खिचड़ी-मकर संक्रांति का पुण्य फलदायी स्नान-दान आज
- दो अयन, दो ऋतु, दो राशि व पिता सूर्यदेव, पुत्र शनिदेव के अनोखे मिलन का पर्व हैं मकर संक्रांति: शैलेश गुरुजी
छपरा (के. के. सिंह सेंगर/वीरेंद्र कुमार यादव)। युवा सन्त, आध्यात्मिक गुरु व ओम ध्यान योग आध्यात्मिक साधना सत्संग सेवाश्रम के संस्थापक श्रीश्री शैलेश गुरुजी ने सूर्य उत्तरायण के पर्व मकर संक्रान्ति के महत्व पर विशेष प्रकाश डालते हुए कहा है कि भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही नजरिए से मकर संक्रान्ति का काफी महत्त्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर व कुम्भ राशि के स्वामी हैं लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलान से जुड़ा हैं यह पर्व। मकर संक्रान्ति दक्षिणायन से उत्तरायण का परिवर्तन काल है। मकर संक्रान्ति इस समय दो अयन, दो ऋतुओं, दो राशियों का संधिकाल और संक्रमण का पर्व है। मकर संक्रान्ति पर स्नान-दान का विशेष महत्व है। इसलिए स्नान के महत्व पर किसी भोजपुरी अवधी लोककवि ने ठीक ही लिखा है जो कहावत इस प्रकार से प्रचलित है:
- “हमरे बुआ के तीन नहान, खिचड़ी, फगुवा और सतुवान”
अर्थात हमारे बुआ के पूरे साल में तीन स्नान बस या विशेष होते हैं। एक तो खिचड़ी (मकर संक्रान्ति), दूसरा होली और तीसरा मेष संक्रान्ति, जिस दिन सतुआ का दान-खान होता है। जिसे सतुवान कहते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि इन तीनों पर्वो पर स्नान परमावश्यक माना गया है। श्रीश्री शैलेशगुरुजी ने आगे कहा है कि महापर्व मकर संक्रांति पर स्नान महत्वपूर्ण होने से ही गोस्वामी बाबा तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में यह उल्लेख किया है कि:
- “माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई। देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।”
उत्तरायण सूर्य से देवताओं का प्रभात काल प्रारम्भ हो जाता है। वहीं एक माह व्यापी खरमास समाप्त हो कर विवाहादि मांगलिक व शुभ कार्यों का आयोजन भी प्रारम्भ हो जाता है। जनश्रुति की मानें तो प्रयाग हरिद्वार आदि के कुम्भ में स्नान-दान करने का जो पुण्य फल प्राप्त होता है। वहीं पुण्य मकर संक्रांति के दिन स्नान-दान करने से प्राप्त होता है। मकर संक्रांति स्नान-दान का विशेष महापर्व है, जो इस दिन स्नान-दान नहीं करते वे सात जन्मों तक रोगी और दरिद्र (भाग्यहीन) होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस विशेष मुहूर्त पर स्नान के पश्चात किये गए पूजन अर्घ्य और दान का सौ गुणा होकर पुण्य फल प्राप्त होता है। तीर्थराज प्रयाग में पुण्य काल में स्नान का विशेष दिव्य महत्व है। अतः संक्रान्ति पर्व के पुण्यकाल में ही स्नान दान करना चाहिए। श्री श्री शैलेशगुरुजी ने बताया कि विष्णु धर्मोत्तर पुराण के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कर्मकाण्डी विप्रों व दरिद्रों को वस्त्र दान से विशेष पुण्य फल व तिल सहित वृष दान से रोगों से मुक्ति मिलती हैं। शिव रहस्यानुसार मकर संक्रांति को कृष्ण तिल युक्त जल से स्नान कर उद्वर्तन तथा कन्याओं, विप्रो एवं दरिद्रों के लिए तिल का दान करें। साथ ही तिल तेल से शिव मंदिर में दीप दान कर जलाएं। इससे शुभफल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति पुण्यकाल में काशी खण्ड में दशाश्वमेघ घाट, तीर्थराज प्रयाग, पुष्कर, हरिद्वार (हरिद्वार में इस वर्ष 2021 में कुम्भ महापर्व का आयोजन भी होने वाला हैं) एवं विशेष कर गंगासागर (पं बंगाल), में स्नान मात्र से समस्त पापों का क्षय (शमन) हो जाता है। साथ ही एक हजार अश्वमेघयज्ञ के पुण्य फल की प्राप्ति होती है। वहीं सभी पवित्र नदियों और सरोवरों में भी स्नान का बड़ा महत्व है। वहीं स्कन्दपुराण के अनुसार मकर संक्रांति के पुण्यकाल पर तीर्थ स्थान में कम्बल, गौ, गुड़ एवं तिल दान के साथ अग्नि प्रज्वलित कर यज्ञ, हवन, साधना, मंत्रोच्चारण, जाप, भूमि पर शयन और तीर्थ स्नान करने से श्रीहरि विष्णु, भुवन भास्कर सूर्यदेव और शनिदेव प्रसन्न होते हैं। जिससे समस्त कार्यों की सिद्धि तथा परम सुख की प्राप्ति होती है। वहीं श्रीश्रीगुरुजी ने बताया कि ज्योतिष की दृष्टि से ग्रहानुसार वनस्पतीय जड़ी-बूटियों के स्नान से ग्रहों की शान्ति की जाती हैं। जो लोग अपने कुण्डली के अनुसार शनि की वक्री दृष्टि, शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि के अशुभ गोचर में हैं और प्रभावित हैं, तो मकर संक्रान्ति पर शनि से सम्बंधित दान कम्बल, कृष्ण तिल, सामुद्रिक नामक, काला नमक, तेल, काजल, सुरमा, चिमटा, जूता, नील- कृष्ण वस्त्र, कोयला,नारियल, दीप दान, छाया दान आदि मकर संक्रान्ति के दिन प्रशस्त हैं। इससे शनि ग्रह की शान्ति हो कल्याण करते हैं। श्रीश्री शैलेशगुरुजी के अनुसार काशी से प्रकाशित पञ्चाङ्ग के अनुसार मकर संक्रान्ति के पर्व निर्णय के अनुसार 14 जनवरी (गुरुवार) को ही खिचड़ी मकर संक्रान्ति का पुण्य फलदायक स्नान-दान एकमा व आसपास सहित पूरे देश में किया जायेगा। इस बार की मकर संक्रान्ति वारानुसार नन्दा तथा नक्षत्रानुसार महोदरी नामक यह संक्रान्ति विद्वानों, पंडितों, विप्रों, लेखकों, विद्यार्थियों, शिक्षकों आदि वर्गों के लिए शुभ व लाभप्रद रहेंगी। इस दिन मकर राशि का नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र रहेगा। जो विशेष संयोग भी बना रहा है। चन्द्रदेव और सूर्यदेव दोनों ही मकर राशि में रहेंगे। अर्थात मकरस्थ हैं, जो अपने आप में अद्भुत संयोग है। मकर संक्रान्ति का प्रसिद्ध पर्व खिचड़ी इसी दिन मनाया जायेगा।


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