- जनजातीय संस्कृति प्रकृति के संरक्षण से जुड़ा है: डॉ. भारती
सहरसा (बिहार)। कला संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार सरकार के सहयोग से बटोही सहरसा द्वारा आयोजित आदि विम्ब महोत्सव के दूसरे दिन स्थानीय कलग्राम परिसर में बिहार के ‘जनजातीय कलारूपों के संरक्षण तथा भविष्य की योजनाएं’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गयी। संगोष्ठी की अध्यक्षता फिजी में भारत के पूर्व सांस्कृतिक राजनायिक डॉ. ओम प्रकाश भारती ने की। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. भारती ने कहा की बिहार में जनजातीय कलाओं की प्राचीन परंपरा है। समय रहते इसका संरक्षण होना चाहिए । जनजातीय संस्कृति प्रकृति के संरक्षण से जुड़ा है। पर्यावरण संरक्षण वर्तमान समय की बड़ी चुनौती है। जनजाति पेड़ , पौधे, नदी तथा पहाड़ों की पूजा करते हैं। पूजा को समर्पित नृत्य -गीत प्रस्तुत करते हैं। जनजाति गीत प्रेम और प्रकृति का राग है । एक संथाली गीत में प्रेमिका, प्रेमी से कहती हैंझ्र ह्यएहो सिकरीय सगाई दहोई में खिजोड़ डरलेका सिविल दहोई में दादिक्वीनदा लेकाह्ण (जिस तरह खजूर के पत्ते कभी पेड़ नहीं झरते उसी तरह तुम भी मुझसे अलग नहीं होना।) एक मुंडारी गीत का भाव है, हे पथिक इस चुवाड़ी (झील) में जो स्वच्छ जल है , पीना चाहते हो तो जी भरकर पियो , लेकिन इसे गंदा मत कर जाओ। जमशेदपुर से आये जीतराय हंसदा ने संथाल लोकनृत्य तथा गीतों की परंपरा पर प्रकाश डाला । मोतीहारी से आये शोधार्थी नितीश प्रियदर्शी ने थारू जनजाति के कला रूपों पर शोध पत्र प्रस्तुत किया । बेगूसराय के हरिशंकर गुप्ता ने उरांव कला , आरती कुमारी ने ह्य बिहार के जनजातीय कालाओं के संरक्षण की चुनौतियाँ, शशांक शेखर ने गोँड कलाओं पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। अन्य सहभागियों में संजय पाल, चंडी हंसदा, विनोद बेसरा , अखिलेश कुमार , रामजी मंडल , मनोज कुमार सिंह तथा रौशन कुमार आदि उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन बटोही के सचिव डॉ. महेंद्र कुमार ने किया।


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