राष्ट्रनायक न्यूज।
पटना (बिहार)। मच गया हाय तौबा।पक्ष विपक्ष आमने सामने। द कश्मीर फाईल्स के लिये दो ही शब्द तो कहा- अश्लील और प्रोपेगेंडा।आइये विस्तार में चलें। इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया के प्रमुख जूरी हेड की टिप्पणी- ‘ द कश्मीर फाइल्स’ एक अश्लील और प्रोपगंडा फिल्म है, शत प्रतिशत सटीक टिप्पणी है तो फिल्म इंडस्ट्री को शर्मशार करने वाली भी है।उन्होंने तो यहाँ तक कह डाला कि ऐसे पवित्र मौके पर इस प्रकार की फिल्म दिखाने से परहेज करनी चाहिये।कोई शक है क्या ? कि मुसलमानों के प्रति नफरत की दीवार खडी़ करने तथा वोटों के ध्रुवीकरण के मद्दे नज़र इस फिल्म का निर्माण किया गया था।कुछ मुस्लिम आतंकवादियो के बदौलत पूरे मुस्लिम कौम को उसी दृष्टिकोण से दिखलाने की कोशिश, क्या प्रोपगंडा की श्रेणी में नहीं आयेगा ? सच और ऐतिहासिक तथ्यों को जलील करने वाली इस फिल्म का प्रमोशन करते हुए देश के प्रधानमंत्री भी देखे गये थे।किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिये यह घोर लज्जा की बात है।हाँ मोदी जी को लाज नहीं आयेगी क्योंकि ऐसी हरकत तो उनकी फितरत ही है। याद है, क्या कहा था “सबका विकास” का नारा देने वाले ने- ऐसी फिल्म हमेशा बननी चाहिये।
जय भीम पर उनका मुँह सिल गया था।क्योंकि जिस वर्ग की रहनुमाई वो करते हैं वो फिल्म उसकी कलई खोल रही थी। विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्मित और अनुपम खेर व मिथुन चक्रवर्ती वगैरह द्वारा अभिनित इस फिल्म में आतंकवादी घटना जो 1990 में काश्मीर में घटित हुई थी, जिसमें वहाँ पंडित समुदाय को मुख्य निशाना बनाया गया था, प्रदर्शित है।अवश्य ही वह एक लोमहर्षक घटना थी।हजारों की संख्या में पंडितों ने मजबूरन पलायन किया था।उस अवधि में राज्यपाल की भूमिका जो पूरी तरह संदिग्ध और उदासीन थी, उसे इस फिल्म में क्यों नहीं दिखाया गया ? सर्वविदित है कि राज्यपाल जगमोहन भाजपा समर्थक थे। फिल्म में इस सच्चाई को पूरी तरह निगल लिया गया है कि पंडितों को बचाते हुए परोस के मुसलमानों ने भी भारी कुर्बानी दी थी। जिसने सुरक्षा दी, मारा गया।सिखों को भी नहीं बख्शा गया था।माकपा विधायक उसुफ तारीगारी के कई रिश्तेदार मारे गये थे।फिल्म पर युसुफ का बयान कितना भाउक था, उन्होंने अपील करते हुए बोला था – ” हम काशमीरियों के आसूँ को मत बाँटों, वो सिर्फ पंडितों पर नहीं बल्कि हमारे काशमीरियत पर हमला था”। उस समय केन्द्र में बाजपायी की सरकार थी और काश्मीर में राष्ट्रपति शासन था।ठीक ही कहा गया है।यह फिल्म अधा सच और आधा, सत्य का गला घोटने वाली है।इस फिल्म में कला को भी अपमानित किया गया है क्योंकि कला सत्य का दर्पण होता है।जूरी हेड का कथन पूर्णतया सत्य है।सत्य तो कड़वा होता ही है।
लेखक- अहमद अली
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