मुझे हमसफ़र कि तलाश थी, मेरे दिल ने कहा अभी तुम्हारे ही पास थी,
मैने कहा चुप कर पगले तू भी करने लगा मुझसे जुमले
उसने हँस कर कहा मुझे भी अच्छे दिन कि तलाश थी,
मैने चाँद से एक रात कहा तेरी चाँदनी बहुत खूबसूरत है
वो बोला चुप कर यार वो सोयी है, तेरी यही ग़नीमत है
मैं चौका, क्या चाँदनी भी सो रही है,
तो चाँद ने हंसकर कहा उसके भी, अच्छे दिन आये है,
तो क्या वो रो रही है,
एक बूढी औरत पानी पीने के लिए नल खोल रही थी,
पानी नहीं आ रहा था, वो खुद से कुछ बोल रही थी,
तभी उधर से स्वयं गंगाजी गुजरी, उस बुढ़िया के पास ठहरी
बोली, माँ मैं तेरी प्यास बुझा दूँ,
बुढ़िया भी बुदबुदाने लगी,अब तू भी बहकने लगी है,
खुद प्यासी है, और दूसरे पर टपकने लगी है,
फिर जोर से बोली तेरे होठ खुद ही मुरझाये है,
तेरे ही अच्छे दिन आये है।

लेखक- सूर्येश प्रसाद निर्मल,


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