राष्ट्रनायक न्यूज। हर तरफ कोरोना वायरस संक्रमण की आसन्न तीसरी लहर के बारे में चर्चा हो रही है, जिसकी भारत में आने की आशंका है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस की तीसरी लहर छह से आठ हफ्ते में आ सकती है; कुछ का कहना है कि यह अक्तूबर के आसपास आएगी। हालांकि इसे दूसरी लहर के प्रकोप से बेहतर ढंग से नियंत्रित किया जा सकेगा, लेकिन यह महामारी कम से कम एक और वर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बनी रहेगी। जाहिर है, यह हम सब के लिए एक चेतावनी है – यदि हम अपने देश में टीकाकरण में तेजी नहीं लाते हैं और कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं करते हैं, तो इस क्रूर तीसरी लहर की आशंका ज्यादा है।
एक सामान्य व्यक्ति कैसे इन अशुभ पूवार्नुमानों से मुकाबला करे? अनिश्चितता के इस काले कोहरे का जवाब दो तरह से दिया जा सकता है, जो दूर जाने का नाम ही नहीं ले रहा है। पहला, भाग्यवादी होकर और सब कुछ सर्वशक्तिमान ईश्वर पर छोड़ कर या यह कहकर कि चूंकि भविष्य अनिश्चित है, इसलिए अभी जो कुछ भी करना है, उसे क्यों न करें। मगर यह हमारे लापरवाह व्यवहार का कारण बन सकता है, जैसा कि हमने हाल ही में देखा, जब दिल्ली में मॉल और बाजारों में भारी भीड़ जमा हो गई थी, मानो ठहरी हुई गति को खोल दिया गया हो।
इस अनिश्चित स्थिति से दूसरे तरीके से भी निपटा जा सकता है-यह स्वीकार करते हुए कि भविष्य अनिश्चित है; इसकी कोई गारंटी नहीं है और कई चीजें किसी के नियंत्रण में नहीं हैं। ऐसा हमेशा से होता रहा है, लेकिन महामारी के दौरान ऐसा ज्यादा होता है। इसका मतलब यह है कि जब सब कुछ किसी के नियंत्रण में नहीं है, तो हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए, जिससे जोखिम बढ़ जाए। वर्तमान संदर्भ में, इसका मतलब यह है कि आपने टीका लगाया है या नहीं, हर किसी को घर से बाहर निकलते समय मास्क पहनने और भीड़ से बचने की जरूरत है, और अपने नजदीक के बाहरी लोगों के साथ घनिष्ठ शारीरिक संपर्क को कम करने की आवश्यकता है। खुद वैज्ञानिकों के पास भी सभी सवालों के जवाब नहीं हैं।
इसलिए अनिश्चितताओं के जाल को देखते हुए व्यक्ति को अपनी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करने की आवश्यकता है। एक देश के रूप में हमें क्या करना चाहिए? मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस समय में ईमानदारी सबसे अच्छा हथियार है, क्योंकि सच्चाई जल्दी या बाद में सामने आ ही जाती है। जनता का विश्वास हासिल करने के लिए ईमानदारी और पारदर्शिता भी महत्वपूर्ण है। विश्वास के बिना महामारी के खिलाफ कोई भी प्रतिक्रिया प्रभावी नहीं हो सकती है। चाहे वह कोविड-19 संक्रमण से संबंधित आंकड़ा हो या और कुछ। इस संदर्भ में, यह एक स्वागत योग्य प्रवृत्ति है कि कई राज्य सरकारें अब अपने कोविड-19 से संबंधित मृत्यु के आंकड़ों को संशोधित कर रही हैं।
