राष्ट्रनायक न्यूज।
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में ट्विटर के माध्यम से उठे विवाद ने सोशल मीडिया के प्रभावों की चर्चा को नया आयाम दे दिया है, और इस विवाद ने ट्विटर को भी अपने लपेटे में ले लिया है। लोग चाहे कुछ भी कहें, पर ट्विटर समेत अन्य सोशल मीडिया के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभावों से लेकर अमेरिका में चुनावों को प्रभावित करने और वैश्विक स्तर पर उन्माद फैलाने में सहायक होने के आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से संबद्ध एक संस्थान की वेबसाइट में प्रकाशित, ‘सोशल मीडिया और आपका मानसिक स्वास्थ्य’, नामक आलेख के मुताबिक आप पसंद करें या न करें, पर सोशल मीडिया का उपयोग आपको, घबराहट, हताशा एवं अन्य स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का शिकार बना सकता है। अमेरिका के प्रसिद्ध प्यू शोध संस्थान की अक्तूबर, 2020 में जारी एक रिपोर्ट में सामने आया है कि 64 फीसदी अमेरिकियों का मानना है कि सोशल मीडिया उनके देश में हो रही घटनाओं में नकारात्मक प्रभाव डालता है। हमारे देश में यदि ऐसे किसी शोध की रपट आती, तो वर्तमान विवाद को देखते हुए लगता है, लोग उसे सिरे से खारिज कर देते।
2018 में एमआईटी के शोधार्थियों के अमेरिका में सोशल मीडिया पर हुए शोध में यह पाया गया था कि सोशल मीडिया में फेक न्यूज के लोगों द्वारा पुन: शेयर/ट्वीट करने की संभावना सत्य घटनाओं के सापेक्ष 70 फीसदी ज्यादा है। इसी से समझ लीजिए कि क्या सोशल मीडिया पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सकता है। इसके साथ-साथ सोशल मीडिया एवं अन्य वेबसाइट द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले बोट्स और कूकीज भी हमारी चाहत के मुताबिक हमें सामग्री और जानकारी परोसते हैं, परंतु कई बार ये विध्वंसक भी हो सकते हैं। गलती से यदि आप एक बार नकारात्मक जानकारी को ‘क्लिक’ करते हैं, तो अगले दिन वैसी ही नकारात्मक जानकारी का अंबार लग जाता है। गौरतलब है कि फरवरी में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़ से ज्यादा उपयोगकर्ता हैं, यू-ट्यूब के 44.8 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़, इंस्टाग्राम के 21 करोड़ और ट्विटर के 4.1 करोड़ लोग। यानी हमारी आबादी का एक बड़ा और अपने स्तर पर प्रभाव रखने वाला हिस्सा इनका उपयोग करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कुत्सित सोच और देश विरोधी ताकतें सोशल मीडिया के माध्यम से खबरों को तोड़-मरोड़ कर लोगों की भावनाओं को प्रभावित कर सकती हैं। और आज के दौर में जिस तरह से भारत में सोशल मीडिया हावी है, ऐसा माहौल तैयार करना कोई मुश्किल बात नहीं। चीन द्वारा अपने यहां ट्विटर, फेसबुक, गूगल आदि पर प्रतिबंध की एक वजह शायद यह भी हो। और एक हम हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में न जाने क्या-क्या इस प्लेटफॉर्म पर डाल कर पूरी दुनिया में अपनी छीछालेदर कराने से नहीं चूकते। अत: सोशल मीडिया के ऊपर लगाम लगाने के भारत सरकार के फैसले को गलत नहीं ठहराया जा सकता। सरकार ने फरवरी में आईटी ऐक्ट के अंतर्गत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए जो नए नियम जारी किए थे, उनका अनुपालन ट्विटर ने अब तक नहीं किया है। ट्विटर ने इन नियमों की न केवल अनदेखी की, बल्कि आरोप है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सूचित करने के बावजूद उसने भ्रामक वीडियो नहीं हटाया, ऐसे में उसके खिलाफ रिपोर्ट होना स्वाभाविक है। दुखद यह है कि धार्मिक उन्माद फैलाने की मंशा से भड़काऊ वीडियो वायरल करने में कई जिम्मेदार लोगों ने भी संकोच नहीं किया। सरकार को चाहिए कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के सुरक्षित और सही उपयोग हेतु लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाए और यह सुनिश्चित करे कि इससे संबंधित प्राथमिक स्तर की प्रायोगिक जानकारी बच्चों को स्कूली स्तर पर अनिवार्य रूप से उपलब्ध हो। साथ ही, माता-पिता, अभिभावकों और शिक्षकों को भी सोशल मीडिया के प्रभावों को समझना होगा, तभी वे बच्चों को प्रेरित कर सकेंगे।
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