गेहूं की खेती में जुटा कृषि विभाग, इसबार 1.37 लाख हेक्टेयर में होगी रबी फसल की खेती
- एक लाख हेक्टेयर में गेहूं, 26 हजार हेक्टेयर, 3555 हे. दलहन और 7630 हे. में होगी मक्के की बुआई
- जीरो टिलेज व श्री विधि से गेहूं की खेती कराने की हो रही है तैयारी, डेढ़ गुणा अधिक होगी पैदावार
कशिश भारती की रिपोर्ट
छपरा(सारण)। जिले में गेहूं की खेती कर अधिक पैदावार हासिल करने को लेकर कृषि विभाग तैयारी में जुट गया है। इस बार जीरो टिलेज व श्री विधि से गेहूं की खेती कराने को ले ज्यादा प्रयास किया जा रहा है। साथ ही विभाग द्वारा निर्धारित लक्ष्य को पुरा करने को लेकर किसान भवन स्थित सभागार में जिला कृषि पदाधिकारी डॉ. के.के. वर्मा ने बैठक किया। जिसमें गेहूं, मक्का, दलहन एवं तेलहन के लिए निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने को लेकर आवश्यक दिशा-निर्देश दिया है। जिला कृषि पदाधिकारी ने रबी फसल के अंतर्गत सभी बीजों को आगामी 15 नवंबर तक वितरण करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि 16 नवंबर से गेहूं का बीज वितरण करने का निर्देश दिया है। डीएओ ने कहा कि किसानों से बीज को लेकर किसानों से ऑनलाइन आवेदन प्राप्त करने का निर्देश दिया है। ताकि किसानों को ससमय बीज मुहैया करवाकर फसल के अच्छादन का लक्ष्या हासिल किया जा सके। वहीं लक्ष्य के अनुरूप खेती कर अधिक पैदावार को लेकर अफसरों को टास्क भी दिये जाएंगे। जानकारी के अनुसार रब्बी की बुआई 15 अक्टूबर से लेकर 20 नवंबर तक किया जाता है। इसलिए कृषि विभाग ने बुआई के पहले से ही तैयारी में जुट गया है। विदित हो कि जीरो टिलेज व श्री विधि से गेहूं की खेती करने पर कम खर्च में डेढ़गुणा से अधिक पैदावार होती है। श्री विधि के उन्नत पद्धति से गेहूं की खेती करने पर एक एकड़ में 14 क्वींटल तक गेहूं की पैदावार की जा सकती है। जिससे किसानों की आर्थिक स्थित मजबूत हो सकती है। इस मौके पर जिले के सभी प्रखंडों के कृषि पदाधिकारी, कृषि समन्वयक एवं जिला स्तरीय सभी पदाधिकारी एवं कर्मी उपस्थित थे।
एक नजर में देखें रबी फसल का लक्ष्य
फसल का नाम लक्ष्य(हेक्टेयर में)
गेहूं एक लाख हे.
मक्का 26 हजार हे.
चना 525 हे.
मसूर 1090 हे.
मटर 1370 हे.
कुल दलहन 3555 हे.
सरसों 6500 हे.
तीसी 1130 हे.
कुल तेलहन 7630 हे.
श्री विधि से गेहूं की बुआई के लिए ऐसे करे खेत की तैयारी
खेत की तैयारी सामान्य गेहूं की खेती की तरह ही करते है। एक एकड़ खेत में करीब 20 क्वींटल गोबर खाद या 4 क्वींटल केंचुआ खाद का प्रयोग करना चाहिए। अगर खेत में पर्याप्त नमी नहीं है तो बुआई के पहले एक बार हल्की सिंचाई कर लेनी चाहिए। अंतिम जुताई के पहले एक एकड़ खेत में 27 किलो डीएपी, साढ़े 13 किलो पोटाश छींटकर हल से अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। यदि मिट्टी में जिंक की कमी होने पर एक एकड़ में 10 किलो जिंक मिलाना चाहिए। बता दें कि कंपोस्ट खाद की उचित मात्रा के बिना सिर्फ रसायनिक खाद का प्रयोग करते रहने से खेत की उपच क्षमता घटती जाती है।
श्री विधि से खेती करते समय 8 ईंच की दूरी पर लगाये बीज
बुआई के समय खेत में बीज के अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। नमी नहीं होने पर बीज सुख जाते है। श्री विधि से खेती करते समय किसान आठ ईंच की दूरी पर एक से डेढ़ इंच की गहराई मे नाली बनाकर ही बीज लगायें। इसके बाद बीज को मिट्टी से ढ़ंक देनी चाहिए। एक सप्ताह में बीज नहीं अंकुरते है तो वहां नया बीज लगा देना चाहिए।
गेहूं की फसल को समय से करें सिंचाई
सिंचाई बुआई के बाद फसल की अवस्था
पहली सिंचाई 20 से 25 दिन बाद मूल जड़ बनते समय
दूसरी सिंचाई 40 से 45 दिन बाद कल्ले निकलने की अवस्था में
तीसरी सिंचाई 70 से 75 दिन बाद फसल में गांठ बनने की अवस्था में
चौथी सिंचाई 90 से 95 दिन बाद फसल में कुछ पुष्प आने की अवस्था में
पांचवी सिंचाई 110 से 115 दिन बाद फसल में दूध पड़ने के समय
बुआई के समय एक हेक्टेयर में इतना डालें गेहूं के बीज–
समय से बुआई के लिए – 100 से 125 किलो प्रति हेक्टेयर
देर से बुआई के लिए – 125 से 150 किलो प्रति हेक्टेयर
बहुत देर से बुआई के लिए – 150 से 160 किलो प्रति हेक्टेयर
जीरो टिलेज तथा सतही बुआई 150 से 160 किलो प्रति हेक्टेयर
जीरो टिलेज से खेतों की जुताई के बिना ही करे गेंहू की बुआई
जीरो टिलेज तकनीक से खेती करने पर किसानों का कम खर्च में ही करीब डेढ़ गुणा अधिक पैदावार होती है। धान की फसल कटने के बाद खेतों की जुताई नहीं की जाती है। खेतों में नमी की कमी होने पर खेतों की बिना जुताई के ही हल्की सिंचाई कि जाती है। इसके बाद जीरो टिल सीड ड्रिल मशीन से ही खेतों की बुआई की जाती है। जीरो टिलेज से खेतों की बुआई के समय दानेदार खाद का ही प्रयोग किया जाता है। इस तरह से खेतों की बुआई के समय मशीन में करीब 50 किलो डीएपी व पर्याप्त मात्रा में बीज डाला जाता है। साथ ही खेतो के बुआई होने के बाद एक एकड़ खेत में करीब 32 किलो पोटाश छींट देना चाहिए। जीरो टिलेज तकनीक से खेतों की आसानी से बुआई की जाती है। इसके अलावे खेतों से खरपतवार आसानी से नस्ट किया जा सकता है।


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