे शिक्षक नेता रमाशंकर गिरि

राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। बिहार राजकीयकृत प्राथमिक शिक्षक संघ के संस्थापक, प्रख्यात समाज सुधारक, 1942क्रांति के अमर शहीद छठू गिरि स्मारक समिति के संस्थापक, प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं साहित्यकार, शिक्षक आंदोलन के अग्रणी योद्धा सहित शोषित-पीडितों के मजबूत आवाज रहे जन संस्कृति की मशाल जलानेवाले नायक थे रमाशंकर गिरि। बिहार के ग्रामीण अंचलो में समाज सुधारक के रूप में क्रांति की मशाल जलाने वाले जननायकों का स्मरण करें तो रमाशंकर गिरि का नाम उन अग्रिम कतारों मे लिखा जाएगा। जिन्होंने जनमानस की चेतना को झकझोरने और अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने में अपनी अप्रतिम भूमिका का निर्वाह किया। वे सदैव साधारण ग्रामीण की तरह रहे लेकिन जनहित और जनजागरण के क्षेत्र में असाधारण काम किये। उनका कार्य क्षेत्र भले ही सारण प्रमंडल रहा, लेकिन उनके सामाजिक परिवर्तन के लिए किये गये प्रयासों की अनुगूंज केवल बिहार तक ही सीमित नहीं रही। यदि रमाशंकर गिरि के जीवन एवं व्यक्तितत्व के तमाम पहलुओं का अध्ययन किया जाय तो हम पाते है कि स्वातंत्र्य चेतना उनके मूल में है। वे देश के उन गिने-चुने लोगों मे से थे। जिन्होंने कथित आजादी के छद्म को अपनी किशोरावस्था में ही पहचान लिया था। शनै-शनैः आजादी के इस छद्म से मुक्ति और एक सच्ची आजादी के लिए संघर्ष उनके जीवन का लक्ष्य बनता चला गया।  रमाशंकर गिरि का जन्म सारण जिला के मांझी प्रखण्ड के दाउदपुर थाना क्षेत्र के बलोखड़ा गांव में 8 सितंबर1945 को हुआ था। छपरा उस समय आजादी के लडाई का मुख्य केंद्र था।वे स्वतंत्रता-संग्राम की संधि-रेखा पर पैदा हुए। आजादी के मूल्यों की धरोहर उन्हें अपनी मां से विरासत में मिली।वह आजादी की चेतना ही थी। जिसके चलते उन्होंने शहीदों की स्मृतियों को सहेजने की पहल की। अपने क्षेत्र के अमर शहीद छठू गिरि, फागू गिरि एवं कामता गिरि के बलिदान से प्रेरित होकर उन्होंने छठू गिरि स्मारक ,भगत सिंह विश्रामगृह, प्रतिमा और स्वतंत्रता सेनानी, शिवप्रसाद सिंह की स्मृतियों और उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाने में अग्रणी भूमिका अदा की।
वे इस बात को भलीभाँति समझते थे कि अपने विचारों को जन-गण तक ले जाने के लिए शिक्षा एक कारगर माध्यम है। अतः उन्होंने शिक्षा एवं संघर्ष को एक साथ जोड़ने का कार्य किया। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा में लगे लोगो को संगठित किया तथा 1977 में राजकीयकृत प्राथमिक शिक्षक संघ  की स्थापना की, जिसे वे आजीवन सवांरते रहे।सम्पादक के रूप में स्व.गिरिजी ने समाजोद्धार पत्रिका और शिक्षकों की एकमात्र पत्रिका “शिक्षा प्रहरी”को प्रधान संपादक के रूप में अपनी अमूल्य सेवा प्रदान की।सभी प्रबुद्ध विद्वान, साहित्यकार और विचारक अपने समय के सजग पत्रकार भी रहे है।आर्थिक बदहाली से जुझते हुए 21वर्ष की उम्र में कन्या प्राथमिक विद्यालयज्ञ(मांझी अंचल-सारण)में शिक्षक के रूप में योगदान दिया और 26वर्षों तक लगातार सेवारत रहकर अनेक सामाजिक कार्यों को अंजाम दिया। कुलीन गोस्वामी ब्राह्मण परिवार के होते हुए भी छुआछूत, जातीय भेदभाव का प्रबल विरोध करते हुए गरीबों, पिछड़े एवं उपेक्षित जनसमुदाय के लिए “समाजोद्धार संघ” की स्थापना 1968 में की।
उनके इस क्रांतिकारी कदम से तथाकथित बडे लोगों में भूचाल आ गया।सामंती ताकतें कभी समता मूलक  भावनाओं को पनपने नहीं देती।लेकिन गिरि जी चट्टान की तरह अडिग रहकर धार्मिक अंधविश्वास, आडम्बर एवं जातीय विद्वेष के खिलाफ संघर्ष करते हुए ऐतिहासिक अग्रणी भूमिका निभाई।बिना तिलक-दहेज के जिस समय हिंदू समाज में शादी ब्याह की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी उस समय इस क्रांतिकारी योद्धा ने इस कुप्रथा का विरोध करते हुए सैकड़ों कन्याओं के उद्धार का संकल्प पूरा किया।वे विधवा विवाह के पक्ष में भी वातावरण बनाते रहेऔर  कितनी विधवाओं की शादी कराकर उनके जीवन में आशा-विश्वास के राजपथ को प्रशस्त किया।उनके शिक्षक आदर्श ने सही अर्थों में मात्र कक्षा तक ही अपना कर्तव्य दायित्व नहीं समझकर पूरे समाज को ही पाठशाला का व्यापक स्वरूप प्रदान कर दिया। उन्होंने सिखलाया कि शिक्षक समाज का मार्गदर्शक नेता भी होता है। वह चाहे तो परिवर्तन का शंखनाद कर सकता है।वे साम्यवादी विचारधारा के केवल किताबी विद्वान नहीं थे। बल्कि साम्यवाद की शिक्षाओं को उन्होने अपने जीवन में उतारा थाऔर अपने आचरण का विषय बनाया था। राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं से उनका संपर्क था। वे उनकी मुक्ति चेतना के प्रशंसकों मे से थे। स्व.रमाशंकर गिरि ने अपना सम्पूर्ण जीवन का महत्वपूर्ण योगदान समाज की बेहतरी के लिए लगा दिया। सामाजिक परिवर्तन के लक्ष्यों के प्रति एक समर्पित अजेय योद्धा की तरह इतिहास के पृष्ठों में अंकित किया जाएगा। सच तो यह है कि रमाशंकर गिरि जी की विचार यात्रा आज भी जारी है और तमाम उलझनों एव झंझावातों को चीरते हुए उनकी विचार मशाल के रूप में आगे बढती रहेगी।

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