राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

हाथरस में मनुवादी कहर

हाथरस में मनुवादी कहर

लेखक: अहमद अली
क्या वो लावारिस थी या अपराधी ? नहीं, दलित थी वो। सिर्फ दलित। अँग्रेज़ भारतीयों के साथ ऐसा ही सुलूक किया करते थे, जैसा कि उस लड़की के साथ योगी की पुलिस और प्रशासन ने किया। अर्थात् अँग्रेजों की मानसिकता जिस प्रकार भारतीयों के प्रति थी, उससे भी भयावह उदाहरण दे गयी उत्तरप्रदेश की सरकार। और शायद इस तरह की घटना आजाद भारत की पहली घटना है। समझ से परे नहीं है कि मनीषा(काल्पनिक) के शव को रात के तीसरे पहर में आनन-फानन और जबरन क्यों जला दिया गया। स्पष्ट है पुलिस और प्रशासन अपने आकाओं का हुक्म बजा ला रही थी। क्योंकि मुकदमा में लीपा-पोती करने और बलात्कारियों को सुरक्षित रखने के लिये तुरत लाश को ठिकाने लगा देना जरुरी था। सबेरा होने पर हंगामा का डर था। दोबारा पोस्टमार्टम की माँग भी हो सकती थी। पुलिस का बयान कि बलात्कार नहीं हुआ है। हुआ था या नहीं अब तो जाँच भी कैसे होगी ! कालान्तर में बलात्कारियों के प्रति मेहरबान रहने की लम्बी सूचि है योगी सरकारी की ।
और अब झूठ पर झूठ। एक झूठ को छूपाने के लिये कई झूठ। जितने अफसर हैं उतना झूठ। डी. एम., एस.पी. के साथ अन्य पुलिस पदाधिकारियों के बीच बँटवारा कर दिया गया है कि किसे क्या छुपाना है। यानी आज अगर गोयबल्स होता तो वो भी शर्मिंदा हो जाता। कहा जा रहा है कि उसके घर वालों की सहमति से लाश जलाई गयी। जबकि वीडियों सार्वजनिक हो गयी है। माँ विलख-विलख कर भीख माँग रही है अपनी बेटी के शव की, ” मुझे  लाश दे दो। सवेरे उसे हल्दी कुम-कुम लगाकर और हिन्दू रीति रिवाज के साथ अपनी लाडली को विदा करुँगी। बडे़ लाड़ प्यार से पाला था उसे, कम से कम ये मेरी अन्तिम इच्छा पूरी कर दो”। भाई जब लाश के लिये जिद पकड़ता है, उसके साथ धक्का-मुक्की किया जाता है। बाप जब लाश के लिये हाथ जोड़ता है, उसे लात मारी जाती है। इसे आप क्या कहेंगे ! संवेद असहिष्णुता, क्रूरता या अमानवीय। इन सभी शब्दों को प्रशासन ने फीका कर दिया तथा इन्सानियत को शर्मसार। ये सब हो रहा है एक ऐसे राज्य में जहाँ रामराज की घोषणा हो चुकी है और हिन्दू संस्कृति का परचम बुलन्द किया जाता है। प्रश्न दर पेश है, क्या रामराज में बेटियों के साथ यही होता है जो मनीषा(काल्पनिक) के साथ हुआ या हिन्दू संस्कृति  इसकी इजाजत देती है ? गाय की रक्षा के लिये कानून बनाये जाते हैं, यहाँ और बेटियों की आबरु के लूटेरों को सुरक्षा दी जाती है। यही है योगी के रामराज का नमूना।
जरा नजर डालिये मनुस्मृति के पन्नों पर, सब स्पष्ट हो जायेगा। शुद्र की श्रेणी में कौन आते हैं। वो मजलूमा उस श्रेणी में है या नहीं ? मनुस्मृति शुद्र को ज्ञान अर्जित करने, धन इकठ्ठा करने या इज्जत एंव बराबरी के साथ जीने का अधिकार देता है क्या ?  इन्हें तो केवल सेवा धर्म पालन का कर्त्तव्य निर्धारित है, बस।
घटना को शुरु से जब देखेंगे तो और स्पष्ट होगा। यानी घटना की तारीख 14 सितम्बर है, जब चार दबंग जाति के लड़के उस लड़की को घसीटते हुए एकान्त में ले जाकर उसके साथ सामुहिक बलात्कार करते हैं, घसीटने में तीन जगह उसके गर्दन की हड्डी टुट जाती है, जीभ कट जाता है। फिर अधमरा करके ही उसे छोड़ते हैं। पुलिस पूरे मामले को छेड़खानी की घटना मान कर बेजान एफ.आई.आर. दर्ज करती है और एक साधारण अस्पताल में इलाज के लिये भेज देती है। हालत बिगड़ने पर अलीगढ़ फिर सफदरजंग अस्पताल में रेफर की जाती है, जहाँ बहुत मुश्किल से उसका बयान हो पाता है। बेचारी दम तोड़ देती है। दिल्ली में कई बड़े-बड़े अस्पताल हैं पर उनमें उसका इलाज कराना आवश्यक नहीं समझा गया। जब कुछ जागरुक लोग और समाज के द्वारा आवाज उठाई जाती है तो 22 सितम्बर को उस ए.आई.आर. में 376 धारा जड़ा जाता है। 29 सितम्बर को मनीषा(काल्पनिक) के मरने के बाद जो कुछ भी हुआ उसका जिक्र उपर है।
अब दो बातें सामने आ रही है। एक तो योगी आदित्य नाथ का डायलग शुरु है कि दोषियों को ऐसी सजा होगी जो उहारण बन जायेगी। दूसरा पुलिस की उस परिवार को तरह-तरह की धमकी।सरकार ने एस.आ.टी. का गठन किया है। यह भी मामले को और जटिल बनाने के कवायद मात्र है।ए-एक घटना का वीडीयो सामने है, लेकिन कार्रवाई करने लिये एक सप्ताह का इन्तजार करना होगा, तब तक मामले को रुई बनाने के लिये कुछ और जुगार बैठ जायेगा। पूरे गाँव की नाके बन्दी है। है तो केवल पुलिस और अन्य प्रशासनिक पदाधिकारी जो हर क्षण इस प्रयास में हैं कि कैसे अपने गुनाहों को छुपा लिया जाय।

           ये संतोष की बात है कि आन्दोलन अब धीरे-धीरे जोड़ पकड़ रहा है। न्याय के पक्ष में आवाजे़ भी तेज हो रही है। न्याय का कवायद कितना सफल होता है यह देखना अभी बाकी है। क्योंकि योगी सरकार की कथनी और करनी में हमेशा जमीन आसमान का अन्तर रहा है। सच्चाई यह है कि यू.पी. में रामराज्य नहीं मनुराज है और वहाँ की सरकार मनुस्मृति के नक्शे कदम पर ही गामजन है।

cpmahamadal@gmail.com

(लेखक के अपने  विचार है।) 

You may have missed