राष्ट्रनायक न्यूज।
पटना (बिहार)। अमीत शाह का भाषण (11अक्टूबर, सिताब दियारा) आपने सुना होगा।बेशर्मी, लफ्फाजी और जुमलेबाजी की पराकाष्ठा थी।भाजपा वालों की पूरानी आदत है, हड़प लेने की।कल जयप्रकाश नारायण को भी हड़पने ही उनके गाँव पहुँचे हुए थे।माननीय गृहमंत्री जी के संबोधन का लब्बोलुबाब यही था कि जेपी के सपनों को भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ने ही पूरा किया है और कर भी रहे हैं।वे ही उनके सिद्धान्तों एवं आदर्शों के सच्चे पैरोकार हैं।जेपी को पाठ्यक्रमों की सूची से हटाने वालों के मुँह से ऐसी बातें निकल रही है और वो भी उनके जन्म स्थान पर।इससे बडी़ लफ्फाजी कुछ हो सकती है क्या ? जेपी धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे , जिस शब्द को सुनते ही भाजपाईयों के शरीर में आग लग जाती है।जिसको संविधान से हटाने की वकालत उनकी ओर से रोज की जाती है।ये धर्मनिरपेक्षता ही है जिसके चलते देश की एकता और अखंडता महफूज हैं। स्पष्ट है, धर्म और राजनीति को गड मड करने से ही कौमी एकता को चोट लगती तथा धर्मनिरपेक्षता भी क्षतिग्रस्त होती है।
भाजपा और आर.एस.एस. का मिशन जो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की है, क्या जे पी का सपना यही था ?आए दिन भाजपा के बडे़ बडे़ नेताओं के भड़काऊ भाषण होते रहते हैं , जिनमें जन समस्याएं नहीं बल्कि हिन्दू मुसलमानों के बीच नफरत पैदा करने वाली बातें अधिक होती है। 9 अक्टूबर को दिल्ली में परवेश वर्मा का भाषण का क्या अमित शाह नहीं सुने ? भाषण में मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जा रहा था। यह पहली मर्तबा नहीं है। जब माहौल थोड़ा सामान्य होता है, किसी कोने से एक म्प्रदायिक शगूफा छोड़ दिया जाता है ताकि नफरती माहौल गरम रहे। भाजपा के सारे राष्ट्रीय नेता मूकदर्शक बनकर तमाशा देखते हैं और प्रोत्साहन भी देते हैं।लोकनायक को ऐसा आचरण क्या मंजूर था ? आपातकाल के विरुद्ध जन आंदोलन मूलतः भारतीय लोकतंत्र को बचाने के लिए था, जिसका नेतृत्व जेपी कर रहे थे। आज के हालात तो उससे भी बदतर हैं।आज लोकतंत्र के जितने भी पाये हैं, सभी जर्जर हैं। सरकार की तरफ से लोकतांत्रिक व्यवस्था को कलंकित करने वाली सैकड़ों फैसले लिये गये हैं। सभी का वर्णन यहाँ नामुमकिन है। फिर भी एन आर सी, सी ए ए, एन आर पी का थोपा जाना,अतार्किक ढ़ंग से 370 धारा को निरस्त करना, फिर कश्मीर को बांटना।काशमीरी विधानसभा को भंग कर देना, सरकार की आलोचना करने पर अनर्गल आरोप मथ देना फिर जेल, अपने विरोधियों के विरुद्ध यु ए पी ए का खुला दुर्योपयोग, लेखक,पत्रकार और सांस्कृतिक क्षेत्र के बडे़ हस्तियों की गिरफ्तारी, उनके कार्यक्रमों पर बेवजह अंकुर तथा गिरफ्तारी, संवैधानिक संस्थाओं पर अनावश्यक दबाव, जनतांत्रिक पद्धति से चूनी हुई सरकारों को गिराने की साजिश के अलावा अन्य कई मिसाले हैं।फिर किस मुंह से जयप्रकाश के सपनों को पूरा करने की बात हो रही है ?
आपातकाल के दौरान जे पी को कैद कर जेल में एक दम अलग थलग रखा गया था।उनकी निगरानी के लिये चंडीगढ़ के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट एमजी देवसहायम को नियुक्त किया गया था।देवसहायम ने एजा़ज अशरफ नामक पत्रकार से एक साक्षात्कार में जो बताया वो आर एस एस की कलई खोलने वाली है।उन्होंने बताया; जेपी ने मुझसे कहा था कि आरएसएस ने उन्हें धोखा दिया है! आर एस एस ने न केवल आपातकाल का बल्कि जे पी का भी शोषण किया है। जेपी द्वारा दी गयी जानकारी को साझा करते हुए देवसहायम आगे कहते हैं कि जनता पार्टी में जनसंघ को विलय करते हुए आर एस एस प्रमुख बालासाहब देवरस, बाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी ने यह वादा किया था कि छः महीने के भीतर वो लोग आर एस एस से नाता तोड़ लेगे।दोहरी सदस्यता के सवाल कर उन लोगों ने जनता पार्टी को ही तोड़ कर एक नयी पार्टी बना ली। यही है आर एस एस का चरित्र। जयप्रकाश नारायण को अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों में उपयोग करना घृणास्पद है।वो सिर्फ 70 के दशक के जननायक ही नहीं बल्कि एक महान स्वतन्त्रता सेनानी भी थे। उनका एक राजनैतिक आदर्श था। उन्होंने आजादी के लिये कइ वर्ष जेल में बिताए थे।गृहमंत्री अमित शाह तो ऐसी जमात के उपज हैं जो स्वतन्त्रता आंदोलन से कोसों दूर थी।जंगे आजादी के अगुआ, गाँधी के हत्यारे का महिमा मंडन करने वाले लोगों द्वारा यह कहना कि वो जेपी के आदर्शों के सच्चे पैरोकार हैं , जुमलेबाजी के सिवा और क्या हो सकता है ?
लेखक- अहमद अली


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