जिले भर में संतान की दीर्घायु, आरोग्य व समृद्धि की कामना से माताओं ने किया निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत का अनुष्ठान
राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
छपरा/दाउदपुर (सारण)। जिले भर में गुरुवार को संतान की दीर्घायु, आरोग्य व समृद्धि की कामना से माताओं ने पारंपरिक आस्था के साथ निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत का अनुष्ठान किया। इस अवसर पर शहरी इलाकों के अलावा ग्रामीणों क्षेत्रों में से माताओ ने संतान की लंबी आयु की मंगलकामना के लिए गुरुवार को जीवित्पुत्रिका व्रत का अनुष्ठान किया। पुत्र की दीर्घायु, आरोग्य एवं सुखमय जीवन के लिए माताओं ने पूरे रात-दिन जीवित्पुत्रिका व्रत रखा। बताया गया है कि इस व्रत का काफी महत्व है।यह व्रत पुत्र की लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाता है। इस व्रत को आम बोल चाल की भाषा मे जिउतिया कहा जाता है। जिसे निर्जला उपवास रख माताएं पुत्र की दीर्घायु होने की मंगलकामना करती है। इस व्रत को लेकर छपरा शहर के विभिन्न मोहल्लों के अलावा दाउदपुर, एकमा, मांझी, रसूलपुर, दिघवारा, सोनपुर, मशरख, मढौरा, तरैया, पानापुर, इसुआपुर, दरियापुर, लहलादपुर, जलालपुर, बनियापुर, रिविलगंज, नगरा, गड़खा, परसा, मकेर आदि इलाकों में भी श्रद्धालु माताओं में काफी उत्साह दिखा। मांझी के नचाप में बोहटा नदी के तट पर श्रद्धालु माताओं ने सिल्हो- सियारिन की कथा का श्रवण किया। वहीं एकमा नगर पंचायत मुख्यालय स्थित शिवालय मंदिर परिसर में माताओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत कथा का श्रवण किया। मांझी के सरयू नदी के घाट पर सुबह से व्रती माताओं की स्नान व पूजा अर्चना को को लेकर भीड़ उमड़ पड़ी। वहीं प्रखंड के विभिन्न सरोवरों व घरों में व्रत धारियों ने पवित्र स्नान कर विधि-विधान से पूजा अर्चना किया। साथ ही संतान की दीर्घायु जीवन की कामना की तथा संतान के सुखी जीवन के लिए व्रत कथा का श्रवण किया। जीवित्पुत्रिका व्रत हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को किया जाता है। व्रत का शुभारंभ सप्तमी तिथि बुधवार को नहाय खाय के साथ और नवमी तिथि को पारण के साथ सम्प्पन होगी। इस व्रत को संतान के सुरक्षा से जोड़कर देखा जाता है ऐसा कहा जाता है कि जो इस व्रत को निष्ठा एवं श्रद्धाभक्ति से इस व्रत की कथा का श्रवण व्रतियों को करता है, वह जीवन मे कभी संतान वियोग नही सहता है।उसका जीवन धन्य हो जाता है। व्रती महिलाएं सुबह में स्नान के उपरांत सूर्यदेव के पूजा करके अपने पुत्रो के दीर्घायु के लिए अखण्ड निर्जला व्रत रखती।जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर कई कथाएं प्रचलित है। जिसमें एक काफी प्रचलित कथा चील एवं सियारिन का है। जिसमे उक्त कथा के अनुसार एक जंगल मे चील व सियारिन रहते थे। वे दोनों एक अच्छे मित्र थे।एक दिन चील एवं सियारिन जंगल मे घूम रहे थे।इसी दौरान उन्होंने मनुष्य जाति को इस व्रत को विधि पूर्वक करते देखा एवं कथा सुनी। उस समय चील ने इस व्रत कथा को बहुत ही श्रद्धा के साथ ध्यानपूर्वक देखा। जबकि सियारिन का ध्यान भटकता रहा।उक्त दोनों मित्रो ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा। जिसमें चील ने श्रद्धा के साथ व्रत रखा जबकि सियारिन ने चुपके से व्रत को तोड़ दिया। जिससे चील के सभी संतान स्वस्थ्य एवं दीर्घायु हुए।उसके संतान को कभी कोई हानि नही हुआ। जबकि सियारिन के संतान के कुछ समय के बाद मृत्यु होने लगी।इसलिए इसे हर माता अपनी संतान की रक्षा के लिए करती है। जिसे जिउतिया कहा जाता है।


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