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अर्नव गोस्वामी की गिरफ्तारी स्वतन्त्र पत्रकारिता पर हमला कैसे ?

अर्नव गोस्वामी की गिरफ्तारी स्वतन्त्र पत्रकारिता पर हमला कैसे ?

लेखक- अहमद अली
बात समझ से परे है कि रिपक्लिक टी वी के चीफ ऐडिटर अर्नव गोस्वामी की गिरफ्तारी स्वतंत्र पत्रकारिता या अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला कैसे हो गया ! देश के गृहमंत्री को तो आपातकाल की याद भी आ गयी है। प्रकाश जावडे़कर, स्मृति ईरानी से ले कर भाजपा के तमाम नेताओं ने चिल्ला चिल्ला कर अपना गला सुखा लिया है। कहीं कहीं विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं। ये सभी लोग इस सच्चाई से लोगों का ध्यान बाँटने के खेल में मशगूल हैं कि अर्नव पर एक आपराधिक मामला जो 2018 में दर्ज था, जिसको निवर्तमान सरकार ने तोड़ मरोड़ कर रफा दफा कर दिया था। अभी उसी मामले को पुनः सतह पर ला दिया गया है, जिसमें अर्नव की गिरफ्तारी हुई है।
आइये घटना की तहकीकात तक चलें। ईंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक, जिसने अर्नव के टी वी स्टूडियो का डिजाईनिंग किया था। 83 लाख रुपया अर्नव पर बकाया था उसका। जब भी नाईक पैसा माँगता,  बीजेपी के चहेते पत्रकार (तथाकथित ) अर्नव द्वारा उसे जान से मार देने और उसकी बेटी की कैरियर बर्बाद कर देने की धमकी मिलती थी। दो और नाम हैं-  एक आईकास्ट/स्काई मीडिया फिरोज शेख जिसपर नाईक का 4 करोड़ और दूसरा स्मार्ट वर्कर्स के नीतीश शारदा जिसपर 4 लाख बकाया था। ये तीनों पैसा देने से कतराते थे। आर्थिक तंगी और अर्नव की धमकी से नाईक इतना दिमागी दबाव में आया कि उसने 5 मई 2018 को अपनी माँ के साथ आत्महत्या कर अपनी जिन्दगी खत्म कर ली। अर्नव ने, चूँकि धमकी दे कर उसके हौसले को कुचलने में शामिल था अतः उसपर अत्महत्या के लिये उकसाने का दोष आयद है। उसी मुकदमे को पुनः खोला गया है। यानी आपराधिक मुकदमें में गिरफ्तारी। चिल्ल पो करने वाले तो स्वयं  इस प्रकार की कार्रवाई करने में माहिर हैं, फिर वो किसे बेवकूफ बना रहे हैं। अन्वय नाईक ने एक सुसाईड नोट जो छोड़ा है उसमें सारी बातों का जिक्र है। गिरफ्तारी तो तीनों की हुई है। लेकिन अर्नव पर ही शोर क्यूं ? क्योंकि वो समाज में नफरत फैलाने, साम्प्रदायिक विष वमन करने और सैकुलर ताकतों को गरियाने का टास्ट बखूबी निभाया करता था। समझे आप! इसीलिये उसकी गिरफ्तारी स्वतन्त्र पत्रकारिता पर हमला है। गनीमत है कि उस गिरफ्तारी को अभी तक राष्ट्र विरोधी नहीं कहा गया है। क्योंकि अर्नव गोस्वामी की हरकत उनकी नजर में राष्ट्र भक्ति का मिसाल हुआ करता था। वैसा  घोर राष्ट्रवादी अभी कोई उन्हें दिखाई नहीं पड़ता। बेचैनी दरअसल इसी बात को लेकर है।
ओ उद्भव ठाकरे, तुम कहाँ हो। हिम्मत है तो आओ मेरे सामने। मुझसे बहस करो। वाह कितनी सुन्दर वाणी थी अर्नव की। इसी वाणी ने बदले की भावना जागृत कर दिया हो तो आश्चर्य क्या।बेहुदा हरकतों का जवाब कुछ ऐसा ही होना भी चाहिये।
आईये एक दूसरे पहलू पर नजरसानी करें। अर्नव की भाषा जितनी अभद्र और हरकत जितना अमर्यादित थी। भाजपा की सरकार होती और उसके मुख्यमंत्री के साथ वही कुछ होता जो उद्भव ठाकरे के साथ पेश आया जा रहा था, तो कब का उस पर यु ए पी ए लगा कर जेल के हवाले कर दिया जाता। क्या कसूर था केरल के उन दो पत्रकारों का ? यही ना कि उन्होंने पालघर की घटना को सच्चाई के दायरे में लाना चाह रहे थे। आज भी यु ए पी ए के तहत जेल में हैं। उत्तरप्रदेश में तो आए दिन ऐसी घटना देखी जा सकती है। सरकार की नाकामियों पर सवाल खड़े किये तो सीधे झूठा मुकदमा फिर जेल की हवा। दर्जनों मिसालें हैं इसकी। हँसी आती है जब वे ही लोग स्वतन्त्र पत्रकारिता की आज दुहाई दे रहे हैं।
जब गौरी लंकेश की हत्या हुई। सैकड़ों स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। उस समय इनके मुँह पर ताले लग गये थे। यहाँ तक कहा, कुतिया मर गयी, कुत्ते बिलबिला रहे हैं। दाभोलकर,पंसारे और कलबूर्गी जो प्रगातिशील लेखक थे। उनकी हत्या किसने की? यह सर्वविदित है। आज गला फार फार कर अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वालों के मुँह में विरोध का एक भी शब्द न था।सुधाकर भारद्वाज और गौतम नौलखा जैसे लगभग 56 लेखक और पत्रकार आज जेलों में बन्द  हैं, और वो भी संगीन धाराओं में।  विरोध तो दूर सहानुभूति के शब्द भी उनकी जुबान से नहीं निकलती।चैनल के जिस ऐंकर ने सरकार पर सवाल उठाया, वो नौकरी से बाहर। उस चैनल को बन्द कर देने की धमकी, स्वतंत्र पत्रकारों पर संगीन झूठे मुकदमें। आये दिन ये तमाशा पूरा भारत देख रहा है। वर्तमान सरकार की कुव्यवस्था, तानाशाहीपूर्ण सियाशत एवं  नाकामियों से पर्दा हटाने वाले  पत्रकार किस तरह रौदे जाते हैं, आजादी के बाद 2014 के पहले भी ऐसा हुआ है क्या ?
दरअसल सच्चाई यह है कि अर्नव गोस्वामी सरकार के विरोधियों को गाली देने, समाज में नफरत फैलाने, हिन्दू- मुस्लिम के बीच नफरत की दिवाल खडा़ करने में सबसे अगली पंक्ति में था। यही वजह है कि घृणा पोषक तत्वों को उसकी अनुपस्थिति अखड़ रही है। सभी उसके हिमायत में एक साथ खडे़ हैं। और बेहयाई से आवाज भी दे रहे हैं – कहाँ हैं आज, अभिव्यक्ति की अजादी और लोकतंत्र के लिये आवाज उठाने वाले ?
(लेखक के अपने विचार है।)
cpmahamadali@gmail.com

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