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दार्शनिक शायर डाॅ. इकबाल के यौमे पैदाईश पर विशेष

दार्शनिक शायर डाॅ. इकबाल के यौमे पैदाईश पर विशेष

आज शायरे मशरिक अल्लामा इकबाल का यौमे पैदाईश है। जिनकी जिन्दगी का आखिरी हिस्सा पाकिस्तान में गुजरा और वहीं दफ्न भी हैं। हम भारतीयों के लिये लेकिन बहुत कुछ दे कर गये हैं। आईये चन्द पंक्तियों में उसकी प्रासंगिकता पर नजरसानी करें और डॉ. इकबाल को खिराजे़ अकी़दत पेश करें।

– मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोसताँ हमारा।।
शायर ने भाईचारे का जो पैगाम दिया है। अगर इसे अमल में उतारने की कोशिश करें तो हम समाज में अमन की नई इबारत लिख सकते हैं।
डॉ. इकबाल स्वाभिमान के बहुत बडा़ पक्षकार थे ।वो हर इन्सान को ललकारते हुए कहते हैं

– खुदी को कर बुलन्द इतना
कि हर तकदीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे
बता तेरी रजा़ क्या है।

बहुत कम लोगों को इसका ईल्म होगा कि ये दार्शनिक शायर रुसी क्रांति से इतना प्रभावित थे कि उन्होंनें अपने कई अश्आरों से उसे नवाजा मसलन –
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही
जिन्हें नफरत ही प्यारी है। वो एकबाल को भी उसी नजर से देखते हैं। लेकिन इकबाल को रत्ती भर भी इसका परवाह नहीं है। उनकी नजरिया का एक नमूना देखिये…..
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं उनको इमाम-ए-हिंद
और आखिर में ……
भारतवासियों को, उनकी नसीहत को आत्मसात करनी होगी। मानो आज वो जीवित है और हमसे कह रहे है …
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में

लेखक- अहमद अली

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