राष्ट्रनायक न्यूज

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सोशल मीडिया पर ‘लक्ष्मण रेखा’!

राष्ट्रनायक न्यूज।

दिल्ली, एजेंसी। भारत में भी सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म्स से जुड़े नए नियम जारी कर दिए गए हैं। लालकिला पर हिंसा के बाद से केन्द्र सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में ठन गई थी। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए कुछ न कुछ नियम लागू करने पर मंथन चल रहा था। स्वस्थ लोकतंत्र में वैचारिक सहमति और असहमति को अभिव्यक्त करने की आजादी एक अधिकार के रूप में स्वीकार्य है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी निरंकुश नहीं है। जैसे-जैसे सोशल मीडिया का विस्तार हुआ, उस पर अपनी राय जाहिर करने की सुविधा लोगों तक पहुंची। लोगों को स्वस्थ विचार अभियक्त करने के लिए अनेक मंच मिल गए। लेकिन बहुत से तत्व इन मंचों का इस्तेमाल अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए करने लगे। लोगों को अपने विचार अभिव्यक्त करने के लिए आकाश तो मिला लेकिन कुछ लोग इस आकाश को विषाक्त करने में जुट गए। इसलिए यह जरूरी भी था कि सोशल मीडिया के लिए कोई न कोई लक्ष्मण रेखा खींची जाए। अंतत: सरकार ने दिशा-निर्देश जारी कर सीमाएं खींच दी हैं। इन दिशा-निदेर्शों को लेकर बहस जरूर होगी और होनी भी चाहिए। लेकिन इस बात पर भी गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिए कि क्या किसान आंदोलन के दौरान ‘किसान नरसंहार’ जैसे हैशटैग, ट्रेडिंग के कारण ट्विटर पर भारत के विरुद्ध मुहिम छेड़ना, हिंसा को बढ़ावा देना, भ्रम का मायाजाल बुनकर देश के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देना क्या स्वीकार किया जा सकता है? यह भारत ही क्यों किसी भी देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता। हाल ही की घटनाओं ने भारत की एकता और अखंडता के संबंध में सोशल मीडिया कम्पनियों के दिग्गजों की भूमिका भी ईमानदार नहीं रही। सोशल मीडिया कम्पनियों के साथ अनैतिक काम करने वाले मुद्दों का एक लम्बा इतिहास जुड़ा है।

आम लोग ही क्यों सोशल मीडिया का उपयोग तो अब बड़े से लेकर छोटे नेता और राजनीतिक दल कर रहे हैं। सभी अपने राजनीतिक एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए इन प्लेटफार्मों का इस्तेमाल करते हैं। ट्विटर तो राजनीतिज्ञों का लोकप्रिय मंच है। समस्या तब खड़ी होती है जब सोशल मीडिया प्लेटफार्म लोगों की राय बदलने और उनकी जीवनशैली को निर्देशित करने लगते हैं। कौन नहीं जानता कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने जब पहली बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा था तो कैंब्रिज एनालिटिका ने अमेरिकी लोगों के फेसबुक डाटा के आधार पर चुनाव अभियान में काम किया और ट्रंप की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन सोशल मीडिया कंपनियों के पास भारत में भी करोड़ों ग्राहक हैं। वे ग्राहकों की निजी जानकारियों पर नियंत्रण रखते हैं। इनके पास राजनीतिक और सामाजिक विषयों को प्रभावित करने की क्षमता है। सोशल मीडिया पर अनेक ‘फेक बहादुर’ सक्रिय हैं। फेक न्यूज और आधी अधूरी जानकारी पर आधारित सूचनाएं प्रदायरत करने से दंगे भी हो चुके हैं। लोगों की जानें भी चली जाती हैं। लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति का नुक्सान भी होता है, आखिर इन सबके लिए किसी न किसी को तो जिम्मदार ठहराया ही जाना चाहिए।

सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर आतंकवादी संगठन अपनी जिहादी विचारधारा को फैलाने का काम कर रहे हैं और युवा पीढ़ी के दिमाग में कट्टरपंथी विचारधारा का जहर भरकर उनको हथियार उठाने के लिए उकसा रहे हैं। आतंकियों की भर्ती भी इन्हीं के माध्यम से की जा रही है। सरकार ने इन कम्पनियों को सेल्फ रेगुलेशन तैयार करने का दो बार अवसर दिया। लेकिन इन्होंने अपनी मनमानी जारी रखी। ओटी टी प्लेटफार्मों ने रचनात्मकता के नाम पर जमकर अश्लीलता परोसी। केवल सैक्स परोसना कोई रचनात्मकता नहीं होती। तभी तो सरकार को दिशा-निदेर्शों में सोशल मीडिया कम्पनियों की शिकायतों पर विचार करने के लिए अफसरों की नियुक्ति करनी होगी और आपत्तिजनक सामग्री को 24 घंटे के भीतर हटाने को कहा गया है। इन प्लेटफार्मों को अफवाह फैलाने वालों की पहचान कर पहले व्यक्ति की जानकारी देनी होगी। दिशा-निदेर्शों के बाद तीन माह में एक कानून लाया जाएगा, जिसके जरिये डिजिटल मीडिया पर सामग्रियों को नियमित किया जा सकेगा।

राजनीति में स्वस्थ आलोचना की बहुत गुंजाइश होती है। इसलिए इस बात का ध्यान रखना होगा कि गलत या सही परिभाषित करते समय ऐसा न हो कि सही लोगों की अभिव्यक्ति में खलल पैदा हो। यह भी ध्यान में रखना होगा कि लक्ष्मण रेखा के चलते ऐसा न हो कि उससे देश के लोकतंत्र के लिए दीवारें खड़ी हो जाएं। विचारों की मतभिन्नता और असहमति के प्रति भी सहनशील रवैया अपनाना बहुत जरूरी है। कभी-कभी नियंत्रण या प्रतिबंध भी समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, इससे भी अराजकता पैदा होने का खतरा अधिक रहता है। समाज विरोधी तत्वों की मनमानी पर अंकुश जरूरी है लेकिन इससे अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

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