कविता: आओ मिलकर दुआ करें…
जिनके घर है घोर अंधेरा
चूल्हा तक नहीं जलता है ।
जिनको खाने को दो वक्त
सुकून से कभी न मिलता है।।
जिनके घर दीप जलाना
तक भारी पड़ जाता है ।
रुई की बत्ती और तेल
लेना मुश्किल पड़ जाता है ।।
महिलाओं की फटी है धोती
पुरुषों के बनियान नहीं है ।
जिनके घर में है फटे किवांड
एक तरफ दीवार नहीं है ।।
जो है बेसहारे
ठोकर के है मारे ।
दुखिया है दुख के मारे
सब के सब बेचारे ।।
ऐसे लोगों पर
हम सब कृपा करें ।
भूख से मर न जाए कोई
आओ मिलकर दुआ करें ।।
आओ मिलकर दुआ करें
आओ मिलकर दुआ करें…
लेखक कवि जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)
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