“यह चुनाव मेरा आखिरी है” सहानुभूति अर्जित करने वाला एक दगा़बाज और फेकू जुमला
नीतीश जी ने एक चुनावी सभा में घोषणा किया कि यह चुनाव उनका आखिरी है। यानी अब चुनाव नहीं लडे़ेगे। लड़ेगे या नहीं यह उनकी मर्जी। लेकिन उनकी इस बात पर यकीन कौन करेगा ! याद किजिये उन्होंने कसम खाई थी , “मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाऊँगा। वो गये और बिहार की जनता से किये तमाम वादे भी भूल गये। धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद पर 2015 में सरकार के मुखिया चुने गये। पर जिस बेशर्मी से उन्होंने बिहार की जनता के विश्वास के साथ दगाबाजी किया, आज उसी का बदला चुकाई जा रही है। जनता ने मन तो उसी समय बना लिया था, केवल चुनाव का इन्तजार था।
उनके इस बयान को लोग सहानुभूति अर्जित करने वाला एक शगूफा और चालबाजी के सिवा कुछ नहीं समझते है। जब हर जगह उनको ठेंगा दिखाया जा रहा है तो यह जुमला फेंक रहे हैं कि सहानुभूति में लोग उन पर रहम करेंगें। जो होने वाला नहीं है। नीतीश जी, भाजपा को तो अब कम से कम जान ही गये होंगे। उछल कर वो उसके गोद में जा बैठे और आज वही भाजपा उनकी गर्दन मरोड़ दिया। खैर इस पर मुझे कुछ नहीं कहना। छात्रो, नौजवानों, किसानों, मजदूरों, शिक्षकों, महिलाओं को पाँच साल जिस तरह आपने भाजपा के इशारे पर रौदा और उनपर लाठियाँ बरसाईं। आपको भुगतना ही था। बिदाई भी अब तो स्पष्ट ही है। बिहार की धरती एनडीए के नापाक छाया से मुक्त तो होगी ही। और भाजपा मुक्त भारत बनने की यह शुरुआत भी है।
(लेखक के अपने विचार है।)
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