राज्य की सीमाओं पर सरकार द्वारा की जा रही
अमानवीय वैरिकेटींग पर ये नयी नज्म हाजि़र है, कुछ
यथार्थ भी, कुछ व्यंग्य भी
खंदक भी देखिये, कंटीले तार देखिये।
कीलें भी देखिये ज़रा दीवार देखिये।।
बस देखते ही जाईये उकताईये नहीं।
इस इब्तदा–ए- इश्क का बाजा़र देखिये।।
कीलों पे चल के आएंगे एक कौल पर ही वो।
यकीन कर के प्यार का इज़हार देखिये।।
की़लें जो तहे दिल थी वो सड़कों पे आ गयी।
ख़ंज़र का इन्तजा़र है इस बार देखिये।।
“अहमद” ज़रा सच बोलने से कर गुरेज आज।
वरना सुनोगे, देश का गद्दार देखिये।।
(लेखक: अहमद अली)


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