राष्ट्रनायक न्यूज। साढ़े तीन अरब वर्ष पूर्व मंगल ग्रह की घाटियों के बीच से भी कुछ उसी तरह पानी बहता था, जैसा आज हमारी पृथ्वी पर है। उसके पास भी एक घना वायुमंडल था। तब क्या वहां सूक्ष्म जीवाणुओं वाला कोई जीवन भी था? अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘एसा’ ने तय किया है कि वे अतीत में मंगल ग्रह पर किसी प्रकार का जीवन रहे होने की खोज मिल कर करेंगी। इस खोज के लिए ‘रोवर’ कहलाने वाला ‘पर्सिवरैन्स’ नाम का ‘नासा’ का एक विचरण यान 30 जुलाई, 2020 को प्रक्षेपित किया गया था। साढ़े छह महीने बाद वह 18 फरवरी को मंगल ग्रह पर पहुंच गया। अब से ढाई वर्ष बाद, 2022 की हेमंत ऋतु में, ‘एसा’ का भी एक ऐसा ही रोवर ‘एक्सोमार्स’ मंगल ग्रह की दिशा में रवाना होगा।
ढाई वर्ष बाद इसलिए, क्योंकि मंगल ग्रह की दिशा में कोई यान भेजने का सही समय तभी होता है, जब सूर्य की परिक्रमा करते हुए वह पृथ्वी के निकट आ रहा हो। दोनों के बीच निकटतम दूरी हर 26 महीने बाद आती है, क्योंकि पृथ्वी और मंगल, सूर्य से अलग-अलग दूरियों वाली परिक्रमा-कक्षाओं में अलग-अलग गतियों के साथ उसकी परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी तो 365 दिनों वाले एक वर्ष में ही सूर्य का एक चक्कर लगा लेती है, जबकि मंगल को सूर्य का एक चक्कर लगाने में पृथ्वी के 687 दिन, यानी हमारे करीब दो वर्ष का समय लग जाता है। इस तरह मंगल का एक वर्ष पृथ्वी के करीब दो वर्षों के बराबर है। भूविज्ञानी एर्न्स्ट हाउबर और ग्रहीय भूविज्ञान की इंजीनियर उनकी महिला सहयोगी निकोल श्मित्स दो ऐसे जर्मन वैज्ञानिक हैं, यूरोपीय ‘एक्सोमार्स’ मिशन की सफलता जिनका इस समय मुख्य कार्यभार है। दोनों जर्मनी के कोलोन शहर में स्थित ‘एसा’ के जर्मन अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र डीएलआर के वैज्ञानिक हैं। हाल ही में दोनों ने बताया कि अतीत में कभी मंगल ग्रह पर रहे जीवन की खोज के लिए ‘पर्सिवरैन्स’ और ‘एक्सोमार्स’ का क्या महत्व है। दोनों का कहना था कि मंगल ग्रह पर उतारे गए अब तक के चार रोवर ढेरों जानकारिया दे चुके हैं। तब भी यह ग्रह हमें बार-बार चकित और भ्रमित करता ही रहता है।
इन दोनों वैज्ञानिकों ने बताया किसी आकाशीय पिंड के टकराने से बना मंगल ग्रह का ‘जेजोरो’ नाम का क्रेटर ऐसा ही एक अजूबा है। 49 किलोमीटर व्यास वाले इस क्रेटर के एक किनारे पर, अनेक प्रकार की भूविज्ञानी क्रियाओं ने, एक रंगबिरंगा मनोहारी परिदृश्य रच दिया है। साढ़े तीन अरब वर्ष पहले यह क्रेटर पानी से भरा रहा होगा, क्योंकि उसके पश्चिमी किनारे पर नदी के मुहाने जैसा डेल्टा है। इसीलिए पहली बार अमेरिकी रोवर ‘पर्सिवरैन्स’ अपने साथ कैप्सूल कहलाने वाले ऐसे खाली पात्र लेकर गया है, जिनमें वह वहां के कंकड़-पत्थर और मिट्टी के नमूने जमा करेगा। ग्रहीय भूविज्ञान की इंजीनियर निकोल श्मित्स ने कहा कि अमेरिकी रोवर ‘पर्सिवरैन्स’ द्वारा एकत्रित नमूने पृथ्वी पर लाने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि पृथ्वी पर की प्रयोगशालाओं की बेहतर तकनीकी सुविधाओं के साथ उनकी गहरी और लंबी जांच-परख की जा सकती है।
इस नए अमेरिकी रोवर में ऐसे कई उपकरण हैं, जो मंगल ग्रह पर अतीत में कभी रहे सूक्ष्मजीवों के निशान पहचान सकते हैं। प्रश्न उठता है कि ‘पर्सिवरैन्स’ पृथ्वी पर भेजने लायक जो नमूने जमा करेगा, उन्हें पृथ्वी पर भेजेगा कैसे? निकोल श्मित्स के अनुसार, यह काम दो चरणों में होगा। पहले चरण में अमेरिकी रोवर ‘पर्सिवरैन्स’ अपने नमूनों के कैप्सूल वहीं छोड़ देगा, जहां वे उसे मिले होंगे। बाद में किसी समय, एक ऐसा रोवर इन कैप्सूलों को उठा कर पृथ्वी पर लाएगा, जिसे यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ‘एसा’ को अभी बनाना है। इस दूसरे रोवर को मंगल ग्रह तक पहुंचाने और वहां उतारने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ को भी, 2026 से पहले, एक नया ‘मार्स एसेन्ट व्हीकल’ यानी एक ‘मंगल अवतरण वाहन’ बनाना है। अवतरण वाहन को ले जाने वाला अंतरिक्षयान उसे मंगल ग्रह पर उसी जगह उतरेगा, जहां कैप्सूलों वाला रोवर खड़ा होगा। रोवर से कैप्सूलों को लेकर यह वाहन स्वयं ऊपर उड़ेगा और मंगल ग्रह की परिक्रमा करने लगेगा।


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