राष्ट्रनायक न्यूज।
कार्तिक मास बहुत ही पावन मास होता है. इस मास के सभी दिन त्योहार मनाया जाता है कल यानि कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी को प्रोबधानी एकादशी या देवउठनी कहते है। यह एकादशी छठ पूजा तथा अक्षय नवमी पूजन के बाद मनाया जाता है. इस दिन भगवान देव गुरु विष्णु छीर सागर में चार महीने के शयन के बाद जागते है.इस दिन से घर में मांगलिक। कार्य प्रारंभ हो जाते है .जब भगवान विष्णु शयन में रहते है .उस अवधि में घर के मांगलिक कार्य को रोक कर रखा जाता है .इसलिए जब भगवान विष्णु अपने शयन से निकले है, शुभ कार्य के प्रारंभ होने के साथ, बड़े धूम धाम से लोग अपने घर को सजाये रखते है. इस दिन तुलसी विवाह बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्त
- देवउठनी एकादशी तिथि शुरू दिनांक 3 नवंबर 2022, दिन गुरुवार शाम 7.30 मिनट
- कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी तिथि समाप्ति – 4 नवंबर 2022 दिन शुक्रवार शाम 06.08 मिनट
- देवउठनी एकादशी व्रत पारण समय – 05 नवम्बर2022 दिन शनिवार सुबह 06:00 से सुबह 08.13 मिनट
दान का महत्व :
देवउठनी एकादशी पर दान का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन घर को गाय के गोबर से लीप कर पवित्र करने की भी परंपरा है, इस दिन नए अन्न, धान, मक्का, गेहूं, बाजरा, उड़द, गुड, वस्त्र आदि का दान दिया जाता है। इसके साथ ही गन्ना आदि का दान भी श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि इन चीजों के दान से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। भाग्य में वृद्धि होती है। सुख शांति प्राप्त होती है। भगवान विष्णु का प्यार स्नेह के इच्छुक परम भक्त इस दिन चना दाल दान करे तो उतम लाभ होगा।
देवउठनी एकादशी का पूजा विधि :
- सुबह उठकर स्न्नान करके नये वस्त्र धारण करे साथ ही विष्णु भगवान का पूजन करे .
- भगवान को ऋतुफल मिठाई गन्ना भगवान विष्णु को अर्पित करे .
- परिवार के सभी सदस्य मिलकर भगवान का पूजन करे .
- घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.
- भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें.
- भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें.
आज के दिन तुलसी विवाह करते है:
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है तुलसी और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह महिलाये करती है। क्योकि तुलसी की विष्णु प्रिया भी कहा जाता है। इस लिए भगवान विष्णु जब जागते है सबसे पहले तुलसी की हरिवल्व्हभा ही करते है। तुलसी विवाह का मतलब भगवान विष्णु का आहान करना।
कथा
देवउठनी एकादशी के संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती हैं कि स्वामी आप तो रात-दिन जगते ही हैं। या फिर लाखों-करोड़ों वर्ष तक योग निद्रा में ही रहते हैं. आपके ऐसा करने से संसार के समस्त प्राणी उस दौरान कई परेशानियों का सामना करते हैं। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें. इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा. लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले-देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार माह वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं आपके साथ निवास करूंगा.
संजीत कुमार मिश्रा, ज्योतिष, वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847
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