सटीक कोविड-19 आंकड़ा इतना महत्वपूर्ण क्यों है? सटीक आंकड़ा होना इसलिए जरूरी है, क्योंकि गलत आंकड़े पर आधारित योजना गलत होती है। असली तस्वीर सामने न आने से प्रशासन के साथ-साथ जनता भी ढीली पड़ जाती है। फिर हमें जगाने के लिए दूसरी लहर जितनी बड़ी लहर आती है। तब तक किसी भी कार्रवाई में बहुत देर हो चुकी होती है, जैसा कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने हाल ही में मुझे बताया था। सच बोलना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा लग सकता है, लेकिन यही एकमात्र रास्ता है। नीति निमार्ताओं को इस बात का भी एहसास होना चाहिए कि कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर ने ग्रामीण भारत को और ज्यादा क्रूरता से प्रभावित किया है। चिंता की बात यह है कि पारंपरिक रूप से कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे से बदहाल ग्रामीण इलाकों में शहरी भारत की तुलना में बहुत कम लोगों ने टीका लगवाया है।
इसकी मुख्य वजह यह है कि एक तरफ जहां उन लोगों तक वैक्सीन की पहुंच कम है, वहीं लोगों में वैक्सीन के संभावित खतरे को लेकर डर भी व्याप्त है। इसलिए ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण में तेजी लाना अनिवार्य है और कई जगहों पर टीका लगवाने के प्रति प्रचलित हिचकिचाहट का मुकाबला करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है। अतीत का अनुभव वर्तमान संकट में हमारा मार्गदर्शन कर सकता है। हमें पोलियो के खिलाफ अपनी लड़ाई से सीखने की जरूरत है। पोलियो के खिलाफ लड़ाई में टीकों ने मदद की, लेकिन सामाजिक लामबंदी भी उतनी ही महत्वपूर्ण थी – धार्मिक नेता भी इसमें शामिल हुए, ऐसा ही समुदाय के अन्य प्रभावशाली लोगों, शिक्षाविदों, नागरिक समाज, संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां, रोटरी क्लब जैसे संगठन के साथ-साथ फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी शामिल थे, जो घर-घर, गली-गली और दुर्गम क्षेत्रों में महत्वपूर्ण आखिरी व्यक्ति तक पहुंचकर टीका लगवाने की कोशिश कर रहे थे।
इसके लिए न केवल जागरूकता अभियान चलाना बहुत महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि प्रासंगिक जानकारी लगातार, प्रभावी ढंग से, विश्वसनीय रूप से एक ऐसी भाषा में संप्रेषित की जाए, जिसे सामान्य लोग (न्यूनतम शिक्षा वाले लोग) भी समझते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता, जिन्हें अब प्रशिक्षित किया जा रहा है, अनिश्चितता को संप्रेषित करने में सक्षम हों। टीके सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन कोई भी टीका सौ फीसदी प्रतिरक्षा प्रदान नहीं करता है और दुर्लभ मामलों में, यहां तक कि टीका लेने वाला व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है। लेकिन टीके की खुराक गंभीर बीमारी की आशंका को कम करने में मदद करेगी।
इस मामले में अधिक विस्तृत संचार की आवश्यकता है, जो ग्राम प्रधानों, समुदाय के प्रभावशाली लोगों, आदि को विस्तार से समझाने पर निर्भर हो, जिसमें न केवल यह बताया जाए कि टीकाकरण क्यों जरूरी है, बल्कि यह भी कि इसके क्या संभावित दुष्प्रभाव हैं। छद्म विज्ञान की महामारी ने वैक्सीन संबंधी झिझक की चुनौती और बढ़ा दी है, जिससे महामारी प्रबंधन को अपूरणीय क्षति होने की आशंका है। इसका मुकाबला करने की जरूरत है। पोलियो पर भारत की जीत का एक महत्वपूर्ण सबक है-आधिकारिक निदेर्शों को गंभीरता से लेने से पहले आपको समुदाय, उसके डर, उसकी चिंताओं पर ध्यान देना होगा। हमें संभावित तीसरी लहर के लिए तैयार रहने की जरूरत है, उस लहर द्वारा हमें गतिहीन किए जाने से पहले।


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