राष्ट्रनायक न्यूज। पत्थरों के वक्ष पर समय के आलेख विधाता के स्मृति चिह्न बन अमिट रह जाते हैं। ये स्मृति लेख राष्ट्र की धरोहर होते हैं और जीवंत राष्ट्र उन्हें पढ़कर नई पीढ़ी को बताता है कि यह है तुम्हारी पहचान, तुम्हारे पुरखों का इतिहास और उनकी जय-पराजय की गाथा। ऐसी ही गाथा राजा सुहेलदेव की मिली, तो लोग चौंक गए, क्योंकि उनके बारे में कभी किसी ने कुछ कहा हो, ऐसा विशेष ध्यान में नहीं आता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विख्यात लेखक अमीश त्रिपाठी ने सुहेलदेव को घर-घर चर्चा का विषय बना दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने सुहेलदेव की मूर्ति के अनावरण के समय जो एक पंक्ति कही, वह बहुत समीचीन और मार्मिक है, ‘इतिहास निमार्ताओं के प्रति इतिहास लेखकों के अन्याय को अब ठीक किया जा रहा है।’ पुराना किला में कुछ महीने पहले मैं दृश्य-श्रव्य कार्यक्रम देखने गया, तो जिन लोगों ने दिल्ली को लूटा, जलाया और यहां नरसंहार किए, उन्हें उर्दू, फारसी भाषा की वार्ता में दिल्ली के इश्क में डूबे हुए बादशाह बताया गया।
मोदी सरकार के संस्कृति मंत्री प्रह्लाद पटेल ने उस कार्यक्रम को वापस लेकर पुन: निर्माण और समीक्षा के लिए भिजवाया, ताकि जब दिल्ली पर सिखों ने विजय प्राप्त की, वह भी उसमें जुड़े और मराठों का पराक्रम भी। एक ऐसा ही आश्चर्यजनक विषय रहा, दिल्ली के संस्थापक महाराजा अनंगपाल का। इंद्रप्रस्थ था और है, यह सत्य है। पद्मविभूषण से अलंकृत पुरातत्वशास्त्री प्रो.बृजबासी लाल ने इस पर काफी शोध भी किया है, पुस्तक भी लिखी है। लेकिन इंद्रप्रस्थ के आंचल में ढिल्लिकापुरी बसी, फली-फूली और आज तक चली आ रही है दिल्ली के रूप में, यह कितने लोग जानते हैं? अनेक इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने ढिल्लिकापुरी के अनेक प्रस्तर अभिलेख और संस्कृत के उद्धरण उत्खनित कर खोज निकाले, जिनसे सिद्ध होता है कि महाराजा अनंगपाल तोमर द्वितीय ने महरौली के पास विष्णु स्तंभ (लौह स्तंभ) की स्थापना कर जो नगरी बसाई , वह ‘स्वर्ग जैसी मनोहर ढिल्लिकापुरी’थी।
वर्तमान राष्ट्रपति भवन जब मूल वायसराय पैलेस के रूप में बन रहा था, तो रायसीना के पास सरबन गांव में जो प्रस्तर अभिलेख मिले, उनमें ढिल्लिकापुरी का मनोहारी वर्णन है। ये प्रस्तर खंड पुराना किला के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित हैं। इनमें से एक पर संस्कृत में लिखा है-इस धरती पर हरियाणा नाम का प्रदेश है, जो स्वर्ग के सदृश्य है, (इसमें) तोमरों द्वारा निर्मित ढिल्लिका नाम का नगर है। वही ढिल्लिका कालांतर में दिल्ली नाम से जानी गई, जो अंग्रेजों के समय अलग अंग्रेजी वर्तनी के साथ देहली कही गई। महाराजा अनंगपाल तोमर का बड़ा पराक्रमी और शौर्यवान इतिहास है। उन्होंने महरौली के पास 27 विराट सनातनी/ जैन मंदिर बनवाए थे। उनके द्वारा एक सुंदर छोटी झील अनंगताल का निर्माण किया गया। फरीदाबाद के पास अनंगपुर गांव है, अनंग बांध है और अनंगपुर दुर्ग है। महाराजा अनंगपाल द्वितीय द्वारा जैन भक्ति का प्रकटीकरण भी प्रचुर मात्रा में हुआ। दावा किया जाता है कि कुतुबमीनार तथा कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद इन्हीं मंदिरों को तोड़कर उन मूर्तियों को दीवारों में लगाकर बनाई गई। अनंगपाल केवल अपने सुंदर महलों और मंदिरों के लिए ही नहीं जाने गए, बल्कि वे लौह स्तंभ, जो वस्तुत: विष्णु ध्वज स्तंभ है, 1052 ई. में उदयगिरी से लाए। यह बात विष्णु ध्वज स्तंभ पर अंकित लेख से ही स्पष्ट है।
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. ओम जी उपाध्याय का कहना है कि महाराज अनंगपाल द्वितीय के समय श्रीधर ने पार्श्वनाथ चरित नामक ग्रंथ की रचना की तथा उसमें दिल्ली का भी वर्णन किया है। इस ग्रंथ में अनंगपाल द्वारा हम्मीर को पराजित किए जाने से संबंधित पंक्तियां भी लिखी हुई हैं। दिल्ली के संस्थापक महाराज के रूप में अनंगपाल का स्मरण दिल्ली का मूल वास्तविक परिचय का स्मरण है। इस संबंध में सरकार और समाज मिलकर कुछ बड़ा अभियान छेड़ें, दिल्ली के स्वदेशी गौरव की पुन: स्थापना हो, इसका अब समय आ गया है।
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