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27 वर्षीय युवक टीबी जैसी बीमारी को मात देकर बना चैंपियन

  • सरकारी दवा पर भरोसा नहीं था लेकिन अस्पताल द्वारा मिलने वाली दवा को बदौलत ठीक हुआ: अली रज़ा
  • टीबी मुक्त वाहिनी से जुड़कर मरीज़ों को कर रहा हूं जागरूक: टीबी चैंपियन
  • टीबी जैसी गंभीर बीमारी को मात देने वालों की संख्या में आई कमी: डॉ सब्बीर

पूर्णिया, 10 मार्च।

अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले 27 वर्षीय अली रज़ा वारसी को बहुत दिनों से शारीरिक कमजोरी, दुबलापन, थकान जैसा महसूस हो रहा था लेकिन एक दिन अचानक इनके मुंह से खून आने लगा। जिस कारण परिवार के सदस्य रोते बिलखते  एक दूसरे से पूछने लगे कि आखिरकार मुंह से अचानक इतना खून क्यों निकलने लगा। हालांकि पहले से भी तबियत खराब रहती थी। जिस कारण अली रज़ा बहुत ज्यादा परेशान रहने लगा था। खांसी के कारण दम फूलना आम बात सी हो गई थी। हालांकि इसके साथ भी कभी-कभी खून निकलते रहता था। जिस कारण उसके बाद मन में एक डर सा लगने लगा था। लेकिन बीमारी से जीतने की उम्मीद भी थी क्योंकि हर बीमारी का इलाज स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों द्वारा किया जाता है। अंततः इस लड़ाई में सफलता भी मिली। इस नाउम्मीदी के बीच एक उम्मीद की किरण दिखाई दी और यह तय कर लिया कि हारना नहीं हैं। बल्कि इस लड़ाई से जीत कर समाज के प्रति हीनभावना को दूर भी करना है। इसी सकारात्मक सोच के साथ नियमित रूप से दवाइयां लेने से लगातार सेहत में सुधार होने लगा। लगभग 10 महीने तक दवा का सेवन करने के बाद अब वह पूरी तरह से ठीक हो चुका है। लेकिन अब समाज के दूसरे लोगों को भी टीबी सहित कई अन्य तरह की बीमारियों से बचाव के लिए जागरूक कर रहा है।

सरकारी दवा पर भरोसा नहीं था लेकिन अस्पताल द्वारा मिलने वाली दवा की बदौलत ठीक हुआ: अली रज़ा

अली रज़ा ने बताया कि कई लोगों द्वारा बताया गया था कि सरकार द्वारा मिलने वाली दवा कारगर साबित नहीं होती है। जिस कारण हमने  पूर्णिया के निजी अस्पताल में उपचार कराया था। लेकिन ठीक नहीं होने के बाद अक्टूबर 2019 में पटना के आईजीआईएमएस में जाकर बलगम की जांच के बाद एमडीआर बीमारी का पता चला। लेकिन सरकारी दवाओं पर मुझें भरोसा नहीं था। ऐसा लग रहा था कि अब मेरा अंतिम दिन चल रहा है। लेकिन आईजीआईएमएस के चिकित्सकों द्वारा भागलपुर रेफर करते हुए कहा गया कि वहीं से आपका इलाज शुरू होगा। जब भागलपुर आये तो वहां के चिकित्सकों ने सदर अस्पताल पूर्णिया भेज दिया। जिला यक्ष्मा केंद्र (डीटीसी) में कार्यरत जिला कार्यक्रम समन्वयक (डीपीसी) राजेश कुमार शर्मा ने बिंदुवार जानकारी और जांच रिपोर्ट देखने के बाद सदर अस्पताल में अलग से जांच कराया। उसके बाद बताया कि अमौर पीएचसी जाइये। क्योंकि वहीं से आपका इलाज शुरू होगा।  इसी बीच गांव वालों को बीमारी का पता चला तो तरह-तरह के मज़ाक तो करते ही थे। कभी-कभी अछूत भी मानते  और कहते थे कि इसको टीबी बीमारी हुई है इससे अलग ही रहना चाहिए। क्योंकि यह एक संक्रमित बीमारी है। नजदीक जाने पर बीमारी फैल सकती है। हालांकि घर वालों का बहुत ज्यादा सपोर्ट मिला है। लेकिन हमने खुद अपने आपको अलग रखते हुए लगातार दवा का सेवन करते रहा।

टीबी मुक्त वाहिनी से जुड़कर मरीज़ों को कर रहा हूं जागरूक: टीबी चैंपियन

अमौर पीएचसी के चिकित्सकों द्वारा मुझे दवा दी गई। उसके बाद लगातार 10 महीने तक नियत समय पर दवा का सेवन करता रहा। इस बीच एक भी दिन दवा नहीं छोड़ी। क्योंकि टीबी जैसी भयंकर बीमारी ने अपनी जकड़ में ले लिया था। जिस तरह 9 महीने तक चलने वाली दवा का सेवन ज्यादा दिनों तक करना पड़ा। जिसका प्रतिफल आप सभी के सामने है। पूरी तरह से स्वस्थ्य होने के बाद अगस्त 2021 से टीबी मुक्त वाहिनी संस्था से जुड़कर लोगों के बीच जागरूकता अभियान चला रहा हूं। लेकिन इससे पहले कोरोना काल के समय ज़िले से मिले टीबी मरीजों की सूची के माध्यम से कॉल करके हज़ारों मरीज़ों को तरह-तरह के टिप्स देने का काम किया हूं। डीटीसी से पूर्णिया के अलावा भागलपुर के 250 मरीज़ों की सूची मिली थी। जिसको कॉल के माध्यम से हाथों की सफाई, दवा खाने का तरीका, रहन-सहन को लेकर जागरूक करते रहे। लेकिन अब कोरोना की समाप्ति के बाद डोर टू डोर भ्रमण कर काउंसिलिंग, स्कूल में जाकर स्कूली बच्चों को जागरूक करने का काम कर रहा हूं।

टीबी जैसी गंभीर बीमारी को मात देने वालों की संख्या में आई कमी: डॉ सब्बीर

जिला यक्ष्मा नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मोहम्मद सब्बीर ने बताया कि ज़िला यक्ष्मा केंद्र के द्वारा समय-समय पर टीबी जैसी संक्रमक बीमारी से लड़ाई जीतने वाले व्यक्तियों का चयन टीबी चैंपियन के रूप में किया जाता है। लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल होने के कारण ज़िले में टीबी जैसी गंभीर बीमारी को मात देने वालों की संख्या में कमी आई है। इस तरह की बीमारी वाले लोग कोरोना काल में घर पर रहते हुए संयमित रूप से अपने आपको बचाया और मास्क का प्रयोग बराबर किया है। हालांकि टीबी मरीजों की खोज में सहयोग के लिए लगातार निजी स्तर पर क्लीनिक का संचालन करने वाले चिकित्सकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अस्पताल में इलाज कराने वाले मरीजों को विशेष तौर पर टीबी के खतरों के प्रति जागरूक किया जाता है। टीबी के मरीजों की जांच एवं इलाज पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। इसके साथ ही जागरूकता से संबंधित कार्यक्रम को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों का सहारा लिया जाता है। ताकि शहर से लेकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रचार प्रसार हो सके।

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