राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (सारण)। मुजफ्फरपुर शेल्टर होम की क्रूर एवं हृदय विदारक यादें फिर एक बार ताजा कर गयी गायघाट की घटना। एक पीड़िता का बयान सोशल मिडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें गायघाट शेल्टर होम से संबंधित घटनाओं का उसने विस्तृत चर्चा की है। उसके बयान ने नीतीश सरकार और भाजपा के बेटी बचाओ नारे को पूरी तरह नंगा कर दिया है। हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और सरकार को फटकार भी लगाई। लेकिन बिहार के समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी का वो बयान बेशर्मी का पराकाष्ठा है, जिसमें उन्होंने कहा कि पहली जाँच में घटना असत्य प्रतीत होती है। आगे यह भी बोल गये कि सिर्फ आरोप लगाने भर से कोई दोषी नहीं हो जाता।मुजफ्फरपुर शेल्टर होम से तुलना पर भी उन्हें सख्त ऐतराज है। पीड़िता के बयान पर जरा गौर फरमाईये – महिला सुधार गृह की अधीक्षिका बन्दना गुप्ता जबरदस्ती सुन्दर लड़कियों को बाहर भेजती है और घृणित काम करने को मजबूर करती है। इन्कार करने पर लड़कियों को प्रताड़ित किया जाता है। उसने दो मौतों का भी जिक्र किया। एक की मौत को आत्महत्या दर्शाया जा रहा है, जिसको पीड़िता बिल्कुल झूठ बता रही है।दूसरी मौत के बारे में उसका कहना है कि बीमारी की हातल में मरने के लिये उसे पूरी तरह नीरीह अवस्था में छोड़ दिया गया ।बेचारी मर गायी। उसका यहाँ तक आरोप है कि इलाज के लिये बन्दना 4000 रुपया माँग रही थी। बाहर से लड़कों को भी अन्दर आने की अनुमति दी जाती है। इन्कार करने पर लड़कियों को नशे की दवा भोजन में मिला कर विक्षिप्त कर दिया जाता है, फिर उसे हवस का शिकार बनाया जाता है।लगता है वो कोई सुधारगृह न हो कर चील कौवों का बसेरा हो। समझ से परे है, बंदना गुप्ता को आनन फानन में क्लिन चीट देने की क्या हरबरी थी। मामला दफन करने की भी साजिश थी। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि यदि जाँच हो तो बडे़ बडे़ सफेदपोश भी गिरफ्त में आ जाय। एक पूर्व आई० पी० एस० अमिताभ कुमार दास ने राज्यपाल को एक पत्र के माध्यम से जानकारी दी कि गायघाट रिमांड होम में रहने वाली लड़कियों को मंत्रियों के पास भेजा जाता है।उन्होनें पूरे मामले को CBI के हवाले करने की भी माँग की है। धन्यवाद दिजिये उस लड़की को जिसने हिम्मत जुटाई और कई जगह ठोकर खाने के बाद भी अपनी आवाज को दबने नहीं दिया। सवाल पैदा होता है कि परिस्थितियों की सताई हुई हमारे समाज की बच्चियों को इस दशा में पहुँचाने वाले दोषी कौन हैं। महिला सुरक्षा की ताबरतोड़ कसमें खाने वाली सरकार, उसके कारकुन और मंत्रियों की ये कारगुजारियाँ क्या माँफी लायक हैं ? समाज कल्याण मंत्री मुजफ्फरपुर रिमांड होम से तुलना पर भड़क उठते हैं। उनसे पूछा जाय कि लड़कियों के साथ वहाँ और यहाँ आखिर कुछ अलग होता था क्या ? प्रताड़ना की प्रकृति तो दोनों जगह समान ही थी तो फिर आप इतना घबराये हुए क्यों हैं। सवाल यह भी है कि मुजफ्फरपुर की घटना के बाद सरकार ने अन्य सुधारगृहों के सम्बंध में आखिर किया क्या। एक देहाती कहावत है – चाम के ढेर पर कुत्ता रखवार। यही हालत वर्तमान सरकार की है। अन्य जिलों के सुधारगृहों का यदि जायजा लिया जाय तो मेरा दावा है सभी की लगभग यही स्थिति सामने आयेगी।
(लेखक के अपने विचार हैं।)


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