राष्ट्रनायक न्यूज

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नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारणी की हुई आराधना

नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारणी की हुई आराधना

राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
मांझी (सारण)। शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन रविवार को मां भगवती के नौ शक्तियों के दूसरे स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी की विभिन्न धार्मिक स्थलों एवं पूजा पंडालों में पूर्ण विधि-विधान से अराधना की गई।जैसा कि देवी स्वरूप नाम से ही वर्णित होता है कि ब्रह्मचारिणी यानी ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली देवी।ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर सदाचार,धैर्य,संयम,एकाग्रता और सहनशीलता का आशीर्वाद प्रदान करती है।ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली।अर्थात तप का आचरण करने वाली।मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती है।इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए माँ काली एसोसिएशन जैतपुर के पुजारी संत तिवारी ने बताया कि मां ब्रह्मचारणी की पूजा करने से मंगल ग्रह की अशुभता दूर होती है।ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं।जिन लोगों की जन्म कुंडली में मंगल अशुभ है उन्हें मां ब्रह्मचारणी की पूजा करनी चाहिए।शिवपुराण तथा रामचरितमानस में लिखा है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर कठोर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ।नवरात्र के दूसरे दिन भक्त अपने मन-मस्तिष्क को ब्रह्मचारिणी के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और उनके मंत्रों का जाप कर मनचाही इच्छा पूरी होने का वरदान पाते हैं। क्षेत्र के श्रद्धालुओं ने अपने-अपने घरों तथा देवालयों में कलश स्थापित कर देवी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना में लीन है। शारदीय नवरात्र को लेकर सम्पूर्ण क्षेत्र भक्तिमय वातावरण में सम्माहित है। उन्होंने बताया कि माता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

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