राष्ट्रनायक न्यूज।
दरअसल एक जुबैर का सवाल नहीं है, अभी भी कई जुबैर जेल के सलाखों में हैं, जिन्हें न्याय का इंतजार है। कई का मतलब सैकड़ों की संख्या। सभी पेशे के लोग हैं, लेखक,पत्रकार, कवि, साहित्यकार,सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ता, मानव अधिकार कार्यकर्ता आदि। धाराएँ भी दबोचने वाली यथा नक्सली, देशद्रोह, हिंसा भड़काने की साजिश, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और आतंकवाद ।हुकूमत की नियत भी स्पष्ट है, वर्षों तक जेलों में बन्द कर उनको अन्धेरों में ढकेल दिया जाय।एक में जमानत होती है तो दूसरा एफ.आई.आर.तैयार मिलता है।जुबैर के साथ भी यही सब जारी था, जिस पर कोर्ट ने रोक लगाई।
स्वभाविक है, सत्य की जानिब संघर्षरत सभी संघर्षशील लोगों के लिए कल का दिन संतोष जनक रहा होगा, क्योंकि मिडिया द्वारा प्रसारित झूठे खबरों एवं दुष्प्रचार का पर्दाफाश करने वाले आल्ट न्यूज के सह संस्थापक जुबैर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत मिल गयी।सुप्रीम कोर्ट ने उन पर थोपे गए सभी एफ आई आर को जांच हेतु इकठ्ठे दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के हवाले कर दिया। साथ ही तिहार जेल अधीक्षक को अभिलंब रिहाई का आदेश भी दे दिया।योगी सरकार द्वारा गठित एस आई टी को भंग करना भी सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट का फैसला, एक तरफ पुलिस की कार्यशैली, जो हुकूमत के इशारे पर रक्श करती है,पर सवालिया निशान है, तो दूसरी तरफ अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान भी है, जिसे भारतीय संविधान ने अपने हर नागरिक को दी है।पिछले 7- 8 सालों से यह आजादी हुकूमत के वैचारिक कैदखाने में कैद होती हुई दिखाई देती है। जिसने भी सरकार के खिलाफ बोलने की जुर्रत की, साजिशें उनके पीछे हाथ धोकर पड़ जाती हैं।होश ठिकाने लगाने के लिये सारी मिशनरी मौके के फिराक में जुट जाती है।भाजपा के आई टी सेल और मीडिया झूठा प्रोपगंडा जनता के बीच फैलाने में अपनी सारी ऊर्जा खपत करने लगते हैं। मेरे खिलाफ लब खोलोगे तो जेल जाओगे। यही माहौल चारों तरफ बिखरे पड़े हुए नजर आते हैं आज। एक जुबेर को जमानत मिली।खुशी की बात है।वर्षो से कैदखाने में पडे़ अन्य जुबैरों के साथ जल्द न्याय होगा।
मी लार्ड, क्या मैं आशा करुँ ?
लेखक- अहमद अली
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