मनिंद्र नाथ सिंह मुन्ना। राष्ट्रनायक न्यूज।
दिघवारा (सारण)। दिघवारा प्रखंड स्थित आमी गांव में अवस्थित मां अंबिका भवानी के मंदिर परिसर में आज नवरात्रि के पांचवें दिन उमरा भक्तों का जनसैलाब। आपको मालूम हो की मां अंबिका भवानी कि इस शक्तिपीठ का वर्णन मार्कंडेय पुराण एवं दुर्गा सप्तशती में भी है। दुर्गा सप्तशती में राजा सूरत और समाधि वैश्य की कथा है, जिस कथा के अनुसार राजा सूरत और समाधि वैश्य गंगा नदी के तट पर अवस्थित टीले के ऊपर मिट्टी का पिंड बनाकर माता का पूजन किया और फिर माता की कृपा से उन्होंने पुनः अपने ऐश्वर्य की प्राप्ति की यह वही स्थान है। यह शक्तिपीठ आस्था भक्ति एवं विश्वास को अपने स्वरूप में समेटे हुए हैं। यहां आने पर भक्तों को असीम शांति की अनुभूति होती है। इसकी प्रसिद्धि दिघवारा, सारण जिले ही नहीं अपितु पूरे बिहार के साथ ही पूरे उत्तर भारत में है। यह मंदिर आमी गांव के पावन भूमि पर बहने वाली उत्तरायणी गंगा के तट पर एक टीले पर अवस्थित है। आस्था का केंद्र माता के गर्भ गृह स्थित कुंड है। जिसकी मानता है की जो कोई भी अपनी मन्नत मन में मान कर माता के कुंड में हाथ डालता है और जो कुछ भी उसके हाथ में आए उससे उसकी मन्नत पूरी होती आई है। यहां अश्विन और चैत्र दोनों नवरात्रों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसके अलावे हिंदू आस्था का कोई भी पर्व हो के साथ ही सोमवार एवं शुक्रवार को भक्तों की भीड़ यहां विशेष होती है।
मंदिर की विशेषता:
सारण जिले का यह शक्तिपीठ छपरा और सोनपुर के सामान्य दूरी पर स्थित है। इसके पूरब में बाबा हरिहर नाथ पश्चिम में बाबा धर्म नाथ उत्तर में बाबा शीला नाथ सिल्हौरी दक्षिण में बिहटा स्थित बाबा बटुकेश्वर नाथ चथुष्टकोण में स्थित है। वही त्रिभुजा अवस्था में बाबा पशुपतिनाथ काठमांडू नेपाल, बाबा बैद्यनाथ देवघर एवं बाबा विश्वनाथ काशी वाराणसी में स्थित है।
मंदिर पहुंचने का सुगम रास्ता:
मां अंबिका भवानी का प्राचीन मंदिर दिघवारा प्रखंड के आमी गांव में अवस्थित है। यहां पटना से आने में दूरी 52 किलोमीटर एवं छपरा से आने में दूरी 30 किलोमीटर वहीं दिघवारा रेलवे स्टेशन से मंदिर परिसर तक की दूरी 5 किलोमीटर की है। यह मंदिर छपरा पटना राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 19 से दक्षिण में अवस्थित है। पूरे देश में सिर्फ यही शक्तिपीठ है जहां माता मिट्टी के पिंड के रूप में विराजमान हैं।
इस शक्तिपीठ का इतिहास:
पौराणिक कथाओं एवं सारण गजटीयर (पृष्ठ संख्या –464) के अनुसार मां अंबिका भवानी का यह प्राचीन मंदिर राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ स्थल पर अवस्थित है। माना जाता है कि माता सती ने अपने पति भगवान शिव का निरादर सहन नहीं कर पाने के कारण यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर अपना आत्मदाह कर लिया था। भगवान शिव को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वह अत्यंत क्रोधित हो उठे और माता सती के शव को यज्ञ कुंड से निकालकर कंधे पर रखकर तांडव नृत्य करने लगे। इससे प्रलय की आशंका उत्पन्न होने लगी, इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभक्त कर दिया। जहां जहां-जहां माता सती के शरीर के विभक्त हुए टुकड़े गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया। हवन कुंड में जलते हुए माता सती के शरीर का भस्म यही रह गया। यह स्थान मां अंबिका भवानी आमी के नाम से कहलाया। इसका वर्णन दुर्गा सप्तशती एवं मार्कंडेय पुराण में भी है। इस मंदिर में माता की प्रतिमा मिट्टी के पिंड के रूप में अवस्थित है।


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