भारत चीन सिमा तनाव व कोरोना से चायनीज समान की बिक्री रुकी,मिट्टी के दीपक व बर्तन के डिमाण्ड बढ़ी, कुम्हार के चेहरे खिले
- मिट्टी के दीया, ढक्कन, कलश, हाथी, प्याले की बाजारों में खुब मांग हो रही हैँ
मुरारी स्वामी की रिर्पोट। राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
गड़खा (सारण)। भारत-चीन बॉर्डर पर तनाव तथा चीन से पूरे विश्व में फैली कोरोना वैश्विक महामारी के कारण लोग में चीन के प्रति खुद-ब-खुद नफरत भाव पैदा होने लगा है। इसका फायदा इस बार मिट्टी के दिया व बर्तन बनाने वाले प्रजापति समाज को काफी हो रही है।दीपावली और छठ महापर्व में मिट्टी के दीपक,धूपदानी,हाथी,गणेश लक्ष्मी के मूर्ति समेत अन्य समानों की बिक्री इस बार काफी बढ़ गई है। पहले जहां सस्ता के चक्कर में लोग चाइनीज लाइट्स लगाते थे। वहीं इस बार लोग चीनी लाइट छोड़कर मिट्टी के दिया की ओर रुझान बढ़ गई है।रायपुरा के छेदी पंडित, राम इकबाल पंडित रामजतन पंडित श्री राम पंडित उमेश पंडित सुरेश पंडित कृष्णा पंडित सुखदेव पंडित साधु पंडित तुलसी पंडित,अम्बिका पण्डित समेत अन्य लोगों ने बताया कि पिछले कई वर्षों से समाजसेवी संस्थाएं लोगों को चाइनीस सामान के बहिष्कार करने के सामान के उपयोग करने के लिए जागरूक करते थे। फिर भी मिट्टी के दीपक की बिक्री कम होती थी। लेकिन इस बार चायनीज की करतूत से नाराज लोगों का रुझान मिट्टी के सामान की ओर बढ़ गई है। इसलिए बिक्री बढ़ने से कई परिवारों के सामने पिछले कई वर्षों से आर्थिक संकट धीरे-धीरे दूर होने लगी है।
चाय दुकानों में भी बड़ी मिट्टी के बर्तनों की उपयोग
पहले जहां चाहे दुकानों में प्लास्टिक शीशे के कप उपयोग होते थे। वहीं अब अख्तियारपुर गड़खा, मीनापुर,रायपुरा,सराय बक्स,बांसडीह समेत पर सैकड़ों जगहों पर चाय दुकानों में मिट्टी के कप का उपयोग होने से प्रजापति परिवारों को साल भर मिट्टी के बर्तन बनाने का काम मिल रही है।
कोरोना में बन्द हुई थी करोबार
मिट्टी के बर्तन को आकार देने वालो ने बताया कि 6 महीनों तक लॉक डाउन रहने के कारण सभी पर्व त्यौहार, अष्टयाम,यज्ञ,शादी समारोह समेत सभी आयोजनों पर रोक लगने से भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
सरकार से नहीं मिल रही सहयोग
प्रजापति समाज का कहना है कि मिट्टी के मूल्य से लेकर लकड़ी कोयले रंग आदि के मूल्य में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इन सामानों की लागत खर्च में भी वृद्धि हो रही है।निर्माण कार्य में अधिक खर्च करना पड़ता है। वे लोग अपने पुश्तैनी रोजगार को संजोने के लिए मिट्टी की कला को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। अगर सरकार इस कला को संरक्षण प्रदान करते हुए अनुदान प्रदान करे तो यह कला पुनर्जीवित हो सकती है। अगर इससे संरक्षित नहीं किया तो आने वाले समय में मिट्टी का कला विलुप्त हो जाएगी।
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