राष्ट्रनायक न्यूज

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सहकारी संघवाद का मजबूत और जीता जागता उदाहरण है जीएसटी

राष्ट्रनायक न्यूज। भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली को 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया था। यह अप्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर सुधार का एक एतिहासिक एवं बड़ा कदम माना गया था। इस प्रणाली को लागू करने के शुरूआती दौर में जरूर, कई आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था परंतु वक्त के साथ, इस प्रणाली में किए गए कई बदलावों के साथ, अब जीएसटी प्रणाली की सराहना व्यापारी, उत्पादक एवं राज्य सरकारें भी करने लगी हैं। जीएसटी प्रणाली को प्रारम्भ करते समय केन्द्र और राज्यों के स्तर पर लगने वाले उत्पाद शुल्क, सेवा कर, वैट और 13 अन्य प्रकार के उपकर आदि कुल 17 तरह के करों को जीएसटी प्रणाली में समाहित किया गया था।

जीएसटी प्रणाली को लागू किए जाने के 4 वर्ष पूर्ण होने पर केंद्र के वित्त मंत्रालय ने कहा है कि जीएसटी लागू किए जाने के बाद से करों की दरों में कटौती हुई है एवं कर अदा करने वाले संस्थानों की संख्या भी बढ़ी है। प्रधानमंत्री महोदय ने भी जीएसटी प्रणाली की सराहना करते हुए कहा है कि यह भारत के आर्थिक परिदृश्य में मील का पत्थर साबित हुआ है। जीएसटी ने करों की संख्या, अनुपालन बोझ और आम आदमी पर समग्र कर बोझ में कमी की है। साथ ही कर प्रणाली में पारदर्शिता, अनुपालन और समग्र संग्रह में काफी अच्छी वृद्धि भी दर्ज हुई है। केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय ने बताया है कि पिछले चार वर्षों में करदाताओं का आधार 66 लाख 25 हजार से लगभग दुगुना होकर 1 करोड़ 28 लाख हो गया है। जीएसटी के तहत करों की दरें कम हो जाने से देश में कर अनुपालन भी बढ़ा है। इस दौरान जीएसटी के माध्यम से संग्रहित हो रहे राजस्व में भी धीरे-धीरे वृद्धि होती रही है एवं जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद से अभी तक 66 करोड़ से अधिक जीएसटी रिटर्न दाखिल किए गए हैं, कर की दरों में कटौती हुई है एवं कर अदा करने वाले संस्थानों की संख्या बढ़ी है। यह लगातार आठवां महीना होगा जब जीएसटी राजस्व की वसूली 1 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गयी है। अप्रैल 2021 में तो 1.41 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड जीएसटी राजस्व संग्रहण देखा गया था। मई 2021 माह में राजस्व वसूली पिछले साल के इसी महीने में जीएसटी राजस्व वसूली से 65 प्रतिशत अधिक रही है। अधिकांश राज्यों में कोविड महामारी के कारण सख्त लॉकडाउन जारी होने के बावजूद जीएसटी राजस्व संग्रहण में यह उपलब्धि प्राप्त हुई है।

दरअसल देश में जीएसटी को लागू करने के पीछे मुख्य रूप से 5 लक्ष्यों को प्राप्त करना था, महंगाई पर लगाम लगाना, अप्रत्यक्ष कर अनुपालन में सुधार करना, टैक्स चोरी को कम करना, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर्ज करना एवं कर संग्रहण में वृद्धि करना। जीएसटी को लागू करने के बाद शुरू शुरू में जरूर काफी रुकावटें रहीं परंतु केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के आपसी सहयोग से शुरूआती दौर में इस प्रणाली को लागू करने में आई लगभग सभी परेशानियों को दूर कर लिया गया और अंतत: अब इस प्रणाली का फायदा पूरे देश को होता दिख रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से जीएसटी प्रणाली लागू किया गया था। अब देश में न सिर्फ कर संग्रहण एक सही प्रारूप में आ गया है बल्कि भारत में ह्लएक देश एक टैक्सह्व का जो नारा लगाया जाता था वह भी अब साकार रूप लेता दिखाई दे रहा है। इस नारे को करीब करीब प्राप्त कर लिया गया है। प्रतिमाह एक लाख करोड़ रुपए के संग्रहण के लक्ष्य को अब आसानी से प्राप्त किया जा रहा है। यह देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जानी चाहिए। देश का व्यापारी वर्ग एवं उद्योगपति भी अब व्यापार एवं उत्पादन में अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में सहूलियत महसूस करने लगे हैं। एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में वस्तुओं को लाने एवं ले जाने में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनने के साथ ही विश्व पटल पर भी आर्थिक दृष्टि से एक मजबूत देश के रूप में उभर रहा है। जीएसटी प्रणाली को लागू करने में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों का मिलाजुला प्रयास रहा है। सहकारी संघवाद का यह एक मजबूत एवं जीता जागता उदाहरण माना जा सकता है। भारत में व्यापार करने में अब आसानी हुई है। कर संग्रहण केंद्र एवं राज्यों सरकारों दोनों के लिए ही बढ़ा है।

अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में भारत में जीएसटी के रूप में सबसे बड़ा सुधार कार्यक्रम लागू हुआ है। जीएसटी कर प्रणाली को लागू करने के साथ ही देश में आर्थिक प्रगति की गति थोड़ी कम जरूर हुई थी परंतु, यह केवल जीएसटी प्रणाली लागू करने के चलते नहीं थी इसके लिए अन्य कई कारक भी जिम्मेदार थे। दूसरे, यह अभी भी माना जा रहा है कि जीएसटी प्रणाली में लागू की गई 4 प्रकार की कर की दरें अधिक हैं इन्हें कम किए जाने की गुंजाइश है। जीएसटी प्रणाली को लागू किए जाने के पूर्व कर उगाही की समस्या लगातार बनी रहती थी, परंतु इसमें अब सुधार दृष्टिगोचर है। जीएसटी दरों को वैसे तो लगभग सारे उत्पादों पर कम किया गया है और इससे देश की जनता को सीधे ही लाभ हुआ है। साथ ही कर की दरों में कमी किए जाने से कर संग्रहण में वृद्धि हुई है एवं करदाताओं की संख्या बढ़ी है जिससे अंतत: कर का सकल घरेलू उत्पाद से प्रतिशत बढ़ा है।

देश में व्यापारियों एवं उत्पादकों के लिए यदि आसान कर प्रणाली लागू की जाती है तो इससे व्यापार में वृद्धि होना स्वाभाविक है साथ ही इससे विभिन्न राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार के कर संग्रहण में भी वृद्धि हुई है। पूर्व में राज्य सरकारों के लिए कर संग्रहण के लिए श्अळ एवं मनोरंजन कर मुख्य साधन हुआ करते थे परंतु जीएसटी प्रणाली के लागू होने के बाद से राज्य सरकारों के लिए उक्त करों के हट जाने के बावजूद कर संग्रहण में वृद्धि हुई है। देश में अब तो व्यापारी एवं उत्पादक वर्ग की भी इस जीएसटी के रूप में लागू किए गए आर्थिक सुधार के प्रति आशावादी सोच है। क्योंकि, अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के नियमों को भी अब सरल बनाया गया है तथा इन वर्गों द्वारा अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में महसूस की जा रही लगभग सभी समस्याओं को सुलझा लिया गया है। पिछले 4 वर्षों के दौरान अप्रत्यक्ष कर संग्रहण लगभग दुगना हो गया है। यह तभी सम्भव होता है जब व्यापारी के लिए व्यापार करना आसान होता है। अब हमारे देश के व्यापारी भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में खड़े हो सकते हैं।

अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में पहिले जो कर की चोरी होती थी उसमें अब जीएसटी प्रणाली के लागू किए जाने के बाद भारी गिरावट देखने में आई है। जीएसटी एक विकसित कर प्रणाली है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है। जीएसटी प्रणाली के अन्तर्गत व्यापारिक संस्थानों के रजिस्ट्रेशन बहुत भारी संख्या में बढ़े हैं। ई-वे बिल प्रणाली भी सफलता पूर्वक लागू हो गई है। अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में इन विकसित प्रणालियों को लागू किए जाने से देश में विकास की दर को लम्बी अवधि के लिए गति प्रदान करने में आसानी होगी। अब तो पेट्रोल एवं डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाने की मांग उठ रही है। परंतु पेट्रोलीयम पदार्थों से कर की वसूली आज राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार दोनों के लिए आय का एवं बहुत बड़ा स्त्रोत है। इन पदार्थों को किस प्रकार जीएसटी के दायरे में लाना है, इस विषय पर जीएसटी कौंसिल की बैठक में विचार हो रहा है। किंतु इसे मूर्त रूप प्रदान करने में समय लग सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था के वापिस पटरी पर आते ही इस प्रकार के समस्त अन्य मुद्दे भी सुलझा लिया जाएंगे।

प्रह्लाद सबनानी