- अलाइव एंड थ्राइव संस्था द्वारा आयोजित की गयी कुपोषण पर ओरिएंटेशन कार्यक्रम:
- कुपोषण के कारण जटिल और मिश्रित, इसलिए उच्च गुणवत्ता वाली सेवाओं पर बल:
- व्यवहार परिवर्तन और आंकडों के सही संकलन हैं जरूरी ताकि सही तस्वीर आये:
राष्ट्रनायक न्यूज।
गया (बिहार)। कुपोषण को दूर करने के लिए गंभीर तरीके से काम करने की जरूरत है। कुपोषण एक चक्र है और इसके होने के कारणों और इसे दूर किये जाने के तरीकों के प्रति जागरूकता आवश्यक है। कुपोषण होने के कारण जटिल और मिश्रित हैं। इनमें महिलाओं का सामान्य से बहुत अधिक वजन में कमी, नियमित प्रसवपूर्व जांच व टीकाकरण नहीं होना, गर्भवती द्वारा आयरन व फॉलिक एसिड आदि दवाइयों का सेवन नियमित तौर पर नहीं किया जाना, स्वच्छ पेयजल तथा शौचालय का अभाव, सही खानपान और साफ सफाई सहित शिशु के नियमित स्तनपान व पूरक आहार में कमी आदि कई ऐसे कारण हैं जिसका असर शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है। जिससे उनमें कुपोषण की दर निरंतर बढ़ती जाती है। इसके अलावा महिलाओं की कम शिक्षा, उनका समय से पूर्व विवाह हो जाना, प्रजनन दर अधिक होना आदि का भी प्रभाव प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कारणों से भी कुपोषण बढ़ता है। ऐसे में कुपोषण को दूर करने में समेकित बाल विकास विभाग या स्वास्थ्य विभाग की ही सिर्फ भूमिका नहीं है, बल्कि इसमें समाज कल्याण, पेयजल, आपूर्ति, पंचायती राज सहित सभी अन्य विभागों के समन्वय की नितांत आवश्यकता है। चूंकि कुपोषण के कारण कई मिश्रित और जटिल हैं, इसलिए इसका निवारण विभागीय समन्वय के साथ ही किया जा सकता है।
यह बातें शनिवार को जिला समाहरणालय के सभागार में आईसीडीएस डीपीओ सुचिस्मिता पद्म की अध्यक्षता में स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाली संस्था अलाइव एंड थ्राइव द्वारा आयोजित जिला कनर्वेजेंस प्लान के तहत ओरिएंटेशन कार्यक्रम के दौरान संस्था की डिप्टी डायरेक्टर डॉ अनुपम श्रीवास्तव ने कही। इस मीटिंग के दौरान बाल विकास परियोजना विभाग से सबा सुल्ताना, शहला नाज सहित स्वास्थ्य विभाग से डीआईओ डॉ फिरोज आलम, जिला पंचायती राज पदाधिकारी राजीव कुमार, केयर इंडिया डीटीएल शशिरंजन, यूनिसेफ से आशुतोष कुमार, जीविका से शंभुप्रकाश, अलाइव एंड थ्राइव के अभिजीत सिंह तथा अनिल कुमार सिंह एवं सभी प्रखंडों की सीडीपीओ व अन्य विभागों के अधिकारी मौजूद रहे।
डॉ अनुपम ने पोषण कार्यक्रम पर निवेश करने और योजनाओं के धरातल पर सही प्रकार से क्रियान्वयन पर बल दिया। उन्होंने बताया जिला में 48 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। जबकि 23 फीसदी महिलाओं ने ही दसवीं या इससे अधिक समय स्कूलों में बिताया है। जिला में 15 से 19 वर्ष की ऐसी महिलाएं थी जो या तो मां बन चुकी थीं या सर्वे के समय गर्भवती थी। रिपोर्ट के मुताबिक 20 से 24 वर्ष की 59 फीसदी महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले हो चुकी थी। 25 फीसदी गर्भवती महिलाएं ही अपना चार बार प्रसवपूर्व जांच कराती हैं जबकि सिर्फ 63 फीसदी महिलाओं का ही पहली तिमाही में प्रसवपूर्व जांच हो पाती है। बताया कि जिला में 42 प्रतिशत बच्चे ही जन्म के पहले घंटे में स्तनपान कर पाते हैं। 26.8 फीसदी महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स सामान्य से कम है। लगभग 64 फीसदी महिलाएं एनीमिया से प्रभावित हैं। इन सभी का असर कुपोषण पर पड़ता है। कहा कि उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएं नियमित और समय पर मिले तो कुपोषण के स्तर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
व्यवहार परिवर्तन पर दिया बल:
जिला प्रोग्राम पदाधिकारी ने बताया कुपोषण के चक्र को तोड़ने के लिए जागरूकता के साथ व्यवहार परिवर्तन की बहुत अधिक जरूरत है। आंगनबाड़ी सेविकाएं सहित समुदाय के प्रतिनिधि इसके लिए बेहतर कार्य करें। कुपोषित महिला की संतान भी कुपोषित होती है और कई बार जन्म के समय से ही बीमारियों के साथ जन्म लेते हैं। इसके साथ ही वे मानसिक व शारीरिक रूप से अंपग या कमजोर होते हैं। उनके स्कूल में प्रदर्शन और जीवन में उत्पादकता क्षमता में कमी होती है। इसका साीधा असर उनकी आर्थिक व सामाजक जीवन पर प्ड़ता है।
सही आंकड़ों का संकलन जरूरी:
केयर इंडिया के डीटीएल शशिरंजन ने पोषण अभियान के लक्ष्यों को प्राप्त करने में डेटा संकलन के महत्व पर भी बल दिया और बताया कुपोषण के आंकड़ों का सही तरीके से संकलन आवश्यक है । ताकि कुपोषण की सही तस्वीर भी सामने आ सके। सही आंकड़े निर्णय लेने की क्षमता प्रभावी बनाता है जिस पर रणनीति तैयार की जाती है।
कुपोषण दूर करने के तरीकों की मिली जानकारी:
कुपोषण को दूर करने के लिए विभिन्न तरीकों पर प्रकाश डाला गया ।जिसमें मां का गर्भधारण के बाद पहला हजार दिन बहुत महत्वपूर्ण है। मां के पोषण को लेकर परामर्श, गृह भ्रमण, गोदभराई दिवस का आयोजन, आवश्यक कैल्सियम, आयरन, अल्बेंडाजोल आदि का सेवन,प्रसवपूर्व जांच, सहित साफ पीने के पानी का इस्तेमाल व टायलेट के उपयोग के बारे में आवश्यक जानकारी दी गयी। जन्म के बाद शिशु की देखभाल, गृहभ्रमण, एक घंटे के भीतर स्तनपान, नियमित स्तनपान, शिशु के विकास का नियमित अनुश्रवण, बच्चों से जुड़े रोग का समय पर निवारण, डायरिया व न्यूमोनिया आदि के बारे में बताया गया।


More Stories
स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान’ में महिला फाइलेरिया मरीजों पर विशेष फोकस
महिलाओं एवं किशोरियों को प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य जैसे विषयों पर जागरूकता करने की काफी आवश्यकता
अनचाहे गर्भ से सुरक्षा के लिए महिला बंध्याकरण को अपनाएं, सरकार देगी 3 हजार रूपये प्रोत्साहन राशि