संजय कुमार सिंह। राष्ट्रनायक न्यूज।
बनियापुर (सारण)। मॉनसून के धीमा पड़ने को लेकर किसनो की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई है। बिगत एक पखवाड़े से जोरदार वारिस नहीं होने और चिलचिलाती धुप की वजह से धान का बिचड़ा डालने का कम धीमा पड़ गया है। जबकि डाले गये बिचड़े पानी के अभाव में पीले पड़ने लगे है। हालाँकि प्रतिकूल मौसम के वावजूद भी आगे चलकर वारिस होने की उम्मीद की लेकर कुछ माध्यम वर्गीय किसानो द्वारा पम्पिंग सेट के माध्यम से खेतो में पानी एकत्र कर बिचड़ा गिराने का कार्य धीरे- धीरे संपन्न किया जा रहा है। मगर अब भी ज्यादातर निम्न वर्गीय किसान बिचड़ा गिराने के लिये वारिश की वाट जोह रहे है। हालाँकि मौसम विभाग द्वारा गत 13 जून से ही मॉनसून के सक्रीय होने का पूर्वानुमान लगाया गया था। मगर अबतक मानसून के सक्रीय नहीं होने से किसान सकते में है। इधर मॉनसून के कमजोर पड़ने को लेकर मक्के की बुआई का कार्य भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। अनुभवी किसानो ने बताया की आद्रा नक्षत्र में मक्के की बुआई उपयुक्त मानी जाती है। आषाढ़ के महीने में भी खेतो में उड़ते धूल और कड़ी धुप को देख किसान अपने को असहज महसूस कर रहे है। हालाँकि प्रखंड के इलाकों में एक सप्ताह पूर्व हुई हल्की वारिश के बाद कुछ एक किसानों ने मक्के की बुआई तो कर दी। मगर अब मौसम के तल्ख़ तेवर को देख उनकी मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। मदन सिंह, चन्द्रिका राम, बैजनाथ साह, पशुपति सिंह, महेश राम सहित दर्जनों किसानो का कहना है की धान के बिचड़े एवं मक्के के पौधे में उचित बृद्धि हो इसके लिये इस मौसम में एक-दो दिनों की अंतराल पर वारिस होना आवश्यक है। अगर कुछ दिनों तक ऐसी ही स्थिति बनी रही तो मक्के के पौधे के जमाव पर भी असर पर सकता है। जबकि धान के बिचड़ो को बचाने के लिए किसान तीन- चार दिन के अंतराल पर पटवन करने को विवश है।
वारिस होने में देरी से पिछड़ सकती है खेती।
किसानो की माने तो अबतक धान के बिचड़े तैयार हो जाने चाहिये। मगर बारिस होने में देरी को लेकर अबतक 75 प्रतिशत से ज्यादा किसानो ने बिचड़ा नहीं डाला है। जो किसान बिचड़ा डाले भी है वे अब तेज धुप को देख बिचड़ा बचाने को लेकर पटवन में जुटे है। ऐसे में देर से बिचड़ा डालने पर स्वभाविक रूप से धान की बुआई पिछड़ने की संभावना प्रबल हो गई है। बायोबृद्ध और अनुभवी किसानो का कहना है की ‘आगे खेती आगे-आगे,पीछे खेती भागे जोगे। अब अगर बिचड़ा डाले भी जाते है तो मौसम के बेरुखी को देखते हुए बिचड़ा तैयार होने में कम से कम 25-30 दिन का समय लग जायेगा।
सब्जी उत्पादक किसानो को भी करनी पर रही है,मसक्कत।
प्रायः इस मौसम में सब्जी उत्पादक किसान सिंचाई को लेकर आसमानी वारिस पर निर्भर रहते है। जिससे शारीरिक और आर्थिक रूप से किसानो को बल मिलता है।मगर वारिश नहीं होने से किसानो को पम्पिंग सेट से सिंचाई करनी पड़ रही है। जिससे आर्थिक वहन के साथ- साथ शारीरिक रूप से भी परेशानी झेलनी पड़ रही है। वहीं सब्जियों का उत्पादन कम होने से प्रायः सभी हरी सब्जियों की कीमत में तेजी से बृद्धि देखी जा रही है।
फोटो- (डाले गये बिचड़े के खेत में अपने परिजनों के साथ फटी दरारों को देखता किसान,खेतों में उड़ते धूल)|
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