राष्ट्रनायक न्यूज

Rashtranayaknews.com is a Hindi news website. Which publishes news related to different categories of sections of society such as local news, politics, health, sports, crime, national, entertainment, technology. The news published in Rashtranayak News.com is the personal opinion of the content writer. The author has full responsibility for disputes related to the facts given in the published news or material. The editor, publisher, manager, board of directors and editors will not be responsible for this. Settlement of any dispute

आसमान से बरसती आग

दिल्ली, एजेंसी। राष्ट्रनायक न्यूज। भारत के उत्तर-पश्चिम हिस्से में औसत से बहुत अधिक तापमान के साथ गर्मी ने दस्तक दे दी है। कभी होली उत्सव तक हल्की गर्मी का अहसास होता था, कभी-कभी बारिश भी हो जाती थी लेकिन इस बार 29 मार्च को अधिकतम तापमान 40.1 डिग्री सैल्सियस को छू गया था, जो 76 वर्षों में सबसे अधिक रहा। मौसम विभाग ने चेतावनी दे दी है कि भारत के ज्यादातर हिस्सों में अप्रैल से जून के बीच सामान्य से अधिक तापमान देखने को मिलेगा। मार्च में ही पूर्वी मध्य और उत्तर-पश्चिम भारत को कवर करने वाले एक बहुत बड़े क्षेत्र में गर्मी की लहर दर्ज की जा रही है। तेज हवाएं गर्म लू का अहसास करा रही हैं। पिछले दस सालों में हमने अप्रैल में गर्मी देखी, पहले गर्मी मई में मुख्य रूप से शुरू होती थी लेकिन इस बार मार्च में ही बहुत अधिक तापमान देखने को मिला। दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में तो इस वर्ष जनवरी, फरवरी और मार्च कई दशकों में सबसे अधिक तापमान रहा है। इस बार अप्रैल और मई में पंजाब, राजस्थान, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश गर्मी से सर्वाधिक प्रभावित हो सकते हैं। 1970 और 1980 के दशक में आम तौर पर गर्मियों में तापमान औसत से नीचे रहता था लेकिन 1998 के बाद इसमें बहुत बड़े स्तर पर परिवर्तन देखने को मिला। ऐसा स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन से हो रहा है और भविष्य में स्तिथि निरंतर गम्भीर होने की आशंका है।

यूं तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पूरी दुनिया में बढ़ रही है। किसी समस्या का यह सबसे खतरनाक पहलु होता है कि हमें यह पता होता है कि समस्या की जड़ कहां है और हम उस जड़ को खत्म करने की बजाय उसको सहला रहे होते हैं। दुनिया में बदलती जलवायु और भयानक होते मौसम परिवर्तनों का यही हाल है। हर कोई जानता है कि यह सब क्यों हो रहा है और कैसे हो रहा है लेकिन कोई भी वह सब करने को तैयार नहीं कि यह रुके और दुनिया का सामूहिक भविष्य बचा रहे।

भारत में मौसमों का अति की पराकाष्ठा तक जाना हमेशा से रहा है। भारत में हमेशा भीषण गर्मी और जबरदस्त बारिश होती रही है। ठंड भी खूब पड़ती रही है लेकिन मौसम की तमाम अतियों के बावजूद उसमें हमेशा संतुलन रहा है। हमारी जीवनशैली से लेकर हमारी सोच-विचार तक का इन मौसमों के अनुकूल रहा है। लेकिन एक तरफ हम बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के जरिये धरती के पर्यावरणीय संतुलन और उसके पारिस्थितिकीय संतुलन को तो बिगाड़ ही रहे हैं, अपनी जीवनशैली और सोच-विचार को भी मौसमों के अनुरूप बनाए रखने की बजाय उनके विरोध में खड़ा कर रहे हैं। बस्तियों को कंक्रीट के जंगलों में तब्दील करके और अपने खानपान में पश्चिम में अंधानुकरण करके हमें भूगोल के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी भीषण आग उगलती गर्मी को आमंत्रित किया। एक जमाना था जब लोग भयानक लू के दिनों में भी नीम और बरगद के पेड़ों के नीचे पना और शर्बत पीकर सहजता से उसे झेल लेते थे लेकिन आज हमने घरों को ईंट और सीमेंट का घोसला बनाकर उसे इस कदर हवा-पानी से मरहूम कर दिया है कि बिना एसी के यहां गुजारा ही सम्भव नहीं है। एसी ने नई किस्म की समस्याएं पैदा की हैं। एक आदमी जब एसी का आनंद लेता है तो 12 लोग एसी से निकलने वाली गर्मी को भुगतते हैं और पूरी दुनिया उस एसी से पैदा होने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन की भुक्तभोगी बनती है। पूरी दुनियाभर में तेल की खपत बढ़ रही है, सड़कों पर वाहन विषाक्त धुआं उगल रहे हैं।

अब सवाल उठना वाजिब है कि प्राकृतिक परिवर्तनों से जूझने के लिए क्या कदम उठाए गए, कहीं ऊंचे शैल शिखरों पर ग्लेशियर धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं तो कहीं रेगिस्तानी अरब देशों से सर्दियों में बर्फ पड़ने की खबर आ जाती है। कहीं वर्षा के मौसम में विदर्भ सूखा रह जाता है तो कहीं वर्षों की बादल तोड़ बारिश से इंसान कांपने लगता है। मगर क्या इसे प्रकृति का भी आज के बदलते इंसान के समान ही जल्दबाजी का स्वभाव मान लिया जाए। मौसम वैज्ञानिक कह रहे हैं कि वर्षा का अर्थ यह नहीं है कि गर्मी कम पड़ेगी। गर्मी पड़ेगी मगर वह तौबा बुलाने वाली होगी। वास्तविकता यह भी है कि हमारे यहां मौसम कैसा होगा, इसका निर्णयं सात समुद्र पार के अल तीनो अथवा ला तीनो घटनओं के प्रभाव पर निर्भर करता है। वैसे तो प्रकृति रहस्यों से भरी है, इसके अनेक ऐसे पहलू हैं जो समूची सृष्टि से प्रभावित करते हैं लेकिन उनके पीछे के कारकों की खोज अभी अधूरी है। अधिक गर्मी पड़ने से पानी की कमी हो जाती है। 60 करोड़ से अधिक भारतीय पहले ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं, अभी वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1588 धन मीटर है, जो आगामी एक दशक तक आधी रह जाएगी। इसके लिए हमें जल संरक्षण को अपनाना होगा। आज पूरी दुनिया वातावरण परिवर्तन को लेकर चिंता में है। जो भी प्रयास हो रहे हैं वह इसी तथ्य को उजागर करते हैं। प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करोगे वैसा ही पाओगे। मौसम चक्र बदलने से किसानों को बार-बार नुक्सान उठाना पड़ता है। आज के तेज भागते इंसान के लिए मौसम का मिजाज समझने की फुर्सत ही कहां है। प्रकृति भी उसे ऐसा ही जवाब दे तो इसमें हैरानी की क्या बात है।