राष्ट्रनायक न्यूज। कोरोना महामारी की दूसरी दस्तक कुछ ज्यादा ही जोर पकड रही है। उम्रदराज लोगों से कही अधिक युवाओं पर इस वायरस का प्रहार हो रहा है। चिकित्सक स्वयं कोरोना के इलाज पर विश्वास के साथ कुछ नहीं कह पा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन नित नयी संभावनायें व्यक्त कर रहा है। केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें तक अटकलों पर आधारित निर्देश जारी कर रहे हैं। मानवीय जीवन पूरी तरह से असुरक्षित है। सावधानियों का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। जबकि सुरक्षित रहने वाले ज्यादातर लोग ही संक्रमण के शिकार हो रहे हैं। मजदूर, गरीब और मेहनतकश लोगों तक कोरोना की मार बेहद कम है। मध्यम वर्गीय परिवारों पर ही सबसे अधिक देखने को मिल रही है।
चिकित्सा व्यवसाय से जुडे बड़े संस्थानों की मनमानियां रोज ही सामने आ रहीं हैं। शिकवा-शिकायतों पर कार्यवाही का दौर अब समाप्त हो गया है। चारों ओर जीवन बचाने की होड़ लगी है। स्वयं की सुरक्षा के लिए दूसरों की बलि देने में भी लोग पीछे नहीं हट रहे हैं। पहले अपनी और फिर अपनों की सांसों को सुगमता से चलते रहने हेतु जतन किये जा रहे हैं। आवश्यकता की वस्तुओं का कथित अकाल दिखाकर मुनाफा कमाने वाले धनपिपासुओं का लालच चरम सीमा पर है। ऐसा ही अनेक सरकारी विभागों में भी कोरोना के नाम पर खर्चों पर खर्चे डाले जा रहे हैं। फर्जी बिलों पर भुगतान करने वाले कई मामले सुर्खियां बनने के बाद समय के साथ ठंडे बस्ते में बंद हो कर रह गये हैं।
सुरक्षित समाज की चिन्ता करने वाले सुविधानुसार सरकारों पर काबिज लोगों की प्राथमिकता अब स्वयं के लाभ, पार्टी का लाभ और फिर अन्त में समाज के लाभ वाले क्रम पर आ चुकी है। निर्वाचन प्रक्रिया को रोकना जहां उचित नहीं लगा वहीं महाकुंभ को रोकना उचित लगा। आस्था पर चोट की जा सकती है और वह भी केवल सनातन धर्म पर। क्योंकि वहां पर मानवीयता चरम सीमा पर होती है, अतिथि देव भव: की परम्परा का निवर्हन होता है और होता है समाज के दायित्वों का बोध। देश के प्रधानमंत्री ने अखाड़े के आचार्य से बात कर ली और बस हो गया सदियों से चली आ रही परम्परा का पिण्डदान। यही बात जब कंगना ने उठाई तो पीएमओ खामोश हो गया। पार्टी के चीखने वाले प्रवक्ता भी लच्छेदार भाषा में कन्नी काटने लगे। सच्चाई को समझना होगा।
मानव निर्मित मशीनों पर विश्वास करने वाले लोग स्वयं को ही खुदा मान बैठे हैं। उन्हें विज्ञान से आगे बढ़कर पराविज्ञान का अध्ययन करना चाहिए जहां सदियों पहले ही सूर्य, मंगल, बुध सहित सभी नक्षत्रों की दूरियों तक का निर्धारण कर दिया था। जन्म लेते ही बच्चे के भविष्य की अक्षरश: लेखनी करने वाले ज्योतिषाचार्यों की वैदिक गणनाओं का प्रतिपादन करने वाले मशीनों से नहीं बल्कि अन्त: की ऊर्जा शक्ति से काम करते थे। परजीवी न होकर स्वयंजीवी होते थे। ढइया, पौना जैसी गणित तो बच्चों को भी सिखाई जाती थी। ब्रह्माण्ड की अनन्त शक्ति को संदोहन हेतु मंत्र विज्ञान की दीक्षा गुरुकुलों में दी जाती थी। प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने का गुर सिखाया जाता था। वनौषधियों से व्याधियों का उपचार होता था। मगर पश्चिम के षड्यंत्र ने हमारे ही घर में आत्मघाती बम पैदा कर दिये। सम्पन्न संस्कृत आज अंग्रेजी की दासी बना दी गई है।
कोरोना से जंग में आत्मशक्ति को बनाना होगा हथियार तभी औषधियां भी कारगर होंगी और परिणाम भी सुखद आयेंगे। सरकारों को भी पुरातन सिद्धांतों पर अमल करना होगा। देश के सभी धर्मों के वास्तविक जानकारों के साथ मंत्रणा करना चाहिए। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि धर्मों के ठेकेदार नहीं बल्कि वास्तविक जानकारों की बात की जा रही है जिनमें से ज्यादातर समाज के लिए अनजान है। वास्तविक साधक, खुदा का पैगाम जिन्दगी में उतारने वाला, ईशा की बाइबिल जीने वाला, गुरुवाणी के शबद की गूंज महसूस करने वाले ही कोरोना से निजात दिला सकते हैं। मानव निर्मित मशीनें और दवाइयों की एक सीमा रेखा है। उनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं है। अन्तर उतना है जितना कि जीते जागते इंसान और रोबोट में।
वैज्ञानिक अभी भी कोरोना वायरस का डीएनए ढूंढ़ने में लगे हैं। पूरी तरह से कारगर दवा का अविष्कार चल रहा है। दावों की झड़ी लगी है। कभी एक प्रोडक्ट प्रचारित किया जाता है तो कुछ समय बाद उसी को खारिज कर दिया जाता है। कोरोना की अगली दस्तक को और अधिक खतरनाक बताया जा रहा है। यह सब मानवीय काया पर ही क्यों हो रहा है। पशु, पक्षी और वनस्पतियां इस तरह के प्रकोपों से मुक्त कैसे हैं। इस तरह के घातक जीवाणु आते कहां से हैं। ऐसे ही अनेक प्रश्न हैं जो निश्चित ही हमें अपने उत्तरों के लिए परा विज्ञान की ओर इशारा करते हैं। ईमानदार बात तो यह है कि सभी लोग पराशक्ति पर विश्वास करते हैं परन्तु सामाजिक रूप से स्वीकार करने से डरते हैं कि कथित संभ्रांत समाज कहीं उनका मुखौल न उड़ाने लगे। इसी दिखावे वाली बनावटी जिंदगी ने हमसे हमारा ही वास्तविक स्वरूप छीन लिया है। तो आइये हम अपने स्तर पर ही सही, चोरी छिपे ही सही अपने-अपने धर्म में कोरोना का वास्तविक इलाज खोजें और बढ़ायें स्वयं की आत्मशक्ति। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।
डॉ. रवीन्द्र अरजरिया
More Stories
हर घर दस्तक देंगी आशा कार्यकर्ता, कालाजार के रोगियों की होगी खोज
लैटरल ऐंट्री” आरक्षण समाप्त करने की एक और साजिश है, वर्ष 2018 में 9 लैटरल भर्तियों के जरिए अबतक हो चूका 60-62 बहाली
गड़खा में भारत बंद के समर्थन में एआईएसएफ, बहुजन दलित एकता, भीम आर्मी सहित विभिन्न संगठनों ने सड़क पर उतरकर किया उग्र प्रदर्शन