- दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह की जयंती पर विशेष
राष्ट्रनायक न्यूज।
छपरा (मनिंद्र नाथ सिंह मुन्ना)। दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे। 1888 में कांग्रेस सत्र इलाहाबाद में होना था। अंग्रेजी सरकार ने निषेधाज्ञा लगा दिया कि किसी भी सार्वजनिक जगह पर कार्यक्रम नहीं हो सकता है। देशभर से कार्यकर्ता आने वाले थे। अब सार्वजनिक मैदान नहीं मिलेगा तो लोग कहां जुटेंगे। सब चिंतित थे। दरभंगा महाराज ने रातों-रात इलाहाबाद का सबसे बड़ा महल खरीद लिया। अगले दिन उसी परिसर में कांग्रेसका भव्य कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम के बाद महाराजा ने वह महाल कांग्रेस को ही दान कर दिया। महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह की जयंती पर हम अपनी इस विशेष प्रस्तुति के माध्यम से बता रहे हैं कि कांग्रेसी नेतृत्व से एक ट्वीट तक नहीं हो पाया श्रद्धांजलि का।
श्रद्धांजलि तो बीएचयू भी शायद कभी नहीं देता है। महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह जी को। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के स्थापना में सब मदन मोहन मालवीय का नाम लेते हैं। लेकिन कोई नहीं बताता कि दरभंगा महाराज यूनिवर्सिटी की स्थापना के सबसे बड़े आर्थिक सहयोगी थे। उन्हीं के रिफरेंस से देशभर के महाराजाओं ने विश्वविद्यालय के लिए दान दिया। यूनिवर्सिटी स्थापना के लिए जो हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की स्थापना हुई थी। उसके प्रेसिडेंट महाराज रामेश्वर सिंह ही थे। स्थापना के लिए फंड का लक्ष्य एक करोड़ जुटाना अकेले महाराजा ने पहला डोनर बन 50 लाख रुपया एकमुश्त दिया था।
शायद ही कभी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अपने स्थापना के सबसे बड़े गैर मुस्लिम डोनर महाराज दरभंगा को याद करता है। न बिहार सरकार कभी याद करती है। बिहार राज्य गठन आंदोलन के सबसे बड़े सहयोगी दरभंगा महाराज को। पीएमसीएच को आज सबसे बड़ा अस्पताल बनाने में लगी है सरकार, किंतु शायद किसी को पता होगा कि उसकी स्थापना में दरभंगा महाराज का क्या योगदान था? डीएमसीएच में एम्स बन रहा है, सोचिए तनिक कि वह कैसा महाराजा रहा होगा, जिसने 70 साल पहले अपने राजधानी के बीचो-बीच 250 एकड़ परिसर में अस्पताल बनवाया था। वह कैसा महाराजा रहा होगा, जिसके बनाए एयरपोर्ट्स दरभंगा और पूर्णिया में उस वक्त एक्टिव हवाई सेवा थी, वह कैसा महाराजा रहा होगा जिसके काल में रेलवे, बिजली जैसे चीजें दिल्ली के समकाल में दरभंगा आ गई थी। वो महाराजा जो हिंदी में आर्यावर्त, इंग्लिश में इंडियन नेशन, मैथिली में मिथिला मिहिर नाम से अखबार चलाता था। वह महाराज जिसके बनाए चीनी मिल, जूट मिल, सूत मिल, पेपर मिल आदि के बंद पड़े कारखाने से स्क्रैप बेचकर लोग करोड़पति हो गए। खैर मैं कांग्रेस, बीएचयू , एएमयू आदि को क्या दोष दूं, जब खुद मैथिल याद नहीं करते। जयंती पर दरभंगा महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह जी को विनम्र नमन व श्रद्धांजलि।


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