दीपावली पर घटी मिट्टी के दीयों की बिक्री, मुश्किल से गुजर रहा कुम्हार समाज
पंकज कुमार सिंह की रिर्पोट। राष्ट्रनायक प्रतिनिधि।
मशरक (सारण)। दीपावली दीपों का त्योहार है। इस दिन दीप जलाकर यह पर्व मनाया जाता है। लेकिन, अब समय बदल गया है। घरों में मिट्टी के दीपक के स्थान पर आधुनिक चाइनीज झालर औऱ रंग बिरंगे बिजली चाईनीज बल्ब स्थान ले लिए हैं। लिहाजा दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों का जीवन आज अंधेरे में है। आधुनिक दौर में बाजार में मिट्टी के दियों की घटती डिमांड ने स्थिति को दयनीय कर दिया है। दीपावली का त्योहार नजदीक आते ही कुम्हार मिट्टी के दीपक खिलौने बनाने में पूरे परिवार के साथ जुट जाते थे। इससे परिवार को रोजगार मिलता था। मशरक के चरिहारा गांव निवासी राजू पंडित, वकील पंडित, कंचन पंडित, अर्जुन पंडित, मिथलेश पंडित ने बताया कि पूर्व में दीपावली पर्व आने के दो से तीन माह पूर्व से ही मिट्टी का दीया, गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति व मिट्टी के खिलौने बनने लगते थे। घर के सदस्य रात दिन मेहनत करते थे। महिलाएं मिट्टी की मूर्ति में रंग भरने का काम करती थीं। छोटे बच्चे भी काम में हाथ बंटाते रहते थे। लेकिन धीरे-धीरे इन मिट्टी के दीयों व मूर्ति की मांग कम होने लगी। आज के दौर में चाइनीज रंग बिरंगी झालर व लाइट के बाजार में आ जाने से इनकी मांग कम होने लगी है। इस पुश्तैनी धंधे से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी संभव नहीं है। सरकार भी इस पुश्तैनी धंधे को बचाने के लिए कोई मदद नहीं कर रही है। गोपाल प्रजापति ने बताया कि अब बहुत से लोग अपने पुस्तैनी धंधे को छोड़ कर दूसरे राज्यों में कामों में लग गए हैं।वही कोरोना और फिर गांव में आई बाढ़ ने तो परिवार की कमर ही तोड़ दी। जब दीपावली पर्व आई तों बाढ़ के पानी से डूबे चवर से महंगे दामों पर मिट्टी खरीद दीये, बर्तन और बच्चों के खिलौने बनाए गए। पहले उनके पुश्तैनी धंधे से सालों भर की कमाई हो जाती थी। शादी-विवाह के मौके पर भी पूर्व में मिट्टी के बर्तन की मांग होती थी।लेकिन आज के दौर में थर्मोकोल के बर्तन आ जाने से उनके रोजगार पर बुरा असर पड़ा है। चैनपुर चरिहारा गांव निवासी युवा समाजसेवी कुंदन सिंह का कहना है कि दिवाली के दिन मिट्टी के दीप ही जलाने की मान्यता है। मिट्टी के दीप ही देवालय में जलाए जाते हैं। पूजा पाठ के दौरान भी मिट्टी के दीप की ही महत्ता है। ग्रामीण सुशील कुमार,गोलू कुमार,पवन कुमार आदि का कहना है कि मिट्टी के दीये जलाने में खर्च ज्यादा है। चाइनीज लाइट के बाजार में आ जाने से लोगों का आकर्षण उसके प्रति बढ़ा है। जबकि उसका न तो कोई गारंटी है, न ही वह सुरक्षित है। इसके अलावा उसके चलते ही मिट्टी के कारीगरों के पुश्तैनी धंधे पर विपरीत असर पड़ रहा है।


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