राष्ट्रनायक न्यूज

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नहाय खाय से शुरू होंगे छठ का व्रत जाने कैसे मनाया जाता है? जाने छठ पूजा तथा उनके नियम

राष्ट्रनायक न्यूज।
बिहार, झारखंड और उतर प्रदेश का सबसे बड़ा त्योहार छठ के रूप में मनाया जाता है .यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चर्तुथी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है .इस पूजा में सूर्य देव तथा छठी मैया साथ में वरुण देव का पूजन किया जाता है.छठ पूजा में भगवान सूर्य को फल से अर्ध्य दिया जाता है .वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.यह व्रत समाज में भेदभाव को खत्म करता है सभी समुदाय के सहयोग से इस व्रत को किया जाता है.जैसे बांस से बना कलसुप ,डाला डोम समुदाय से मिल जाता है.वही पूजा में दिया, कलशा कुम्भार से मिल जाता है. आलता के पात जो पटवारी से मिल जाता है।

फल भी अलग -अलग समुदाय से मिल जाता है .अरुई सुथानी कच्ची हल्दी एक समुदाय से मिल जाता है. पकवान के लिए गेहूं का पिसाई बनिया समाज से होता है. सभी लोग एक जगह मिलकर तालाब के किनारे छठ का पूजन करते है .इस बार छठ का पूजन भगवान सूर्य के दिन रविवार पड़ रहा है जो बहुत ही शुभफलदायक है सभी मनोकामना पूर्ण होंगे. छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है. यही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है. वे एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है. वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है. सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है. सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम.पौराणिक कथा में इस प्रकार वर्णित है कि छठ का पर्व करने से असाध्य रोग भी खत्म हो जाते है.चर्म रोग भी ठीक हो जाते है. कार्तिक माह के चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। छठ पूजा में महिलाएं संतान की दीर्धायु और बेहतर स्वास्थ, सुख-समृद्धि के लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. छठ की यह पूजा हर सुहागिन स्त्री के लिए खास महत्व रखती है. चार दिनों तक मनाए जाने वाला छठ का यह त्यौहार सभी के लिए ढेर सारी खुशियां और उमंग लेकर आता है.आइए जानते हैं छठ पूजा का मुहूर्त, नहाय-खाय, खरना की तारीख और दिन., सूर्योदय पूजन मुहूर्त और सूर्यास्त पूजन मुहूर्त. छठ पूजा कब से पूजा का शुरुआत करे?

छठ पूजा की तिथि:

  • नहाय खाए-  कार्तिक शुक्ल पक्ष चर्तुथी तिथि 28 अक्टूबर 2022 दिन शुक्रवार
  • खरना व्रत –  कार्तिक शुक्लपक्ष पंचमी तिथि 29 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार
  • डाला छठ:-  कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि 30 अक्टूबर 2022, दिन रविवार सूर्यास्त का समय: सायं 5:10 पर

डाला छठ दूसरे दिन :

  • कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि 31 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार सूर्योदय का समय: सायं 5:56 मिनट
  • सूर्यास्त का समय: सायं 5:10 पर
  • इस दिन व्रत का पारण होगा.

छठ के पूजन सामग्री

बास का बना हुआ डाला, कलसुप, दिया , चावल, सिंदूर, धूपबत्ती, कुमकुम और कपूर , चंदन,फलों में गन्ना , शरीफा, नाशपाती और बड़ा वालानींबू, सुथनी, शकरकंदी, मूली, नारियल, अनारश, अनार केला, लड्डू, मिठाई , शहद हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा.आर्त का पत्ता ,और बद्धी माला केराव, इसे कथा सुनने के बाद प्रसाद रूप में छठ मैया को भेंट किया जाता है। इसी प्रसाद को ग्रहण करके व्रत समाप्त किया जाता है। मिट्टी का हाथी इसे भी छठ पूजा में मैया को भेंट किया जाता है। मान्यता है कि छठी मैया का वाहन हाथी है. इस पर दीप जलाकर माता की पूजा की जाती है.

पहले दिन नहाय-खाय . 28 अक्टूबर 2022 दिन शुक्रवार

छठ महापर्व के पहले दिन की शुरुआत नहाया खाया के साथ होती है. इस सुबह जल्दी उठकर स्न्नान कर नए वस्त्र धारण किये जाते है। बताया जाता है महिलाएं इस दिन माथे पर सिंदूर लगाती है सिंदूर लगाने से उनका सौभाग्य बढ़ जाता है.इस दिन महिलाये स्नान करे बिना लहसुन प्याज का खाना खाती है। खाने में चना के दाल तथा लौकी का सब्जी खाया जाता है . इस दिन से छठ पूजा करने वाली सभी महिलाएं कठिन व्रत का पालन करती है.

दूसरे दिन खरना. 29 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार

छठ पूजा के दूसरे दिन महिलाएं पुरे दिन उपवास रखती है. इसके साथ ही वे इस दिन मिट्टी का एक चूल्हा बनाती है और फिर संध्या समय में इस चूल्हे पर गुड़ की खीर और रोटियां तैयार करती है। इन तैयार किये गए व्यंजनों का भोग पहले भगवान को चढ़ाया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.बाद में सभी परिवार इसी प्रसाद को मिलकर खाते है। जिनके घर छठ नहीं होता है उनके यहाँ प्रसाद के रूप दिया जाता है .

तीसरे दिन अस्त होते सूर्य को अर्घ्य 30 अक्टूबर 2022, दिन रविवार

छठ पूजा का तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन अस्तगामी सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जाती है. छठ पूजा के तीसरे दिन अस्त होते सूर्य को बांस की टोकरी में फल, गन्ने, नारियल सुथनी ,हल्दी चावल का लड्डू ,पकवान से बांस के टोकरी को सजाते है . गाय के दूध के साथ तालाब में जल के बीच खड़े होकर हाथ में कलसुप लेकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है .इस दिन रात्रि में महिलाये जागरण करती है .तथा कथा सुनती है .

चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य 31 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार

छठ महापर्व के अंतिम दिन सूर्योदय के समय घाट पर पहुंचकर वह उगते सूर्य को अर्घ्य देते है,और उनसे अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते है.माता अपने संतान की रक्षा के लिए, परिवार में सुख शांति का वर मांगा जाता है ,फिर अपने कुल देवता का पूजन करके व्रत का पारण करती है .पारण छठ के प्रसाद से करती है .

कथा:

छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है. एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी. इस वजह से वे दुःखी रहते थे.महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा.महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया. इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे. तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. जब राजा ने उनसे प्रार्थना कि, तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं. मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की. ऐसी मान्‍यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया.

संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा, ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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