राष्ट्रनायक न्यूज। कोविड-19 की पृष्ठभूमि में वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन अनुमान की तुलना में बेहतर रहा। नतीजतन अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 197.5 लाख करोड़ रुपये रहा, जो 2019-20 के 203.5 लाख करोड़ की जीडीपी की तुलना में तीन प्रतिशत कम रहा। वास्तविक जीडीपी के मामले में यह गिरावट 7.3 फीसदी रही। दिलचस्प है कि पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में वास्तविक जीडीपी में इससे एक साल पहले की चौथी तिमाही की तुलना में 1.6 फीसदी की वृद्धि हुई, जो बताती है कि मार्च के दौरान अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ी थी।
उल्लेखनीय है कि मार्च में ही जीएसटी संग्रह अब तक का सर्वाधिक 1.41 लाख करोड़ रहा। दुर्योग से इसी समय महामारी की दूसरी लहर ने हमला बोला। नतीजतन विभिन्न राज्यों ने लॉकडाउन की घोषणा की, जिससे व्यापारिक गतिविधियां बंद हो गईं और एक बार फिर प्रवासी मजदूरों की घर वापसी शुरू हुई, जिससे आर्थिक वृद्धि और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की प्रक्रिया प्रभावित हुई। ऐसे में, मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि न सिर्फ अनुमान से कम रहेगी, बल्कि अर्थव्यवस्था में आंशिक सुधार भी आगामी जुलाई से शुरू हो सकता है। इस वित्त वर्ष में जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर 10 से 12.5 फीसदी आंकी गई है, जो घटकर 9.5 से 10.5 प्रतिशत रह सकती है। महामारी के वर्ष में वृद्धि दर तभी सकारात्मक हो सकती है, जब उपभोग, औद्योगिक विकास और रोजगार में व्यापक वृद्धि कर लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था पर पड़े नकारात्मक असर को कम करने की कोशिश हो।
वित्त वर्ष 2020-21 में निजी उपभोग खर्च एक साल पहले के 123 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 60.5 फीसदी) से घटकर 116 लाख करोड़ रुपये (58.6 फीसदी) रह गया। अगर सरकार ने निजी उपभोग बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया, तो मौजूदा वित्त वर्ष में यह आंकड़ा और कम हो सकता है। ऐसे में, अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की दिशा में सरकार द्वारा आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करने की जरूरत है, जो विभिन्न क्षेत्रों में इस प्रकार है- आॅटोमोबाइल क्षेत्र-मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में आॅटोमोबाइल क्षेत्र का योगदान 42 फीसदी है। पहली तिमाही के नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार आॅटो उत्पादों की बिक्री पर लिए जाने वाले सीसी (कंपेनसेशन सेस) की, जो कि जीएसटी का ही हिस्सा है, वसूली पर तीन महीने के लिए रोक लगाए। कुल मासिक सीसी का आंकड़ा करीब 9,000 करोड़ रुपये है, जिनमें से आॅटो क्षेत्र की हिस्सेदारी 5,000 करोड़ है। ऐसे में, तीन महीने के सीसी पर रोक लगाने से राज्यों को 15,000 करोड़ की बचत होगी। सार्वजनिक परिवहन-इसके तहत केंद्र सरकार राज्यों को 50,000 इलेक्ट्रिक बसें मुहैया करा सकती है।
इससे राज्यों को प्रदूषण मुक्त नई बसें मिलेंगी, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में नया रोजगार मिलेगा और देश में नए उद्योग के विस्तार को भी प्रोत्साहन मिलेगा। इस योजना के तहत वर्ष 2025 तक पूरे देश में इलेक्ट्रिक बस के परिचालन की भी रूपरेखा तैयार की जा सकती है, जिससे बैटरी निर्माण क्षेत्र को भी गति मिलेगी। चूंकि टाटा पावर देश भर में ईवी चार्जिंग स्टेशन तैयार कर रहा है, लिहाजा सार्वजनिक परिवहन की तस्वीर बदलने का यही सही समय है। रिएल एस्टेट और हाउसिंग-मुंबई ने आवासीय संपत्ति की खरीद पर रजिस्ट्रेशन शुल्क छह महीने तक छह फीसदी से घटाकर तीन फीसदी कर दिया था। यह प्रयोग बेहद सफल रहा। इससे बिक्री में 60,000 करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि हुई, रिएल एस्टेट क्षेत्र में नई पूंजी आई, बैंकों के एनपीए में कमी आई, सरकार की आय बढ़ी और निवेश भी बढ़ा। देश भर में पांच लाख करोड़ की आवासीय संपत्ति है। केंद्र सरकार राज्यों को मुंबई का अनुकरण कर आवासीय संपत्ति का रजिस्ट्रेशन शुल्क आगामी छह महीने के लिए आधा करने को कह सकती है। इससे चूंकि राज्यों का राजस्व घटेगा, ऐसे में, केंद्र सरकार इस योजना में उनके घाटे की 50 फीसदी भरपाई कर सकती है। इससे हाउसिंग क्षेत्र में गति आएगी।
देश में 7,500 जनगणना शहर हैं। औद्योगिक कॉम्पलेक्स, हाउसिंग सोसाइटी और विश्व स्तर की बुनियादी सुविधाओं के जरिये सरकार इनमें से 2,000 शहरों का विकास कर सकती है। इस योजना के तहत केंद्र राज्यों को हर शहर के विकास के लिए 10 करोड़ रुपये दे सकता है, जबकि राज्य सरकार हर शहर में सड़क, सीवेज, बिजली आदि के विकास के लिए 10 करोड़ दे सकती है। रोजगार बढ़ाने के लिए सरकार विकसित किए जाने वाले 2,000 शहरों को जोड़ने वाले 250 जिलों को स्पेशल इंडस्ट्री जोन के रूप में विकसित कर सकती है। स्पेशल इंडस्ट्री जोन के रूप में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश के उन जिलों को विकसित किया जा सकता है, विकास के अवसरों की कमी के कारण जहां से भारी संख्या में लोग रोजगार के लिए बाहर जाते हैं। इन जिलों में रोजगार मुहैया कराने वाले उद्योगपतियों को 10 साल के लिए आयकर में छूट दी जा सकती है।
महामारी ने मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में व्याप्त कमी दिखाई है। यह कमी दूर करने के लिए हर जिले में आधुनिक सुविधा संपन्न अस्पताल और हर तालुके में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होना जरूरी है। साथ ही, सालाना डेढ़ लाख डॉक्टरों और 2.5 लाख नर्सों के प्रशिक्षण के लिए हर मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षण केंद्र तैयार करना आवश्यक है। द संडे गार्डियन ने भी विगत 15 मई को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र को रूपांतरित करने के लिए विस्तृत कार्ययोजना की जरूरत बताई है। चूंकि कोविड महामारी से मध्यवर्गीय आयकरदाता और उद्योगपति प्रभावित हुए हैं, लिहाजा आयकर में राहत देने के साथ कैपिटल गेन टैक्स में कमी की जानी चाहिए। प्राकृतिक दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की तर्ज पर सरकार को कोविड से मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देना चाहिए। अगर सरकार योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाए, तो दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था पर हुए नुकसान को कम किया जा सकता है।


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