“विश्वाश”…
प्रमाण की जरूरत नहीं
आस्था को ।
“विश्वाश” की जरूरत है
आस्था को ।।
आस्था से मन
समर्पित होता है ।
पर “विश्वाश” की जरूरत है आस्था को ।।
“विश्वाश” के रास्ते बना लो
मंजिलें मिल जाएंगी ।
मंजिलें न भी दिखें पर
दूरियां घट जाएंगी ।।
हो अटल “विश्वाश” पक्का
नजदीकियां आ जाएंगी ।
हर पग में ऐसा दम होगा कि
जमीन भी हिल जाएगी ।।
लेखक एवं देश कवि
जीतेन्द्र कानपुरी (टैटू वाले)


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